कुछ
लोग अलग मिट्टी से बने होते हैं, उनकी एक छोटी सी सोच उन्हें सबसे अलग बना देती
है। कल केबीसी के सेट पर खिलाड़ी थी – अनुराधा,
लेकिन मैं आज बात अनुराधा की नहीं कर रही हूँ। मेरी बात का नायक है अनुराधा
का पति – दिनेश। कुछ लोग जीवन में एक उद्देश्य लेकर आगे बढ़ते हैं, स्वयं को बीज
की तरह धरती में रोप देते हैं। उनका सारा ध्यान इस बात पर होता है कि मेरे इस बीज
के त्याग से श्रेष्ठ बीजों का निर्माण हो सके। दिनेश का बचपन अशिक्षा की रात के
साथ बीता, उसके दिल और दीमाग में एक ही
बात घर कर गयी कि मेरी संतान आगे पढ़ेगी। लेकिन यह कैसे सम्भव होगा? बारह
भाई-बहनों के गरीब परिवार में उम्मीद की किरण कहीं नहीं थी। शिक्षित युवती से
विवाह का सपना तो सब कोई देख लेते हैं लेकिन उसके लिये खुद को होम देने की बात
कितने कर पाते हैं? दिनेश ने पोलियों से ग्रस्त एक शिक्षित युवती – अनुराधा से
विवाह किया और उसकी बैसाखी बन गया। अब अनुराधा पढ़ाई भी करती और नौकरी भी करती और
घर सम्भालता दिनेश। रोटी बनाने से लेकर सारे ही काम दिनेश करता। धीरे-धीरे
शिक्षिका अनुराधा डिप्टी-कलेक्टर बन गयी और कल केबीसी में हॉट-सीट पर थी।
जो
पुरुष पत्नी के प्रमोशन होने पर भी शराब के अड्डे पर गम गलत करता दिख जाता है,
वहीं दिनेश पूरे घर को मनोयोग से सम्भाल रहा है। दोनों पैरों से अपाहिज लड़की से
विवाह करना, फिर घर की जिम्मेदारी वहन करना साहस का काम है। अपाहिज होने के बाद भी
अनुराधा का आत्मविश्वास देखने लायक था। अक्सर पतियों के सपनों को पूरा करने में
पत्नी खुद को झौंक देती है, अपने सपने के बारे में रत्ती भर नहीं सोचती है और बदले
में सुनती है कि तुम करती ही क्या हो? किसी के भी सपने किसी दूसरे के सपनों को
जमींदोज करके ही पूरे होते हैं। किसी भी सफल व्यक्तित्व के पीछे उसके साथी का
हाथ होता है और हमारे देश में अक्सर यह
हाथ महिला का होता है लेकिन कल दिनेश ने सिद्ध कर दिया कि पुरुष भी अपने झूठे
अभिमान को त्याग दे तो एक सुखद जीवन और सुखी परिवार का निर्माता बन सकता है। ऐसे न
जाने कितने दिनेश होंगे, बस उन्हें समाज जीवन में उदाहरण बनकर सामने आना है, तब
झूठी शान से पुरुष मुक्त हो सकेगा और अपने अंकुरण से श्रेष्ठ संतान को जन्म देगा।
अनुराधा जी और दिनेश जी कहानी वाकई प्रेरक है। मैं करोड़पति नहीं देखता इसलिए ये कहानी साझा करने के लिए शुक्रिया। मैं और तुम से अगर हम बन जाएँ तो गृहस्थी की गाड़ी बहुत सुखमयी ढंग से चल सकती है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काश,ऐसे दिनेश सकमाज में और भी हो!उनसे प्रेरणा लेकर पत्नी की कामयाबी से किसी पुरुष के अहम को ठेस नहीं पहुचेंगी। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteविकास नैनवाल जी आभार आपका।
ReplyDeleteज्योति दहीवाल जी आभार आपका।
ReplyDeleteशास्त्रीजी आभार।
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