कल बेटे से फोन पर बात हो रही थी, वह अपनी
नौकरी बदल रहा है तो उसे अपना काम सौंपकर जाना है। कल तक वह कह रहा था कि मेरे पास
कोई काम ही नहीं है इसलिये नौकरी बदलना जरूरी हो गया है लेकिन आज कहने लगा कि अपना
काम जब दूसरों को सौंप रहा हूँ तब मुझे अपने काम का पता चल रहा है और मुझे ही नहीं
सभी को पता चल रहा है कि अरे यह काम कितना जरूरी था। अब इसे कौन और कैसे किया
जाएगा इसका चिंतन लाजिमी था। बंदा तो छोड़कर जा रहा है तो ऐसा करो कि इसके काम की
रिकोर्डिंग कर लो जिससे कठिनाई नहीं आये। जब हम काम छोड़ते हैं तब पता चलता है कि
कितना मूल्यवान काम हम कर रहे थे।
हम से भी यदाकदा लोग पूछ बैठते हैं कि आप क्या
काम करते हैं? अपना काम समझाना कई बार कठिन सा हो जाता है। फिर मन को लगने लगता है
कि नहीं, हम कुछ नहीं कर रहे, निराशा सी मन में छाने लगती है। जीवन का भी ऐसा ही
है, एक उम्र के बाद लगता है कि अब हमारा काम खत्म। हिन्दू दर्शन में कहते हैं कि
जीवन का उद्देश्य होता है, हम अपना उद्देश्य पूरा करने के बाद संसार से पलायन की सोचने लगते हैं। यह
पलायन यदि कठिन हो तो संन्यासी ही बन जाते हैं लोग।
मैं जब भी कुछ देर के लिये घर से बाहर होती
हूँ, घर में अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। छोटे-छोटे काम अपना वजूद बताने लगते
हैं, लेकिन ना मुझे और ना ही घर में किसी
को उनकी अहमियत पता होती है! हम एक रफ्त में काम करते हैं और फिर उस काम की आदत सी
हो जाती है, ना हमें पता लगता है कि हम काम कर रहे हैं और ना ही दूसरों को पता
लगता है कि हम काम कर रहे हैं। जमाना हमें ताना मारता है कि भला तुम क्या
करते हो और हम नजरे चुराये चुपचाप सुन लेते हैं। फिर किसी नये काम की तलाश शुरू
करते हैं कि शायद लोगों को और खुद को लगे कि हम काम कर रहे हैं।
मैं एक बार सोचने लगी की मेरे बाद इनका जीवन
कैसे चलेगा, सोचकर ही सायं-सायं होने लगी। तभी माँ याद आ गयी, वह कहती थी कि भगवान
मुझे पहले मत उठाना, नहीं तो इनका जीवन किसके सहारे कटेगा? अक्सर पत्नियों को कहता
सुना था कि हे भगवान! मुझे सुहागन ही उठाना लेकिन पहली बार माँ को उल्टी बात कहते
सुना। उनकी तो भगवान ने सुन ली थी और वे साथ-साथ ही चले गये इसलिये उन्हें एकदूजे
के काम की महत्ता ही पता नहीं चली। लेकिन जब मैंने अपने जीवनसाथी के काम
के लिये चिंतन किया तब मेरी दुनिया भी पंगु नजर आने लगी। यह जो काम नाम की चीज है
वह दिखती नहीं है, इसकी कद्र भी हम नहीं करते हैं लेकिन इसका महत्व हमारे जाने के
बाद पता लगता है।
इसलिये हमें एक-दूसरे के काम को समझना भी चाहिये और बताते भी रहना
चाहिये कि तुम्हारा काम कितना महत्व का है। जब कोई हमें हमारे काम का महत्व बताता
है तब हमें भी अपने काम का महत्व पता लगता है। फिर निराशा हमें नहीं घेरती है और
ना ही पलायन की सोच दिमाग पर हावी होती है। एक-एक रिश्ते का महत्व बार-बार बताओ,
तुम हमारे लिये कितने उपयोगी हो बताते रहो
फिर देखो जीवन कितना खुशहाल हो जाएगा। बस लग जाओ काम पर आज से ही। बस कहते रहो कि यह काम केवल तुम ही कर सकते
थे। छोटे-छोटे कामों को ढूंढो और बताओ अपने आत्मीयों को कि यह काम तुम करते हो तो हम कितना खुश हो लेते हैं। सच मानिये आप टोकरा भर मित्र बना लेंगे।
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सार्थक सोच .
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभाजी।
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