कल घर में गहमागहमी थी, करवा चौथ जो
थी। लेकिन करवा चौथ में नहीं मनाती, कारण यह नहीं है कि मैं प्रगतिशील हूँ इसलिये
नहीं मनाती, लेकिन हमारे यहाँ रिवाज नहीं था तो नहीं मनाया, बस। जब विवाह हुआ था
तो सास से पूछा कि करवा चौथ करनी है क्या? वे बोलीं कि अपने यहाँ रिवाज नहीं है,
करना चाहो तो कर लो। अब रिवाज नहीं है तो मैं अनावश्यक किसी भी कर्मकाण्ड में
क्यों उलझू और मैंने तत्काल छूट का लाभ ले लिया। लेकिन यह क्या, देखा वे करवा चौथ
पर व्रत कर रही हैं! मैंने पूछा कि आप तो कर रही हैं फिर! उन्होंने बताया कि हम
सारी ही चौथ करते हैं, इसलिये यह व्रत है, करवा चौथ नहीं है। धार्मिक पेचीदगी में
उलझने की जगह, मिली छूट का लाभ लेना ही उचित समझा।
खैर, कल भतीजी और ननद दोनों ही आ गयी
थी और उनका करवा चौथ अच्छे से हो जाए इसलिये सारे
ही जतन मैं कर रही थी। रात को पूजा भी पड़ोस में की गयी और कहानी भी सुनी।
कहानी सुनते हुए और अपनी सास की बात का
अर्थ समझते हुए एक बात समझ में आयी कि करवा चौथ का व्रत, चौथ माता के लिये किया
जाता है, माता तो एक ही है – पार्वती। बस अलग-अलग नाम से हम उनकी पूजा करते हैं।
इस व्रत में पति की लम्बी आयु की बात और केवल पति के लिये ही इस व्रत को मान लेना
मेरे गले नहीं उतरा। महिलाएं जितने भी व्रत करती हैं, सभी में सुहाग की लम्बी उम्र
की बात होती ही है, क्योंकि महिला का जीवन
पति के साथ ही जुड़ा है, वरना उसे तो ना अच्छा खाने का हक है और ना ही अच्छा पहनने
का। अब जो व्रत चौथ माता के लिये था, वह कब से पति के लिये हो गया, मुझे समझ नहीं
आ रहा था।
हम बचपन
से ही भाभियों को व्रत करते देखते थे, रात को चाँद देखकर, उसको अर्घ चढ़ाकर सभी
अपना व्रत खोल लेती थी। पति तो वहाँ होता ही नहीं था। लेकिन आज पति को ही पूजनीय
बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। पति के लिये या अपने सुहागन रहने के लिये यह व्रत
है जो चौथ माता को पूजकर किया जाता है ना कि पति को परमेश्वर बनाने के लिये है। हमारे
व्रतों को असल स्वरूप को हमें समझना होगा और उनका अर्थ सम्यक हो, इस बात का भी ध्यान
रखना होगा। यह चौथ माता का व्रत है, उसे साल में एक बार पूजो चा हर चौथ पर पूजो,
लेकिन व्रत माता का ही है। इसलिये पूजा के बाद बायणा देने की परम्परा है जो अपनी
सास को दिया जाता है। महिला सुहागन रहने के लिये ही चोथमाता का व्रत करती है, साथ
में पति को भी माता को पूजना चाहिये कि
मेरी गृहस्थी ठीक से चले। बस यह शुद्ध रूप से महिलाओं का व्रत है, इसे पति को परमेश्वर बनाने की प्रक्रिया का
अन्त होना चाहिये। www.sahityakar.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-10-2017) को
ReplyDelete"थूकना अच्छा नहीं" चर्चामंच 2753
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब....
ReplyDeleteआभार शास्त्रीजी
ReplyDeleteसुधा देवरानीजी आभार आपका।
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