मुझे रोजमर्रा के खर्च के लिये कुछ शब्द
चाहिये, मेरे मन के बैंक से मुझे मिल ही जाते हैं। इन शब्दों को मैं इसतरह सजाती
हूँ कि लोगों को कीमती लगें और इन्हें अपने मन में बसाने की चाह पैदा होने लगे।
मेरे बैंक से दूसरों के बैंक में बिना किसी नेट बैंकिंग, ना किसी क्रेडिट या डेबिट
कार्ड के ये आसानी से ट्रांस्फर हो जाएं बस यही प्रयास रहता है। मुझे अन्य किसी
मुद्रा की रोजमर्रा आवश्यकता ही नहीं पड़ती लेकिन यदि ये शब्द कहीं खो जाएं या फिर
प्रतिबंधित हो जाएं तो मेरा जीवन कठिनाई
में पड़ जाएगा।
मुझे कुछ ऐसी घटनाएं भी चाहिएं जो मेरी संवेदना
को ठक-ठक कर सके, मेरी नींद उड़ा दे और फिर मुझे उन्हें शब्दों के माध्यम से आकार
देना ही पड़े। घटनाएं तो रोज ही हर पल होती है, अच्छी भी और बुरी भी, लेकिन किसी
घटना पर मन अटक जाता है। उस अदृश्य मन के अंदर सैलाब सा ला देता है और फिर वही मन
अनुभूत होने लगता है। दीमाग सांय-सांय करने लगता है और तब ये शब्द ही मेरा साथी
बनते हैं।
पहले मुझे कलम चाहिए होती थी, कागज चाहिए था
लेकिन अब अदद एक लेपटॉप मेरा साथी बन जाता है। अंगुलिया पहले कलम पकड़ती थी और अब
की-बोर्ड पर ठक-ठक करती हैं और मन बहने लगता
है। शब्द न जाने कहाँ से आते हैं और लेपटॉप की स्क्रीन पर सज जाते हैं। मन
धीरे-धीरे शान्त होने लगता है।
कुछ समय भी चाहिये मुझे, मन की इस उथल-पुथल को
जो साध सके और शब्दों को आने का अवसर दे सके। मेरी संवेदनाएं मुझ पर इतना हावी हो
जाती हैं कि मैं अपने सारे ही मौज-शौक से समय चुराकर इनको दे देती हूँ। कई मित्र
मुझे लताड़ने लगे हैं, उलाहना देने लगे
हैं लेकिन मैं समय को संवेदनाओं के पास जाने से रोक नहीं पाती हूँ। अब बस मैं हूँ और मेरी संवेदना है, मेरा
इतना ही खजाना है। इससे अधिक पाने की लालसा भी नहीं है, इसलिये किसी बैंक की चौखट
चढ़ने का मन ही नहीं होता। इन शब्दों के सहारे, घटनाओं से संवेदना को मन में पाने
के लिये जो समय अपने लेपटॉप पर व्यतीत
करती हूँ बस वही तो मेरा है। यह सारा ही,
काला या सफेद धन ना मुझे शब्द दे पाते हैं, ना संवेदना जगा पाते हैं। ना मेरा
लेपटॉप शब्द उगल पाता है और ना ही मन समय
निकाल पाता है। लोग पाने के लिये बेचैन
हैं और मैं देने के लिये। मैं शब्द
ही कमाती हूँ और शब्द ही खर्चती हूँ। शायद ये भी कभी काले और सफेद की गिनती
में आ जाएं! पुस्तकालयों में बन्द लाखों करोड़ शब्द कहीं काले धन की तरह बदलने के
लिये बेताब ना हो जाएं! लगे हाथों इन्हें भी बाहर की खुली हवा दिखा दो, क्या पता
इतिहास के काले अध्याय कहीं सफेद होने के लिये मचल रहे हों!
बहुत सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteआभार आपका।
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