महिला का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही होता है। उसकी महिला पहचान इतनी बड़ी है कि उसे इससे अधिक की पहचान के लिये गुरु मिलना कठिन हो जाता है। कहीं वह बहन-बेटी के रूप में देखी जाती है तो कहीं भोग्या के रूप में।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार।
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