Sunday, November 6, 2011

साठ वर्ष का सफर कितना सुन्‍दर कितना मधुर



जीवन का फलसफा भी कुछ अजीब ही है। कभी लगता है कि जीवन हमारी मुठ्ठी में उन रेत-कणों की तरह है जो प्रतिपल फिसल रहे हैं। साल दर साल हमारी मुठ्ठी रीतती जा रही है। लेकिन आज लग रहा है कि जीवन कदम दर कदम हर एक पड़ाव को पार करते रहने का नाम हैं। हम अपनी चाही हुई मंजिल तक जा पहुंचते हैं। एक-एक सीढ़ी चढ़कर हम पर्वत को लांघ लेते हैं। आज मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। साठ वर्ष जीवन में बहुत मायने रखते हैं। कोई कहता है कि हम बस अब थक गए हैं, दुनिया भी कहती है कि तुम अब चुक गए हो, बस आराम करो। लेकिन कैसा आराम? मुझे लग रहा है कि सफर तो अब प्रारम्‍भ हुआ है। अभी तक तो सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए एक मंजिल तक पहुंचे हैं। जैसे एक पर्वतारोही पर्वत पर जाकर चैन की सांस लेता है और वहाँ से दुनिया को देखने की कोशिश करता है बस वैसे ही आज लग रहा है कि साठ वर्ष पूर्ण हो गए, मैं पर्वतनुमा अपनी मंजिल तक प‍हुंच गयी और यहाँ से अब दुनिया को निहारना है। सारी दुनिया अब स्‍पष्‍ट दिखायी दे रही है। तलहटी में बचपन बसा है, कुछ धुंधला सा ही दिखायी दे रहा है लेकिन सबसे मनोरम शायद वही लग रहा है।
ऊँचे पर्वत पर आकर या उम्र के इस पड़ाव पर आकर सब कुछ तो साफ दिखने लगता है। सारे ही नाते-रिश्‍ते, मित्र-साथी, वफा-बेवफा सभी कुछ। तलहटी पर बसा बचपन, दूब की तरह होता है। जरा सा ही स्‍नेह का पानी मिल जाए, लहलहा जाता है। दूब की तरह ही कभी समाप्‍त नहीं होता। हमेशा यादों में बसा रहता है। बचपन में दूब की तरह ही जब हर कोई अपने पैरों से हमें रौंदता है तो लगता है कि हम कब इस पेड़ की तरह बड़े होंगे? कब हम पर भी फल लगेंगे? कब हम भी उपयोगी बनेंगे? लेकिन आज वही दूब सा बचपन प्‍यारा लगने लगता है, उसकी यादों में खो जाने का मन करता है। बचपन खेलते-कूदते, डाँट-फटकार खाते, सपने देखते चुटकी बजाते ही बीत गया। हर कोई कहने लगा कि अब तुम बच्‍चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो। हम भी सपने देखते बड़े होने के, घण्‍टों-घण्‍टों नींद नहीं आती, बस जीवन के सपने ही आँखों में तैरते रहते थे। हम क्‍या बनेंगे, यह सपने हमारे पास नहीं थे। क्‍योंकि शायद हमारी पीढ़ी में ऐसे सपने हमारे माता-पिता देखा करते थे। इसलिए कुरेदते भी नहीं थे अपने मन को, कि तुझे किधर जाना है? कभी कुरेद भी लिया तो दुख ही हाथ आता था। क्‍योंकि पिता का हुक्‍म सुनायी पड़ जाता था कि तुम्‍हें यह करना है। बस मुझे तो यही संतोष है कि मेरे पिता ने हमें शिक्षा दिलाने का सपना देखा, हमें बुद्धिमान बनाने का सपना देखा। यदि वे यह सपना नहीं देखते तो हम भी आज न जाने किस मुकाम पर जा पहुंचते? कौन से पर्वत पर मैं खड़ी होती? पति के सहारे? या बच्‍चों के सहारे? आज शिक्षा के सहारे ना केवल मजबूती से उम्र के इस पड़ाव पर पैर सीधे खड़े हैं अपितु सारे परिवार को भी थामने का साहस इन पैरों में आ बसा है।
पर्वत से झांकते हुए युवावस्‍था के फलदार वृक्ष दिखायी दे रहे हैं। कभी इसी वृक्ष को कोई निर्ममता से काट देता था तो कोई ममता से पानी पिला देता था। जीवन पेड़ की तरह बड़ा होता है, कटता भी है, छंटता भी है, तो कोई पानी भी डालता है और कोई खाद भी बनता है। फल और फूल भी आते है तो पतझड़ और बसन्‍त भी खिलते हैं। लेकिन पेड़ के फल कैसे हैं बस इसी से पेड़ की ख्‍याति होती है। मीठे फल लगे हैं तो दूर-दूर तक लोग कहते हैं कि फलां पेड़ के फल बहुत मीठे हैं। यदि फल मीठे नहीं हैं तो लोग उस तरफ झांकते भी नहीं। लेकिन माँ के रूप में विकसित इस छायादार पेड़ में जब फल लगते हैं तब उस माँ को अपने फल बहुत ही मीठे और सुगन्धित प्रतीत होते हैं। लेकिन फलों से विरल कभी पेड़ की भी अपनी खुशबू होती है, जैसे चन्‍दन की। देवदार से पेड़, पर्वतों को जब छूते हैं तब भला किसे नहीं लुभाते? कभी झांककर देखा है इन देवदार के पेड़ों की जड़ों को? कहाँ उनकी जड़ होती है और कहाँ उनका अन्तिम छोर होता है? बस जीवन देवदार जैसा ही बन जाए!
पर्वतों के ऊपर भी समतल होता है। बहुत सारा स्‍थान। वातावरण एकदम शुद्ध। गहरी सांस लेकर उस प्राण वायु को अपने अन्‍दर समेट लेने की प्रतिपल इच्‍छा होती है। दूर दूर से आकर पक्षी भी यहाँ गुटरगूं करते हैं। पैरों की धरती के नीचे दबा होता है बेशकीमती खजाना, बस थोड़ा सा खोदों तो न जाने जीवन के कितने रत्‍न यहाँ दबे मिल जाते हैं। जीवन का सबसे मधुर पल, जहाँ अब और ऊपर जाने की चाहत नहीं रहती। अब और परिश्रम करने की आवश्‍यकता नहीं रहती। अब और फल और फूल बिखरने की जरूरत नहीं होती। बस संघर्ष के दिन समाप्‍त, अब तो केवल प्रकृति को निहारना है। देखनी है अठखेलियां वृक्षों पर बैठे नन्‍हें पक्षियों की। देखने हैं बस रहे घौंसलों को और ममताभरी आँखों से उस रस को पीना है जो चिड़िया अपनी चोंच से अपने नवजात को चुग्‍गे के रूप में देती है। सब दूर से देखना है, आनन्दित होना है। आगे बढ़कर, दोनों बाहों को फैलाकर इस प्रकृति को अपने पाश में भर लेना है। कितने मधुर क्षण हैं, कितने अपने से पल हैं? साठ वर्ष पार कर लेने पर ठहराव की प्रतीति हो रही है। मन के आनन्‍द को बाहर निकालकर उससे साक्षात्‍कार करने की चाहत जन्‍म ले रही है। अनुभवों के निचोड़ से जीवन को सींचने का मन हो रहा है। खुले आसमान के नीचे, अपने ही बनाए पर्वत पर बैठकर जीवन की पुस्तिका के पृष्‍ठ उलट-पुलटकर पढ़ने का मन हो रहा है। कभी-कभी इन पर्वतों पर कंदराएं भी दिख जाती हैं, ये कंदराएं एकान्‍त में ले जाती हैं। तब हाथों में कूंची लेकर जीवन के रंगों से इन कंदराओं को रंगने का अपना शौक शायद पूरा हो सके। अब तो जीवन स्‍पष्‍ट है, सभी कुछ स्‍पष्‍ट दिख भी रहा है। बस इसके आनन्‍द में उतर जाना है। बहुत कुछ पाया है इस जीवन से। खोया क्‍या है? अक्‍सर लोग प्रश्‍न करते हैं। लेकिन खोने को कुछ था ही नहीं, इसलिए पाया ही पाया है। ना तो बचपन में चाँदी की चम्‍मच मुँह में थी और ना ही जहाँ इस पौधे को रोपा गया था वहाँ कोई बड़ा बगीचा था, तो खोने को क्‍या था? समुद्र मन्‍थन में विष भी था तो अमृत भी, इसी प्रकार जीवन मन्‍थन में विष भी था और अमृत भी। विष को औषधि मान लिया और अमृत को जीवन। बस कदम दर कदम बढ़ाते हुए पहुंच गए इस साठ वर्ष के पहाड़ पर। मन में संतोष है कि यह पहाड़ हमारा अपना बनाया हुआ है, यहाँ अब शान्‍तचित्त होकर दुनिया को अपनी दृष्टि से देखेंगे। पहाड़ के समतल पर एक बगीचा लगाएंगे, उस बगीचे में दुनिया जहान के पक्षियों को बुलाएंगे और उनकी चहचहाट से अपने मन को तृप्‍त करेंगे।  
( अपने ही जन्‍मदिन 9 नवम्‍बर के अवसर पर, जो मुझे साठ वर्ष पूर्ण करने पर खुशी दे रहा है। इसे आज देव उठनी एकादशी पर लिखा गया है क्‍योंकि तिथि के अनुसार आज ही पूर्ण हो रहे हैं जीवन के अनमोल साठ वर्ष)   

62 comments:

  1. षष्ठिपूर्ति की बधाई !

    आगे भी जीवन इसी तरह प्रवाहमान बना रहे !

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  2. आपके उपन्यास ’अरण्य में सूरज’ पर दिये गये परिचय के आधार पर आज सुबह ही आपका जन्मदिन नौ तारीख में नोट किया था, और अभी आपकी पोस्ट।
    खैर, जीवन के सार्थक साठ वर्ष जीने की देवोत्थान एकादशी के अनुसार आज ही हार्दिक बधाई।

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  3. आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई, आपके अनुभवों से हम साख रहे हैं, बहुत कुछ।

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  4. sabse pahle to janmdin ki badhayee.....ek-ek pangti sanjokar rakhne ke layak,man gaye aapki lekhni ko.......wah.

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  5. सुहाने सफर के साठवें मील के पत्थर तक पहुँचने के लिए आपको बहुत- बहुत बधाइयाँ! आप और भी ऊंची चोटियों पर पहुँचें और नज़ारों का लुत्फ़ उठाएँ, यही शुभकामनाएँ!!

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  6. बधाई स्वीकारे ! जीवन का सही लेख-जोखा ...
    शुभकामनाएँ!

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  7. आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई,

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  8. जन्‍मदिन की बधाई तो सर आँखों पर लेकिन आलेख के बारे में भी तो अपनी राय प्रकट कर दें। नहीं तो लिखा बेकार ही जाएगा। प्‍लीज ------

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  9. देश के वरिष्ठ नागरिक बनने पर बधाई ।
    बहुत सुन्दर तरीके से अपने उदगार प्रकट किये हैं ।
    इसके बाद एक एक पल अनुभवों के फलों का रस लेते हुए आनंदमयी होना चाहिए ।
    सच है , जिंदगी तो अभी शुरू हुई है ।

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  10. आपका पोस्ट अच्छा लगा ।मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  11. मानें तो रोज वसंत है ....
    आज से शुरुआत ही मानें ...
    साठ वर्ष पूरे होने पर आपको शुभकामनायें !

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  12. विष को औषधि और अमृत को जीवन मानने की इस महत्वपूर्ण सीख के लिये साधुवाद सहित.
    षष्ठीपूर्ति की अनेकानेक बधाईयां और आगे के जीवन की उपलब्धियोंपूर्ण आनन्ददायी यात्रा हेतु शुभकामनाएँ

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  13. आदरणीय आजीत जी,

    इस उम्र में इंसान का व्यक्तित्व एक प्रकाश स्तंभ की तरह हो जाता है, जिससे कई लोग दिशा निधारण करते हैं.... आपको षष्ठिपूर्ति की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  14. जन्मदिन की हार्दिक बधाई

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  15. अरे अजीत जी ! सुखद इत्तेफाक..मेरी मम्मी का जन्म दिन भी ९ नवम्वर को होता है.आपको दोगुनी बधाई :) और लेख के तो कहने ही क्या बहुत सुन्दर लिखा है.

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  16. पहली बार आई हूँ आपके ब्लॉग पर
    अच्छा लगा आपका लेख पढ़कर,
    जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई !

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  17. आलेख का यह भाग ऊँचें पर्वत पर आकर .........यही जीवन की सच्चाई है मुझे बहुत अच्छा लगा बधाई लेख के लिए जन्म दिन की बाद में .

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  18. Mausi,

    I feel so fortunate that I am part of this Banyan tree...this is such a beautiful post and life analysis. What better metaphor you could have taken....just love every word of it.

    Happy 60th B'Day and Happiness always,
    Ruchi

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  19. बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई।
    पूरा-का-पूरा आलेख लगा एक कविता पढ़ रहा हूं। एक से एक बिम्बात्मक छटा आपने बिखेरी है। आशा और उत्साह से लबरेज़ यह पोस्ट जीवन की एक नई पारी की शुरुआत के समान है।

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  20. जीवन का पुनरावलोकन करता हुआ आलेख बहुत सुन्दर है। मुझे लगता है कि 40, 50, 60 के जन्मदिन लैंडमार्क होते हैं और हमें नयी दृष्टि देते चलते हैं।

    जन्मदिन की बधाई! ये दिन बार बार आयें, यही शुभकामना है।

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  21. षष्टिपूर्ति की शुभकामनाएं.

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  22. जन्मदिन की आपको हार्दिक बधाई!

    देवोत्थान पर्व की भी शुभकामनाएँ!

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  23. जन्‍म दिन की हार्दिक बधाई ..
    थकता वो है जिसके पास आगे के लिए कोई कार्यक्रम नहीं ..
    महत्‍वाकांक्षी और खुशमिजाज लोगों का सफर सुंदर और मधुर बना रहता है ..
    उम्र से तो हर क्षेत्र में पपिक्‍वता बढती है !!

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  24. सुन्दर आलेख!
    आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई!

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  25. साठ वर्ष पूरे होने पर आपको शुभकामनायें !

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  26. आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...... जीवन का सतत प्रवाह यूँ ही बना रहे, आपके अनमोल विचार हमें भी जीवन का फलसफा सीखने की राह सुझाते रहते हैं..... आभार

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  27. तिथि के अनुसार जन्मदिन की ढेरों बधाई और शुभकामनायें ..

    भले ही पहाड़ पर पहुँच कर नीचे डूब धुंधली दिखती हो पर सबसे ज्यादा हरियाली वही हैं .. बहुत सुन्दर बिम्ब संजोये हैं जीवन के प्रति ... सुन्दर लेख ..

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  28. इस पेड़ में जितने फल लगे ये और झुका...

    शिखर को चूम कर भी ये पर्वत तलहटी को नहीं भूला...

    हम सभी को ममता के इस बरगद की छाया सालों-साल मिलती रहे...

    सही-गलत की पहचान के लिए अनुभवी मार्गदर्शन मिलता रहे...

    इसी कामना के साथ षष्ठीपूर्ति की बहुत बहुत बधाई...

    जय हिंद...

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  29. आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई………जीवन यात्रा का बहुत सुन्दर आकलन किया है।

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  30. ''समुद्र मन्‍थन में विष भी था तो अमृत भी, इसी प्रकार जीवन मन्‍थन में विष भी था और अमृत भी। विष को औषधि मान लिया और अमृत को जीवन।''

    ..... बस यही है जीवन मंत्र।
    जिसने इस मंत्र को समझ लिया मानो उसका जीवन सरल हो गया....
    जन्‍मदिन की शुभकामनाएं.....
    दुआ है कि आपकी कलम निरंतर चलती रहे और आपकी लेखनी को पढने का अवसर हमेशा मिलते रहे।
    एक बार फिर शुभकामनाएं..........

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  31. जन्मदिन की हार्दिक बधाई!

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  32. उम्र का वह पड़ाव जहाँ आकर रिटायर होना घोषित कर दिया जाता है, वहाँ आकर आपने जीवन प्रवाह को और भी गतिमान बनाया है... परमात्मा से प्रार्थना है कि यह प्रवाह यूं ही बना रहे!! जन्मदिवस की अशेष शुभकामनाएं!!

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  33. अजीत जी षष्ठी पूर्ति पर बहुत बहुत बधाई । 60 वर्ष के लंबे सफर को आपने छोटे से लेख में खूबसूरती से समेटा है । आपने जीवन की कितनी भी धूपछांव देखी हों आपके लेख से तो लगता है आप थकी नहीं हैं आपके मन में जीवन की नयी पारी शुरू करने का उछाह हिलारे मार रहा है । पर्वत के उपर बगीचा बनाने की कल्पना उसी का प्रतीक है । जीवन के साठ दशक पूरे करने पर आपको अदूरे सपने . अधूरी इच्छाएं परी करने के लिए शुभकामनाएं अपने बगीचे में खबी हमें भी बुला लिजिएगा ।

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  34. खूबसूरत कविता सा ही वर्णन ...
    जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें ! वास्तविक जगत के साथ ब्लॉग जगत भी हमेशा आपकी अविरल स्नेहमय धार से नहाता रहे !

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  35. आपने मनुष्य जीवन के पड़ावों का प्रकृति के साथ सुन्दर सामंजस्य बिठाया है है। मनुष्य भी प्रकृति का ही एक अंग है किन्तु इस बात को बहुत कम लोग समझ पाते हैं। बीज से पौधा, पौधे से वृक्ष और फिर उसका अन्त। छोटे से स्रोत से जल का निकल कर नदी बनना, सुमद्र तक पहुँचाने वाले मार्ग में उसका विशालतर होते जाना, समुद्र तक पहुँचने के पूर्व डेल्टा में परिणित हो जाना और अन्त में समुद्र से मिलन अर्थात् सरिता की मृत्यु। ऐसा ही तो है मनुष्य का जीवन भी, शिशु अवस्था से बाल्यावस्था, बाल्यावस्था से तरुणावस्था, फिर युवावस्था, उसके बाद वृद्धावस्था और फिर इस काया का अन्त। कहाँ कोई अन्तर है प्रकृति और मनुष्य में?

    जो व्यक्ति याद रखते हैँ कि वृक्ष छाया, मधुर फल प्रदान करता है, नदी प्राणदायिनी जल प्रदान करती है उसी प्रकार से मनुष्य को भी जीवनपर्यन्त परोपकार करते रहना है, उन्हीं का जीवन सफल है।

    जीवन के साठ वसन्त पूर्ण करने की बधाई!

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  36. एक सुन्दर पठनीय निबंध -बहुत बहुत शुभकामनायें!
    षष्ठीपूर्ति अभिनन्दन भी अभी ही !

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  37. स्पष्ट दिखाई दे रहा है मन के देवता पूरी तरह जाग गये हैं इस शुभ-दिवस पर!
    सारे मौसम बीत चुके, अब उजले दिनों का आनन्द और नेह की गुनगुनी धूप आपकी ऊर्जा को निरंतर सृजन की भूमिका में सक्रिय रख औरों के लिये प्रेरणा का स्रोत बनाये रखे.
    बहुत-बहुत बधाई !

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  38. आदरणीय महोदया

    aap shatau hon
    hamaari dhero shubhkaamnaye

    अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
    भवदीय
    (अशोक कुमार शुक्ला)

    महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

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  39. इसी प्रकार जीवन मन्‍थन में विष भी था और अमृत भी। विष को औषधि मान लिया और अमृत को जीवन।

    एक सफल-संतुष्ट जीवन जीने का मूलमंत्र दे दिया आपने.

    बहुत बहुत मुबारक हो जन्मदिन.

    अपनी षष्ठिपूर्ति पर इतना सुन्दर आलेख लिखा...आनंद आ गया पढ़कर.

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  40. आलेख हमेशा की तरह प्रेरक, अनुभवजनित और सकारात्मक दृष्टिकोण लिये है। जीवन कैसा बीता, ये खुद के नजरिये पर ज्यादा निर्भर करता है और आपके पास पॉजिटिव एट्टीच्यूड है जिससे औरों को भी शक्ति मिलती है।

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  41. मन में संतोष है कि यह पहाड़ हमारा अपना बनाया हुआ है, यहाँ अब शान्‍तचित्त होकर दुनिया को अपनी दृष्टि से देखेंगे। पहाड़ के समतल पर एक बगीचा लगाएंगे, उस बगीचे में दुनिया जहान के पक्षियों को बुलाएंगे और उनकी चहचहाट से अपने मन को तृप्‍त करेंगे।
    जनम दिन पर बधाई. । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।

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  42. षष्ठिपूर्ति पर लिखा आपका यह आलेख दिल को छूने वाला, मन को हर्षाने वाला है।
    ..बधाई के साथ मेरा प्रणाम भी स्वीकार करें।

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  43. आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें.... आपके लेखों में प्रकृति का वर्णन हमेशा से ही बहुत पसंद रहा है मुझे और आज तो आपने इतना अच्छा लिखा है,कि कहने के लिए शब्द ही नहीं है मेरे पास, :)प्रकृति को अपने जीवन के अनुभवों से जोड़ते हुए बड़े ही मनभावन ढंग से जीवन के अलग-अलग रंगों को बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में उकेरा है अपने! आभार...

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  44. जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
    लेख बहुत भावमय होके लिखा गया है,उत्कृष्ट !

    कृपया पधारें ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  45. षष्टिपूर्ति के अवसर पर अनेकानेक बधाइयां॥

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    * आदरणीया दीदी अजित गुप्ता जी*
    सादर प्रणाम !

    जन्मदिवस की
    हार्दिक बधाई ! शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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    * आदरणीया दीदी अजित गुप्ता जी*
    सादर प्रणाम !

    जन्मदिवस की
    हार्दिक बधाई ! शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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    आदरणीया दीदी अजित गुप्ता जी

    बढ़े प्रतिष्ठा मान धन , न हो सुखों का अंत !
    शुभ मंगलमय आपको अगले साठ बसंत !!


    षष्ठिपूर्ति की हार्दिक बधाई !
    शुभकामनाएं !
    मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार
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  49. अजितदी..जन्मदिन की ढेरों बधाई... "तलहटी में बचपन बसा है, कुछ धुंधला सा ही दिखायी दे रहा है लेकिन सबसे मनोरम शायद वही लग रहा है। -------- वैसे तो एक एक वाक्य मखमली खूबसूरत एहसास देता हुआ है फिर भी बचपन का वर्णन मन मोह गया....

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  50. आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई..बहुत सुन्दर तरीके से अपने उदगार प्रकट किये हैं ..

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  51. गुजरे जीवन पर बहुत सुंदर द्रष्टिपात...आपके जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।

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  52. मृदुल कीर्तिजी ने यह संदेश मेरे ईमेल पर दिया है और ब्‍लाग पर लगाने के लिए कहा है।
    प्रिय अजित जी
    आपको जन्म-दिन की बहुत- बहुत हार्दिक शुभ कामनाएं
    साथ वर्ष का सफ़र मधुर तो आगे का मधुरतम हो बस साथ में सठियाने के प्रति सजग रहना . आ गयी हंसी , आप सदा सुखी संपन्न प्रसन्न रहें
    इतनी अक्ल होती तो आपसे ही दोस्ती नहीं होती अतः मेरी ओर से कृपया ब्लॉग पर लगा दें यदि अच्छी लगी हों यह पंक्तियाँ
    मृदुल

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  53. बधाई ... जनम दिन की हार्दिक बधाई ... जीवन के अनुभव और सतत प्रवाह की प्रेरणा लिए आपकी पोस्ट सभी को प्रेरणा दे रही है ...

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  54. जन्मदिन की थोड़ी देर से दी गई बधाई स्वीकारें। यदि पीछे मुड़कर देखने में इतना संतोष व तृप्ति है तो जीवन सफल हुआ। मुझे नहीं लगता कि अधिक लोग यूँ सोच पाते हैं। आपने जीवन में इतनी सफलता पाई, भविष्य भी सुखद व सफल रहे।
    घुघूती बासूती

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  55. जन्मदिन की बधाई।

    इन ६० वर्षों में, क्या खोया क्या पाया, इसे भी हम सबके साथ बांटते चलिये।

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  56. मृदुल कीर्तिजी की एक टिप्‍पणी जो मेल से मिली और उनके कहने पर यहां पोस्‍ट कर रही हूं।

    अनुभवों का संकलन , अनुभूतियों का कोष है.
    साठ वर्षों में बहुत कुछ पा लिया संतोष है.
    प्रभु कृपा और स्वयं अपने ज्ञान-बल की शक्ति से.
    अब मुझे लेना ना देना , रोष या अनुरक्ति से.
    ऊर्जा का मूल मन तो आयु दृष्टा, देखती,
    समय पट पर लिख सको तो कौन कर सकता क्षति
    डॉ मृदुल कीर्ति

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  57. जीवन के 60 वर्ष पूर्ण करने पर बधाई व शुभकामनाएँ.

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  58. आदरणीया अजित गुप्ता जी
    नमस्कार !
    देर से ही सही
    जीवन के 60 वर्ष पूर्ण करने पर बधाई व शुभकामनाएँ.

    संजय भास्कर

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  59. मैं बहुत देर बाद आयी चलो देर से ही सही जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।विचारनीय आलेख। बधाई।

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