"क्लब 60"
यह फिल्म का नाम है, जो कल हमने टीवी पर देखी। जो लोग भी 60 की उम्र पार कर गये
हैं उनके लिये अच्छी फिल्म है। इस फिल्म में अधिकतर पुरुष थे और उनकी संवेदनाओं पर
ही आधारित थी लेकिन मैंने अपने शहर में महिलाओं के ऐसे ही समूह देखे हैं, जो अकेली
हैं लेकिन अपने जीवन को जिंदादिली से जी रही हैं। मेरे घर में कुछ गुलाब के फूलों
की झाड़ियां हैं, उसमें जैसे ही फूल खिलखिलाने लगते हैं, उन्हें देखकर मन खुश हो
जाता है। मैं बार-बार उन्हें देखती हूँ, ऐसे ही जब कोई बुजुर्ग हँसता है तो मन को
सुकून मिलता है और लगता है कि कांटों के बीच भी फूल खिलखिला रहे हैं। हमने अपने
जीवन को एक दूसरे के साथ बाँध लिया है, बंधना अच्छी बात है लेकिन फूल के गुच्छे का
भी अस्तित्व है तो एक फूल का भी है। फिल्म में एक संदेश था कि आपके साथ अब बच्चों
की यादें भर हैं, चाहे वे इस दुनिया में हैं या नहीं हैं। यदि दुर्भाग्य से नहीं
हैं तो भी उनकों याद कीजिये और हर पल को जिन्दादिली से जीएं और यदि होकर भी आपसे
दूर हैं तो भी जिंदादिली से जीवन बिताएं। क्योंकि दोनों ही स्थितियों में बच्चे
आपके साथ नहीं हैं, बस उनके साथ बिताए पल हैं। अकेले रहना गुनाह नहीं है, जिसे सजा
के तौर पर काटा जाए। आज भारत में कितनी बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेले रहते हैं और
कितनी बड़ी संख्या में महिला या पुरुष अकेले रहते हैं, यदि ये स्वयं में खुश नहीं
होंगे तो समाज पर बोझ बन जाएंगे। इसलिये खुश रहिये। अकेले व्यक्ति का खुश रहना
बहुत जरूरी है और समाज को भी उन्हें खुश होने का अधिकार देना चाहिये ना कि उनपर
किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाना चाहिए।
महिला से तो बहुत
सारे अधिकार छीन लिये जाते हैं, लेकिन अब दुनिया बदल रही है। महिला ने भी जीना सीख
लिया है और बुजुर्गों ने भी जीना सीख लिया है। हम संतान के बड़ा करते हैं, अपना
सुख-दुख भूल जाते हैं लेकिन जब संतान हम से दूर चले जाती है तब तो कम से कम अपने
जीवन का मौल समझ लें। इसी प्रकार महिला को तो संतान के साथ-साथ पति की जिम्मेदारी
भी उठानी होती है और वह तो अपने बारे में कभी सोच ही नहीं पाती, इसलिये जब अकेलेपन
का शिकार हो जाएं तो उसमें भी अपना जीवन तलाश करें। भगवान कहता है कि कभी अपना
जीवन भी अकेले गुजारकर देखो और अपने संघर्षों को खुशी-खुशी स्वीकार करो। दुनिया की
सोच बदल रही है और वह अकेलेपन की ओर बढ़ रही है, हमें अकेलेपन को भी हँसकर जीना है
और सभी के साथ भी हँसकर जीना है। परिवार का स्थान दोस्ती ने ले लिया है, तो हम सब
भी दोस्ती की राह पर चलें। साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, गाने का अर्थ व्यापक कर दें। लाफिंग
क्लब से नकली हँसी को दूर कर दें और असली हँसी को जीवन में जगह दें दे। बस अपने
जीवन को जीने का मौका दें और देश के खुशी का इंडेक्स ऊपर कर दें। कभी मौका लगे तो
फिल्म जरूर देख लें, अच्छी और प्रेरणादायी फिल्म है।
भगवान कहता है कि कभी अपना जीवन भी अकेले गुजारकर देखो और अपने संघर्षों को खुशी-खुशी स्वीकार करो। दुनिया की सोच बदल रही है और वह अकेलेपन की ओर बढ़ रही है, हमें अकेलेपन को भी हँसकर जीना है और सभी के साथ भी हँसकर जीना है ................... बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-03-2017) को "होली गयी सिधार" (चर्चा अंक-2899) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
You write very practical. Thanks for suggesting the film
ReplyDeleteकविता जी और परमेश्वरी जी आप दोनों का आभार। शास्त्रीजी पोस्ट को साझा करने के लिये आभार।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक विचारणीय प्रस्तुति।
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