कोई आपको फोलो करने को कहे और एक के बाद एक आदेश दे कि अब यह करे और अब यह करें! आप क्या करेंगे? मेरी दो राय है, यदि महिला है तो फोलो आसानी से करेगी, फिर चाहे वह किसी भी आयु की क्यों ना हो लेकिन यदि पुरुष है और उम्रदराज हो गया है तो किसी का आदेश कभी नहीं मानेगा। मेरे पति के हाथ में जैसे ही मोबाइल आता है, वह चाहते हैं कि पहले ही झटके में सारे काम हो जाएं। लेकिन मोबाइल है कि वह उन्हें अपनी अंगुली पर नचाना चाहता है। एक क्लिक करी, तो लिखा आएगा कि अब यह करो, फिर वह भी कर दिया तो कहेगा कि अब यह करो। बस इतने में तो मूड उखड़ जाता है। सारी जिन्दगी किसी की नहीं मानी और अब इस उम्र में यह पिद्दी सा मोबाइल लगा है आदेश पर आदेश देने। वह पटक देते हैं इसे और फिर मैं सदा से आदेश मानने की मारी इस पिद्दी से मोबाइल का आदेश मानते हुए उस काम को अंजाम देती हूँ। मेरे सामने जब भी कोई पुरुष होता है तो सबसे पहले यही कहता है कि मुझे इस मोबाइल में केवल लाल और हरा बटन समझ आता है, बाकि के चक्कर में मैं पड़ता ही नहीं। मैंने पुरुष लिख दिया है तो आपकी भौहें तन गयी होंगी, अरे गुस्सा मत कीजिये आप लोग तो लड़के हैं अभी। पुरुष तो मैं 60 साल के बाद कहती हूँ। इसका भी कारण है, जब नयी पीढ़ी को बात करते देखती हूँ तो वे खुद के लिये boys या guys का ही प्रयोग करते हैं और पत्नियों के लिये लड़कियों का। चाहे वे लड़कियाँ चालीस को पार कर गयी हों और खुद पचास को। इसलिये 60 तक आप लड़के हैं और उसके बाद पुरुष। तो मैं बात पुरुषों की कर रही थी कि वे मोबाइल से कैसा बेर रखते हैं!
अब जमाना है डिजिटल लेन-देन का, सारे ही ऑफिस कम्प्यूटर से लेस हैं तो यमराज के दरबार में चित्रगुप्त के बही-खाते भी बदल दिये गये हैं वहाँ पर भी कम्प्यूटर आ गया है। जैसे ही कोई जीव यमलोक पहुंचता है, चित्रगुप्त उससे उसकी पहचान पूछते हैं। अभी तक तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था लेकिन जैसे ही पहचान पत्र कम्प्यूटर में आ गया चित्रगुप्त भी मांगने लगे हैं पहचान-पत्र। अब 90 के बाद के पुरुष जैसे ही चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत हुए, वे उनका हिसाब-किताब निकालने के लिये कम्प्यूटर खंगालने लगे। पूछा कि मोबाइल काम में लेते थे, वे शान से बोले कि हाँ लेते थे। तो बताओ अपना नम्बर। नम्बर तो याद था, बता दिया लेकिन जैसे ही नम्बर से मोबाइल खोला तो वहाँ लाल और हरे बटन के उपयोग के अतिरिक्त कुछ ना आए! चित्रगुप्त भागे-भागे यमराज के पास गये, बोले कि क्या करें, ऐसे केस बहुतेरे आ रहे हैं! यमराज ने कहा कि डालो सभी को नरक में। जीवात्मा अड़ गयी कि यह कैसा न्याय है? मैंने इतने पुण्य कर्म किये और मुझे नरक! यमराज ने समझाया कि बात पुण्य और पाप की नहीं है, बात है डिजिटल स्वर्ग की। यहाँ स्वर्ग में सभी को मोबाइल और कम्प्यूटर दिये गये हैं, वे सारे ही काम इनसे करते हैं, अब अप्सराएं भी ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं तो आप अपना जीवन कैसे काटेंगे? स्वर्ग का तो मतलब रह ही नहीं जाएंगा ना! नरक में किसी के पास मोबाइल और कम्प्यूटर नहीं है वहाँ पुराना हिसाब ही चलता है तो आप वही फिट हो सकेंगे ना!
बड़ी दुविधा में फंस गये हैं लोग, फिर यमराज ने एक मार्ग निकाला, कहा कि हम सात दिन का क्रेश कोर्स चलाते हैं, यदि आपने सीख लिया तो आपको स्वर्ग में प्रवेश मिल जाएगा नहीं तो हम कुछ नहीं कर सकेंगे और यह कहकर यमराज ऑफलाइन हो गये। जीवात्मा बड़ी दुविधा में पड़ गये कि सात दिन में कैसे सीख पाएंगे! मन ही मन सोचने लगे कि कितना कहा था पत्नी और बच्चों ने कि सीख लो, थोड़ा तो सीख लो लेकिन तब तो हेकड़ी दिखायी कि नहीं जी हम तो नहीं सीखेंगे लेकिन अब! अब दादाजी मोबाइल की एबीसीडी सीख रहे हैं और चिन्ता इस बात की है कि यदि सात दिन में नहीं सीखा तो नरक के द्वार खुल जाएंगे फिर वही गाँव का 200 साल पुराना जीवन जीना पड़ेगा। चिन्ता यह भी खाए जा रही है कि पत्नी भी साथ नहीं रहने वाली क्योंकि उसने तो सीख लिया था मोबाइल। वह तो व्हाटसएप भी चला लेती थी और फेसबुक भी। यहाँ उसका काम तो चल ही जाएगा। सोचने का समय अब शेष नहीं है, वे पिल पड़े हैं सबकुछ सीखने को। जैसा मोबाइल आदेश देता है उसे फोलो करने में अब गुस्सा नहीं आता, सवाल स्वर्ग का जो ठहरा! जो कल तक समझ के परे था अब जल्दी-जल्दी समझ आने लगा है। पत्नी की आवाज कानों में बजने लगी है कि मैं कहती थी कि सीख लो, मेरी बात नहीं मानते थे, अब! भाई क्या करें स्वर्ग भी डिजिटल जो हो गये हैं!
बड़ी दुविधा में फंस गये हैं लोग, फिर यमराज ने एक मार्ग निकाला, कहा कि हम सात दिन का क्रेश कोर्स चलाते हैं, यदि आपने सीख लिया तो आपको स्वर्ग में प्रवेश मिल जाएगा नहीं तो हम कुछ नहीं कर सकेंगे और यह कहकर यमराज ऑफलाइन हो गये। जीवात्मा बड़ी दुविधा में पड़ गये कि सात दिन में कैसे सीख पाएंगे! मन ही मन सोचने लगे कि कितना कहा था पत्नी और बच्चों ने कि सीख लो, थोड़ा तो सीख लो लेकिन तब तो हेकड़ी दिखायी कि नहीं जी हम तो नहीं सीखेंगे लेकिन अब! अब दादाजी मोबाइल की एबीसीडी सीख रहे हैं और चिन्ता इस बात की है कि यदि सात दिन में नहीं सीखा तो नरक के द्वार खुल जाएंगे फिर वही गाँव का 200 साल पुराना जीवन जीना पड़ेगा। चिन्ता यह भी खाए जा रही है कि पत्नी भी साथ नहीं रहने वाली क्योंकि उसने तो सीख लिया था मोबाइल। वह तो व्हाटसएप भी चला लेती थी और फेसबुक भी। यहाँ उसका काम तो चल ही जाएगा। सोचने का समय अब शेष नहीं है, वे पिल पड़े हैं सबकुछ सीखने को। जैसा मोबाइल आदेश देता है उसे फोलो करने में अब गुस्सा नहीं आता, सवाल स्वर्ग का जो ठहरा! जो कल तक समझ के परे था अब जल्दी-जल्दी समझ आने लगा है। पत्नी की आवाज कानों में बजने लगी है कि मैं कहती थी कि सीख लो, मेरी बात नहीं मानते थे, अब! भाई क्या करें स्वर्ग भी डिजिटल जो हो गये हैं!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-08-2018) को "सीख सिखाते ज्येष्ठ" (चर्चा अंक-3070) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
ReplyDeleteशास्त्रीजी आभार।
ReplyDeleteसुमन कपूर जी आभार।
ReplyDeleteहा हा मजेदार.😂
ReplyDeleteआभार श्रीवास्तव जी
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