मेरा मन कर रहा है कि मैं भी अपनी डायनिंग टेबल
पर एक फीड-बैक रजिस्टर रख लूं। जब भी कोई मेहमान आए, झट मैं उसे आगे कर दूँ, कहूँ – फीड बैक
प्लीज। दुनिया में सबसे बड़ी सेवा क्या है? किसी का पेट भरना ही ना! हम तो रोज भरते हैं
अपनों का भी और कभी परायों का भी। इस बेशकामती सेवा के लिये कभी फीड-बैक मांगा ही
नहीं, जबकि
हर आदमी पैसा भी लेता है और फीड-बैक भी मांग लेता है। होटल में खाना खाने जाओ तो फीड-बैक, घर में कुछ भी
काम कराओ तो फीड-बैक, होटल
में रूक जाओ तो फीड-बैक! अब देखिये जैसे ही मेहमान आने की सूचना मिलती है, हम फटाफट शुरू
हो जाते हैं। दीमाग के घोड़े दौड़ने लगते हैं कि भोजन में क्या खास होगा। पतिदेव
भी आसपास चक्कर लगाने लगते हैं कि आज क्या खास बनने वाला है। जैसे ही मेनू फिक्स
होता है,
घर पर नजर पड़ती है, अरे बाबा, कमरे की चादर
तो बदली ही नहीं! झट से चादर बदली जाती है, बैठकखाने को करीने से सजाया जाता है। ना जाने
कितने जतन करने पड़ते हैं। मेहमान आते हैं, हम लजीज सा खाना परोसते हैं और वे खाकर चले जाते
हैं। कभी कोई तहजीब वाला हुआ तो कह देता है कि भोजन अच्छा था। लेकिन कई तो ऐसे ही
खिसक लेते हैं। छककर भोजन करेंगे फिर कहेंगे कि अरे भाभीजी पान-सुपारी नहीं है क्या? हम भी झूठी
हँसी हँस देंगे कि जी अभी लायी। लेकिन क्या मजाल जो बन्दा भोजन की तारीफ कर दे।
दो दिन पहले सोफे की धुलाई कराई थी, कल सोफे वाले
का मेसेज आ गया कि प्लीज फीड-बैक दें। अब बताओ कि सोफे की धुलाई में क्या फीड-बैक
होगा! तब मैंने सोचा कि हम तो ढेर सारा खाना बना-बनाकर मरे जा रहे हैं, कभी फीड-बैक
नहीं मांगा और ये देखो, जरा
सा सोफा क्या धो दिया,
फीड-बैक चाहिये। बस हमारे भी दीमाग में जंच गयी कि हम भी रजिस्टर रखेंगे। यह भी
बताएंगे कि अभी तक कौन-कौन लोग आकर खाना खाकर गये हैं। उनने क्या-क्या लिखा है इस रजिस्टर
में। सोच रही हूँ कि कुछ शुरुआत खुद ही कर दूँ जिससे लगेगा कि यह काम पहले से ही
चालू है, नहीं
तो किसी को लगेगा कि हमी से शुरुआत की है क्या! मन तो यह भी करता है कि मेहमान का
ईमेल भी ले लिया जाए और फिर उसे ईमेल द्वारा बताया जाए कि आपने आज कितने पैसे बचाए
! खैर छोड़िये, मन तो पता नहीं क्या-क्या करता है
लेकिन सभी करने लगे तो हंगामा खड़ा हो जाएगा। मुझे तो आजकल कोर्ट का भी डर सताने
लगा है कि कहीं कोई मेहमान कोर्ट में चला गया और कहा कि हमारा अधिकार बनता है इनके
हाथ का बना खाना खाने का और कोर्ट के माननीयों ने आदेश दे दिया कि हमारी परम्परा रही
है – अतिथि देवोभव:, इसका
पालन करना ही होगा, तो हम
क्या करेंगे? अब आप
मित्रगण बताएं कि हमें फीड-बैक रजिस्टर रखना चाहिये या नहीं। जब अतिथि देव ही हैं
तो वीआईपी हुए ना, और
वीआईपी के हस्ताक्षर लेने का हक तो हमें मिलना ही चाहिये। हम आपका उत्तर पाते ही
तुरन्त बाजार के लिये निकल पड़ेंगे एक सुन्दर सा फीड-बैक रजिस्टर खरीदने के लिये।
बस आपके हाँ की देर है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-09-2018) को "हिमाकत में निजामत है" (चर्चा अंक- 3090) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन साक्षरता दिवस सिर्फ कागजों में न रहे - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteनिमंत्रण विशेष :
ReplyDeleteहमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ऐसा रजिस्टर तो होना ही चाहिए। उस पर टिप्पणी भी रोचक आएगी।
ReplyDeleteराधा तिवारी जी आभार।
ReplyDeleteसेंगर जी आभार।
ReplyDeleteध्रुव सिंह जी आभार।
ReplyDeleteविकास नैनवाल जी, सच में टिप्पणी आनन्द दायक होंगी।
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