मोदीजी! यह नहीं चलेगा। हम कितनी मेहनत करके एक
कहानी बनाते हैं, चीख-चीखकर दुनिया को सुनाते हैं। लोगों में विश्वास भर देते हैं
कि हम जो कह रहे हैं, ऐसा ही होने जा रहा है। अब कल की ही बात ले लीजिए, हम मीडिया
के लोगों ने चीन से युद्ध तक की स्थिति बना दी थी। लगा था कि बस अब युद्ध होकर ही
रहेगा। जनता भी दो खेमों में बंट गयी थी, एक खेमा कह रहा था कि युद्ध हो ही जाने
दीजिये तो दूसरा कह रहा था कि युद्ध हुआ तो हमें नुक्सान होगा। ताबड़तोड़ चैनल चल
रहे थे, मेप बना-बनाकर समझाया जा रहा था लेकिन कल आपने सारा खेल बिगाड़ दिया। आप
चीन के राष्ट्रपति से हँस-हँसकर मिल रहे थे, खबर यह भी आ रही थी कि चीन ने छोटी मीटिंग के लिये निवेदन
भी किया है। और तो और चीन ने भी आपके रूख की तारीफ कर डाली। अब फिर चिल्ल-पों मचेगी
कि क्या चीन आतंक के खिलाफ खड़ा होगा?
हम जब भी अमेरिका जाते हैं तो हमसे पूछा जाता
है कि साथ में कोई बीज तो नहीं है? यदि किसी प्रकार का बीज साथ होगा तो आप उसे
अमेरिका में उगा लेंगे और वह अमेरिका के हित में नहीं होगा। चीन भी आतंक की खेती
नहीं करता, वह किसी बीज को अंकुरित होने की वजह ही नहीं देता। हम आतंक को खाद-पानी
सभी देते हैं फिर आतंक को खत्म करने के लिये चिन्तित होते हैं लेकिन चीन ने सारे ही खाद-पानी बन्द
कर दिये हैं। वह आतंक का साथ नहीं दे रहा अपितु पाकिस्तान का साथ दे रहा है। एक
मूर्ख देश यदि कुछ टुकड़े डालने पर ही दुम हिलाता रहे तो क्या बुराई है?
दो उभरते हुए पहलवान अपने-अपने दमखम को बढ़ा
रहे हैं, मुझे कोई बुराई नहीं दिखायी देती। जिस देश की अधिकांश
जनसंख्या बौद्ध हो, वह हमारे नजदीक ही आएगा। मोदीजी इसी भाव को बार-बार उकेरते हैं
और इसी भाव के साथ हाथ मिलाते हैं। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि देश में ही ऐसे
बहुत सारे तत्व हैं जो इस भाव को पीछे धकेलते रहते हैं। हम सब बौद्ध आयाम को भुला
देते हैं और बस याद रहता है तो कम्युनिज्म। जब भी कोई हमारी संस्कृति याद दिलाता है तो मन में हिलोर
उठती ही है। एक बार मैंने एक वरिष्ठ प्रचारक से कहा कि आप लोग हमेशा यह बताते हैं
कि यह खतरा है और वह खतरा है। लेकिन कभी यह नहीं बताते कि इन खतरों को कम करने के
लिए हमारे क्या प्रयास हैं? तब उन्होंने विस्तार से समझाया था कि हम चीन समेत
विश्व के सारे बौद्धों को एक करने में लगे हैं। यदि हम सफल होते हैं तब भारत की ताकत
सबसे अधिक होगी। मोदीजी का इसी सांस्कृतिक एकता पर बल है। इस एकता की पहल कभी
गुजरात में झूला झूलते हुए होती है तो कभी चीन में जिनपिंग
के शहर और मोदी को शहर का इतिहास टटोलते हुए होती है तो कभी मानसरोवर की यात्रा
प्रारम्भ करते हुए होती है।
ऐसे सेकुलर जो "भारत तेरे टुकड़े
होंगे" बोलने वालों के साथ खड़े रहते हैं, जो पाकिस्तान और चीन को एक होते
देखते हैं, जो मोदी से इतनी नफरत करते हैं कि उन्हें गुलामी मंजूर है लेकिन मोदी
नहीं। इसलिये ये देश को डराते रहते हैं कि मोदी के कारण चीन युद्ध कर देगा।
मित्रों मैं तो मोदी पर विश्वास करती हूँ और इसलिये दावे से कहती हूँ कि बाजीराव
की चाल पर और मोदी की सोच पर कोई शक नहीं। वे चीन को तुरप के इक्के से साध लेंगे।
बौद्ध और हिन्दू सांस्कृतिक दृष्टि से एक हैं, इन्हें साथ आना ही होगा। अब देखना
है कि कम्यूनिज्म जीतता है या फिर बौद्धिज्म। मोदीजी देश को ऐसे ही हैरत में डालते
रहेंगे, हम भक्तगण खुश होते रहेंगे और सेकुलर बिरादरी हाय-हाय करती रहेगी। देखते
रहिये, दुनिया करवट ले रही है, अभी बहुत कुछ देखना और समझना शेष है।
ये मोदीजी भी पता नहीं क्या करते हैं? अब तक तो चीन को निपटा देना चाहिये था, चीन तो उसके सामानों की तरह फ़ुस्सी जो ठहरा.:)
ReplyDeleteइन चैनलों और विरोधियों का वश चले तो अब तक दस बार भारत पाक और चीन को लडा चुके होते. जिनको विरोध करना है वो सही बात का भी विरोध ही करेंगे पर मोदीजी को कोई असर नही होने वाला है वो अपने लक्ष्य पर आगे बढते रहेंगे.
बहुत सामयिक और सटीक लिखा आपने.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
धन्यवाद ताऊ
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