बहुत सी बातें दिल में आती है, दिमाग
को भी मथने लगती है लेकिन चलन में कुछ और बातें हैं तो समझ नहीं आता कि क्या लिखा
जाए और क्या नहीं। कल जन्मदिन बीत गया, कई बाते हमेशा की तरह दिल में आयी और दिमाग
को मथने भी लगी लेकिन सभी की बधाइयां स्वीकार की। बस हर बार यह बात याद आती रही कि
हमने जन्म लेकर ऐसा कुछ किया है कि हम बधाई के हकदार हों! बच्चों के लिये आज सबसे
बड़ा त्योहार है, उनका जन्मदिन। वे अपने जन्मदिन कुछ ना कुछ पाना चाहते हैं और
पाने को ही हक मानते हैं। मुझे लगता है कि जब से व्यक्तिगत रूप से जन्मदिन मनाने
की रिवाज की शुरुआत हुई है हम सब खुद पर केन्द्रित हो गये हैं और धीरे-धीरे खुद के
लिये ही जीने लगे हैं। हम कब से हम की जगह मैं में बदल गये हमें पता ही नहीं चला,
अपने लिये जीना, अकेले ही खुश रहना हमारे जीवन का उद्देश्य रह गया। भारत में
परिवार के लिये जीना और फिर सोचना की अब सारे काम पूरे हुए तो जीवन का क्या
उद्देश्य बचा? लेकिन अब ऐसा नहीं है, सभी उदाहरण से बताते हैं कि देखो अमेरिका में
अकेला व्यक्ति कितना खुश है!
कल पोते और बहु का सूरज पूजन भी था तो
कुछ सामान लेने बाजार गये, वहाँ एक वृद्ध महिला ट्राली खेंच रही थी, कांपते हाथ
से, अकेले सामान लेने आना मुझे जन्मदिन मनाने का कडुवा सच दिखा गया। स्वयं से खुश
होते रहो, स्वयं ही जिन्दा रहो और स्वयं ही अपने लिये खुशी का माध्यम बनो। बस सब
आपको इस दिन हैपी बर्थ-डे बोल देंगे लेकिन वृद्ध होते हुए आप समझ नहीं पाते कि
अकेले ट्राली खेंचते हुए जीने का सुख क्या है? नवीन सोसायटी को देखकर लगता है कि
हम एक दायरे में अलग-अलग बन्द हैं, युवा अपने दायरे में हैं और बच्चे अपने।
वृद्धों के लिये धीरे-धीरे जगह कम होती जाती है, या वे ही खुद को अलग कर लेते हैं,
लेकिन पुराने जमाने में परिवार ही सभी का दायरा होता था, सब मिलकर ही ईकाई बनते
थे। अमेरिका में परिवार का सच समझ आने लगा है, भारतीय लोग अब परिवार को साथ रखने
में खुश दिख रहे हैं, लेकिन बड़े ही शायद आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं और हमें
अकेली ट्राली खेंचती हुई भारतीय वृद्ध महिला जन्मदिन का महत्व दिखा रही है। हम
परिवार के लिये उपयोगी बनें, सारा परिवार एक आत्मीय भाव से बंधा रहे और हम उस दिन
कुछ देने की परम्परा को पुन: जीवित करें। मैंने अपना जन्मदिन आप लोगों की बधाई
लेते हुए और पोते का सूरज पूजन कर, सूरज का आभार मानते हुए बिताया। आए हुए
मेहमानों को हाथ से बनाकर भोजन खिलाया तब लगा कि हम अभी देने में सक्षम हैं। आप
सभी का आभार, जो एक परिवार की भावना प्रकट करती है, हम एक दूसरे को खुशियां देकर
खुश होते हैं और यही भाव हमेशा बना रहे। मैं भी आप लोगों के लिये कुछ अच्छा करूं,
अच्छे विचारों का आदान-प्रदान हो, बस यही कामना है।
दिनांक 14/11/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
जी सही कहा। ज़िन्दगी में एकाकीपन बढ़ता जा रहा है। घर से दूर रहकर कमाई करने के लिए बाध्य युवा भी इससे जूझता है। अभी मुझे दस वर्ष से ऊपर हो गए हैं। २००५ से घर से बाहर हूँ। और उम्र अभी २७ वर्ष है। ऐसे में लगभग आधा जीवन अकेले ही हो चुका है। ऐसे में अकेलेपन का आदि हो जाते हैं। शायद उनकी कहानी भी ऐसी ही हो।
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