कल एक पुत्र का संताप से भरा पत्र पढ़ने को
मिला। उसके साथ ऐसी भयंकर दुर्घटना हुई थी
जिसका संताप उसे आजीवन भुगतना ही होगा। पिता आपने शहर में अकेले रहते थे, उन्हें
शाम को गाड़ी पकड़नी थी पुत्र के शहर जाने के लिये। सारे ही रिश्तेदारों से लेकरआस-पड़ोस
तक को सूचित कर दिया गया था कि मैं पुत्र के पास जा रहा हूँ। नौकरानी भी काम कर के
चले गयी थी। अखबार वाले और दूध वाले को भी मना कर दिया गया था। अटेची पेक हो चुकी
थी लेकिन तभी अचानक मौत का हमला हुआ, यमराज ने समय ही नहीं दिया और वे पलंग पर ही
दम तोड़ बैठे। पुत्र ने फोन किया कि कब निकल रहे हो, लेकिन उत्तर कौन दे! पुत्र ने
सोचा कहीं व्यस्त होंगे। रात को फोन किया कि गाड़ी में बैठ गये हैं क्या? लेकिन
फिर उत्तर नहीं! सोचा नेटवर्क की समस्या होगी। 48 घण्टे निकल गये, पुत्र का
सम्पर्क नहीं हुआ। आस-पड़ोस ने भी घर की तरफ नहीं झांका। तभी अचानक एक परिचित
मिलने चले आये, घण्टी बजाई, उत्तर नहीं। पड़ोस में गया, पूछा कि कही गए हैं क्या?
पड़ोसी ने कहा कि हाँ पुत्र के पास गए हैं। लेकिन तभी परिचित के दिमाग में कुछ
कौंधा, बोला कि यदि बाहर गये हैं तो चैनल गेट कैसे खुला है। अब पड़ोसी को भी लगा
कि देखें क्या माजरा है? खिड़की में से जब अन्दर झांका गया तब उस विभत्स दृश्य को
देखकर सब विचलित हो गये। दो दिन में शरीर
सड़ चुका था और लाखों मक्खियां उसे नोच रही थीं। सारा परिवार आनन-फानन में एकत्र
हुआ लेकिन पुत्र का संताप कौन हरे? वह अपने पत्र में लिख रहा है कि बार-बार फोन
करो, अकेले रह रहे पिता की चिन्ता करो, आदि-आदि।
जब इस घटना और पत्र के बारे में मेरी मित्र ने
मुझे बताया तो मुझे एक घटना याद आ गयी। माँ होती है ना, उसका दिल धड़कने लगता है,
जब भी उसकी संतान पर कोई संकट आता है।
लेकिन संतान बिरली ही होती है जिसको
माता-पिता पर आये संकट का आभास होता है। मेरे देवर दूर शहर में पढ़ रहे थे, उन
दिनों फोन की उतनी सुविधा नहीं थी कि हर मिनट के समाचार पता रहे। हमारी महिने में
एकाध बार बात होती होगी बस, जब मनी-आर्डर भेजना होता था और एकाध बार और। उन दिनों हमारी
माताजी भी हमारे पास आयी हुईं थीं। हमारी नयी-नयी गृहस्थी थी और हमारे पास संसाधन
ना के बराबर थे। एक थाली में ही हम सब साथ-साथ खाना खा लेते थे। मैंने देखा कि वे
ढंग से खाना नहीं खा रही हैं। दूसरे दिन भी वे अनमनी सी रहीं। फिर मैंने पूछ ही
लिया कि क्या बात है? वे बोली कि राजू की
चिंता हो रही है। मैंने पतिदेव से कहा कि एक बार फोन कर लो, चिन्ता दूर हो जाएगी।
फोन किया तो चिंता बढ़ गयी। मालूम पड़ा कि अस्पताल में भर्ती है। अब पतिदेव बिना
विलम्ब किये रवाना हो गये। हमने माताजी को कुछ नहीं बताया बस कहा कि जाकर देख आते
हैं। शहर भी दूर था, पहुंचने में 20-22
घण्टे लगते थे लेकिन एक माँ की चिन्ता के कारण विपत्ति टल गयी और समय रहते हम
सावधान हो गये।
ये जो हमारे खून के रिश्ते हैं, हमें हमेशा
सावचेत करते हैं, बस कभी हम इनकी आवाज सुन नहीं पाते और कभी ध्यान नहीं देते। यदि
हमारे दिल का एक कोना केवल अपने रिश्तों के लिये ही खाली रखें तो सात समन्दर पार
से भी हिचकी आ ही जाती है। इन धमनियों में जो रक्त बह रहा है, उसमें हमारे रिश्ते
भी रहते हैं। धमनी की रुकावट का परीक्षण तो हम करवा लेते हैं लेकिन रिश्ते कहीं
हमें आवाज नहीं दे रहे हैं, उनकी गति रुक गयी है, उसका परीक्षण हम नहीं करवाते
हैं। जब ऐसी घटना घट जाती है तब जीवन भर का संताप हमें दे जाती हैं। माँ का तो दिल
सूचना दे ही देता है लेकिन संतान का दिल भी सूचना दे, इसके लिये रिश्तों की कद्र
करो। आज वह पुत्र पत्र लिख-लिख कर लोगों को सावचेत कर रहा है कि अपने पिता को
अकेला मत छोड़ो, फोन नहीं उठाएं तो बार-बार फोन करो, आस-पास करो, लेकिन बेफिक्र
होकर मत बैठ जाओ। जैसे एक पुत्र अपनी आग में जल रहा है, वैसे ही कहीं औरों को ना
जलना पड़े, इसलिये अपने दिल को अपनों के लिये धड़कने दो।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (22-06-2017) को
ReplyDelete"योग से जुड़ रही है दुनिया" (चर्चा अंक-2648)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार शास्त्रीजी
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक एवं हृदय विदारक प्रसंग ! मन विचलित हो गया !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteसही कहा अपने दिल को अपनो के लिए धड़कने दें...।
साधना जी और सुधा जी आपका आभार।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवर्तमान की विद्रूपताओं का चित्र पेश करती प्रस्तुति।
ReplyDeleteवर्तमान की विद्रूपताओं का चित्र पेश करती प्रस्तुति।
ReplyDeleteमार्मिक सत्य!
ReplyDeleteममता का आभास से गहरा संबंध होता है । उसी का बोध कराती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमाता पिता के प्रति कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी का बोध कराती हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमीना शार्मा, राजेश कुमार, वुिश्व मोहन, रवीन्द्र सिंह, सभी को आभार।
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