पुत्र के विवाह पर होने वाली उमंग से कौन वाकिफ नहीं
होगा? घर में पुत्र-वधु के रूप में कुल-वधु के आने का प्रसंग परिवारों को रोमांचित
करता रहा है। माता-पिता को अपनी वधु या बहु आने का रोमांच होता है, छोटे भाई-बहनों
को अपनी भाभी का और पुत्र को अपनी पत्नी का।
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ReplyDeleteशादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।
ReplyDeleteमिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।
रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।
भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।
इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।
अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।
behtareen, satik var kiya hai *******" pyar bas gya deh me,riste sab vyapar ho gye---shadi ka bandhan
ReplyDeletematr lokachar ho gya hai
आपका लेख पढ़ा | अच्छा लगा | एक सवाल जागा है मेरे मन में कृपया उत्तर दें |
ReplyDeleteआपके अनुसार लड़के पत्नी की भाषा ही बोलने लगते हैं और बुजुर्गों से किनारा कर लेते हैं | मेरा सवाल है के जो लड़के अपनी बुजुर्गों से रिश्ता नहीं छोड़ते और अपने माता पिता का साथ निभाते हैं और उनकी पत्नियाँ रोज़ कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा करती हैं और उलाहने दिया करती हैं या फिर घर छोड़ कर चली जातीं हैं उन लड़कों को आप किस श्रेणी में स्थापित करेंगे ? उनका मरण तो दो तरफ़ा हो गया | को तो चक्की के दो पाटों में पिसे और घुटते रहे | कृपया मेरी इस जिज्ञासा को शांत कीजिये | मेरे समस्त इसका एक सजीव उदाहरण है | मेरे मित्र का जीवन | आभार
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
तुषार जी, आपका प्रश्न अच्छा लगा। यह समाज की बहुत बड़ी समस्या है। शायद हर युग में रही है लेकिन जब से पत्नी को घर का मुखिया माना गया है तब से यह समस्या ज्यादा है। ऐसे पुत्रों को समझदारी से अलग रहना चाहिए और माता-पिता का दूर रहकर ही ध्यान रखना चाहिए। झगड़े से कुछ हासिल नहीं होता है। धीरे-धीरे पत्नी को भी समझ आने लगता है। यह सत्ता का अहंकार है, जब ऐसे लोगों को पूर्णरूपेण सत्ता सौंप देते हैं तब उनकी ईगो शान्त हो जाती है। सारे कार्य की पत्नी के माध्यम से करने चाहिए जिससे उसका अहम संतुष्ट हो जाता है।
ReplyDeleteमधुसिंह जी आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है।
ReplyDeleteरविकरजी, आभार आपका। बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteशादी का रहस्य और जीवन का आनद या अनुभव निहायत व्यक्तिगत होता है जिस पर अगले किसी का कमेन्ट उसका अनुभव होगा न की एक निर्विकार सत्य ..
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