ब्लाग लिखने से पूर्व नेट पर हिन्द-युग्म जैसी कुछ साइट की पाठक थी। हिन्द-युग्म पर कभी दोहे की और कभी गजल की कक्षाएं चलती थी। मैं इन दोनों विधाओं की बारीकियां समझने के लिए इन कक्षाओं के पाठ नियमित पढ़ने की कोशिश करती थी। लेकिन टिप्पणी नहीं करती थी। दोहे की कक्षा आचार्य संजीव सलिल जी लेते थे। एक दिन उन्होंने दुख के साथ लिखा कि ऐसा लगता है कि इस कक्षा में किसी की रुचि नहीं हैं तो क्या इसे बन्द कर देना चाहिए? मुझे लगा कि इतनी अच्छी कक्षा यदि छात्रों के अभाव में बन्द हो जाएगी तो यह सभी के लिए दुखकारी होगी। मैंने तब उन्हें पहली बार टिप्पणी की कि आपकी कक्षाओं से हम सभी लाभान्वित हो रहे हैं और आप इसे जारी रखिए। क्योंकि मैं समझ गयी थी कि किसी भी विधा के लिए जितना ज्ञान मिल सके उतना ही कम है। मुझे भी तब समझ आने लगा था कि दोहों में भी कितनी पेचीदगियां हैं। यह केवल 13-11 का ही मात्र खेल नहीं है। हम भी मात्रायें गिनते थे लेकिन कहीं न कहीं चूक हो ही जाती थी। लेकिन सलिल जी ने छोटी से छोटी बात को भी समझाया और हमारी प्रत्येक गलती पर ध्यान आकर्षित किया। मैं उनकी सदैव ॠणी रहूंगी। हमें लगता था कि हमने बहुत अच्छा दोहा लिखा है लेकिन उसमें कोई न कोई दोष रह ही जाता था और वे हमें बताते थे कि इसमें यह दोष रह गया है।
कक्षा के समापन के दिनों में उन्होंने कहा कि जो कुछ भी सार-संक्षेप हैं उसे आप लिखिए। तब मैंने दोहा-सार लिखा। मुझे लगता है कि शायद यह संक्षिप्त जानकारी आप सभी के लिए उपयोगी हो सकती है तो यहाँ आप सभी के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ।
दोहा - कक्षा - सार
1- दोहे की दो पंक्तियों में चार चरण होते हैं।
2- प्रथम एवं तृतीय चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं ये विषम चरण हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं और ये सम चरण हैं।
3- द्वितीय और चतुर्थ चरण का अन्तिम शब्द गुरु-लघु होता है। जैसे – और, खूब, जाय आदि। साथ ही अन्तिम अक्षर समान होता है। जैसे द्वितीय चरण में अन्तिम अक्षर म है तो चतुर्थ चरण में भी म ही होना चाहिए। जैसे – काम-राम-धाम आदि।
4- गुरु या दीर्घ मात्रा के लिए 2 का प्रयोग करते हैं जबकि लघु मात्रा के लिए 1 का प्रयोग होता है।
5- दोहे में 8 गण होते हैं जिनका सूत्र है – यमाताराजभानसलगा। ये गण हैं-
य गण – यमाता – 122
म गण – मातारा – 222
त गण – ताराज – 221
र गण – राजभा – 212
ज गण – जभान – 121
भ गण – भानस – 211
न गण – नसल – 111
स गण – सलगा – 112
6- दोहे के सम चरणों के प्रथम शब्द में जगण अर्थात 121 मात्राओं का प्रयोग वर्जित है।
7- मात्राओं की गणना – अक्षर के उच्चारण में लगने वाले समय की द्योतक हैं मात्राएं। जैसे अ अक्षर में समय कम लगता है जबकि आ अक्षर में समय अधिक लगता है अत: अ अक्षर की मात्रा हुई एक अर्थात लघु और आ अक्षर की हो गयी दो अर्थात गुरु। जिन अक्षरों पर चन्द्र बिन्दु है वे भी लघु ही होंगे। तथा जिन अक्षरों के साथ र की मात्रा मिश्रित है वे भी लघु ही होंगे जैसे प्र, क्र, श्र आदि। आधे अक्षर प्रथम अक्षर के साथ संयुक्त होकर दीर्घ मात्रा बनेंगी। जैसे – प्रकल्प में प्र की 1 और क और ल् की मिलकर दो मात्रा होंगी।
8- जैसे गजल में बहर होती है वैसे ही दोहों के भी 23 प्रकार हैं। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्हीं की गणना को विभिन्न प्रकारों में बाँटा गया है। जो निम्न प्रकार है -
१. भ्रामर २२ ४ २६ ४८
२. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८
३. शरभ २० ८ २८ ४८
४. श्येन १९ १० २९ ४८
५. मंडूक १८ १२ ३० ४८
६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८
७. करभ १६ १६ ३२ ४८
८. नर १५ १८ ३३ ४८
९. हंस १४ २० ३४ ४८
१०. गयंद १३ २२ ३५ ४८
११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८
१२. बल ११ २६ ३८ ४८
१३. पान १० २८ ३८ ४८
१४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८
१५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८
१६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८
१७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८
१८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८
१९. व्याल ४ ४० ४४ ४८
२०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८
२१. श्वान २ ४४ ४६ ४८
२२. उदर १ ४६ ४७ ४८
२३. सर्प ० ४८ ४८ ४८
२. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८
३. शरभ २० ८ २८ ४८
४. श्येन १९ १० २९ ४८
५. मंडूक १८ १२ ३० ४८
६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८
७. करभ १६ १६ ३२ ४८
८. नर १५ १८ ३३ ४८
९. हंस १४ २० ३४ ४८
१०. गयंद १३ २२ ३५ ४८
११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८
१२. बल ११ २६ ३८ ४८
१३. पान १० २८ ३८ ४८
१४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८
१५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८
१६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८
१७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८
१८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८
१९. व्याल ४ ४० ४४ ४८
२०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८
२१. श्वान २ ४४ ४६ ४८
२२. उदर १ ४६ ४७ ४८
२३. सर्प ० ४८ ४८ ४८
दोहा छंद के अतिरिक्त रोला, सोरठा और कुण्डली के बारे में भी हमने जानकारी प्राप्त की है। इनका सार भी निम्न प्रकार से है -
रोला – यह भी दोहे की तरह ही 24-24 मात्राओं का छंद होता है। इसमें दोहे के विपरीत 11/13 की यति होती है। अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। दोहे में अन्त में गुरु लघु मात्रा होती है जबकि रोला में दो गुरु होते हैं। लेकिन कभी-कभी दो लघु भी होते हैं। (आचार्य जी मैंने एक पुस्तक में पढ़ा है कि रोला के अन्त में दो लघु होते हैं, इसको स्पष्ट करें।)
कुण्डली – कुण्डली में छ पद/चरण होते हैं अर्थात तीन छंद। जिनमें एक दोहा और दो रोला के छंद होते हैं। प्रथम छंद में दोहा होता है और दूसरे व तीसरे छंद में रोला होता है। लेकिन दोहे और रोले को जोड़ने के लिए दोहे के चतुर्थ पद को पुन: रोने के प्रथम पद में लिखते हैं। कुण्डली के पांचवे पद में कवि का नाम लिखने की प्रथा है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है तथा अन्तिम पद का शब्द और दोहे का प्रथम या द्वितीय भी शब्द समान होना चाहिए। जैसे साँप जब कुण्डली मारे बैठा होता है तब उसकी पूँछ और मुँह एक समान दिखायी देते हैं।
उदाहरण –
लोकतन्त्र की गूँज है, लोक मिले ना खोज
राजतन्त्र ही रह गया, वोट बिके हैं रोज
वोट बिके हैं रोज, देश की चिन्ता किसको
भाषण पढ़ते आज, बोलते नेता इनको
हाथ हिलाते देख, यह मनसा राजतन्त्र की
लोक कहाँ हैं सोच, हार है लोकतन्त्र की।
दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान.
चंचल जल दिन चारि को, ठाऊँ न रहत निदान.
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै.
मीठे बचन सुने, बिनय सब ही की कीजै.
कह गिरिधर कविराय, अरे! यह सब घट तौलत.
पाहून निशि-दिन चारि, रहत सब ही के दौलत.
चंचल जल दिन चारि को, ठाऊँ न रहत निदान.
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै.
मीठे बचन सुने, बिनय सब ही की कीजै.
कह गिरिधर कविराय, अरे! यह सब घट तौलत.
पाहून निशि-दिन चारि, रहत सब ही के दौलत.
सोरठा – सोरठा में भी 11/13 पर यति। लेकिन पदांत बंधन विषम चरण अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में होता है। दोहे को उल्टा करने पर सोरठा बनता है।
जैसे -
दोहा: काल ग्रन्थ का पृष्ठ नव, दे सुख-यश-उत्कर्ष.
करनी के हस्ताक्षर, अंकित करें सहर्ष.
सोरठा- दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रन्थ का पृष्ठ नव.
अंकित करे सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर.
सोरठा- जो काबिल फनकार, जो अच्छे इन्सान.
है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?
दोहा- जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार.
ऊपरवाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?
करनी के हस्ताक्षर, अंकित करें सहर्ष.
सोरठा- दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रन्थ का पृष्ठ नव.
अंकित करे सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर.
सोरठा- जो काबिल फनकार, जो अच्छे इन्सान.
है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?
दोहा- जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार.
ऊपरवाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?
Goood and useful.
ReplyDeletesundar aur umda jaanke liye aapka
ReplyDeletebahut bahut aabhar
बहुत ही सारगर्वित प्रस्तुति.....आभार
ReplyDeleteसुन्दर एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट.
ReplyDelete:-(
ReplyDeleteबहुत दिन से सोच रहे थे की आचार्य (गिरिजेश राव जी) से निवेदन करों की दोहे की बारीकियों पर पोस्ट लिखें ........ आपने लिख दी....... सरसरी तौर पर पढ़ी है..... कोशिश करूँगा समझने की.........
ReplyDeleteआभार.
बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी एक साथ जानने को मिली ...आठवां पॉइंट अभी समझने में वक्त लगेगा ...
ReplyDeleteयदि इसको और विस्तार से बताया जा सके तो कृपा होगी ..
बुकमार्क कर ली है ये पोस्ट.....बहुत काम की चीज़ें विस्तार से समझाई हैं...शुक्रिया
ReplyDeleteदीदीश्री,
ReplyDeleteअभी तो सिर्फ कुण्डली के बारे मे थोडा कुछ समझ में आया है । बाकि तो सब जैसे उपर से गुजर गया लगता है ।
आप माने या ना माने मेरे जैसे मंद बुद्धी के बालक के ये ज्ञान ना कभी समझ आया और ना ही आ सकेगा | लेकिन किसी को बताना होगा तो ये पोस्ट बहुत काम आएगी | इस लिए इसे बुक मार्क कर लिया है |
ReplyDeleteBeautiful and informative post.
ReplyDeleteThanks.
सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट.
ReplyDeleteसंगीता जी, यदि आप इतनी विस्तृत जानकारी चाहती हैं तो आप www.hindyugm.com पर जाएं, वहाँ कक्षाएं करके टाइटिल बार पर दोहे की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाएगी। यदि समझने मे कठिनाई आए तो फिर मैं बता दूंगी।
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ।
ReplyDeletebaap re!! itni technical baaten hindi lekhan me bhi..........kya Di!!
ReplyDeleteham to bas jo dimag me soch banta hai usko uker dete hain........sabdo me...:)
dhanywad...ye sab batane ke liye..
बहुत विस्तार से सभी जानकारी जुटी है आपने ।
ReplyDeleteदोहा कार्यशाला हमने भी अटेंड की थी । बहुत उपयोगी पोस्ट ।
ज्ञानवर्धक और उपयोगी प्रस्तुति...
ReplyDeleteइतने बन्धनों का छन्द या बन्ध, कहाँ भाव प्रारम्भ हो पायेगा।
ReplyDeleteस्कूल में पढ़े कुछ पाठ याद आ गए .महत्वपूर्ण पोस्ट.
ReplyDeleteवाह जी यह बाते तो हमे आज ही पता चली, सच मे हम इन बातो मे अग्याणी ही हे जी, आप ने बहुत बरीक ओर सरल ढंग से समझाया, लेकिन फ़िर भी हमे समझ नही आया, एक दो बार फ़िर पढना पडेगा, आप का धन्यवाद
ReplyDeleteआप भी जुडे.... http://blogparivaar.blogspot.com/
कुछ समझा , कुछ नहीं भी
ReplyDeleteबुकमार्क कर लिया है इस उपयोगी पोस्ट को दुबारा पढने के लिए ...
आभार !
सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक
ReplyDeleteधन्यवाद एक ऐसी सुंदर पोस्ट के लिए.
ReplyDeleteबहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी .....आभार
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाये ,नया साल आपको खुशियाँ प्रदान करे
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने लेकिन 8वां प्वाइंट समझने में वक्त लगेगा..इसको जरा और विस्तार से समझाइएगा.....
ReplyDeleteकवि नहीं है तो क्या हुआ, यह जानकारी अच्छे पाठक के लिए भी लाभदायक है॥
ReplyDeleteshukriya ji is gyanvardhak post ke liye. lekin ham burbuk ko ek hi baar me samajh aaye tab na...khair aate hain aapse tution lene ke liye. :)
ReplyDeleteप्रथम श्रेणी वाली जानकारी है.
ReplyDelete.
ReplyDeleteमेरे लिये संग्रहणीय है. दोहों के भेद मेरे संग्रह में नहीं थे. आपने यह सब बताया तो अब इनके नामकरण के कारणों पर विचार करने की इच्छा ज़रूर हो रही है.
.
अजित मेम !
ReplyDeleteप्रणाम !
अच्छा लगा आप कि क्लास में प्रवेश कर ,आप अब श्री आचार्या संजीव सलाल जी कि पूरी शिष्या बन गयी है , आप को विशुद्ध ज्ञान को प्रणाम ! और हमे भी ज्ञान प्रदान करने के लिए साधुवाद मैं पूरण प्रयास करूँगा इसे सिखने का ,
सादर
अजित मेम !
ReplyDeleteएक बात और कहना चौगा कि आप जब भी बीकानेर आये या जब भी मैं उदयपुर आया तो आप का आशीर्वाद अवश्य लेना चाहुगा ,
सादर !
आदरणीय अजित गुप्ताजी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है
नमस्कार और नये साल की शुभकामनाऐं
NAYA SAAL 2011 CARD 4 U
ReplyDelete_________
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please open it
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/”**I**”/
/ “MISS” /
/ “*U.*” /
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“LOVE”
“*IS*”
”LIFE”
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/ “LIFE” /
/ “*IS*” /
/ “ROSE” /
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“ROSE”
“**IS**”
“beautifl”
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/”beautifl”/
/ “**IS**”/
/ “*YOU*” /
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Yad Rakhna mai ne sub se Pehle ap ko Naya Saal Card k sath Wish ki ha….
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
नव वर्ष की शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली !
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
हिंदी-युग्म की उन कक्षाओं को मैंने भी अटेंड किया था आपकी तरह ही छुप-छुप कर।...और उनका ये सार-संक्षेप हम जैसे कितने ही छात्रों के लिये बहुत ही उपयोगी है। सहेज लिया है मैम....शुक्रिया !
ReplyDelete...और आने वाले नये साल की समस्त शुभकामनायें!
आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएं।
ReplyDeleteदोहे की बारीकियां लेखन में रुचि रखने वालों के काम आएंगी। स्वागत योग्य आलेख है। बधाई।
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की अनेक शुभकामनाएं !
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। पिछले साल की क्लास में आए नहीं थे। सो अब नए साल कि क्लास अटैंड किया करेंगे। ये दोहा तो मेरी समझ में आता है, पर लिखने में इतनी चुक होती है कि पूछिए नहीं। इसलिए आजतक उल्टी-पुल्टी मुक्त लाइने लिखने की आदत डल चुकी है।
ReplyDeleteखुशियों भरा हो साल नया आपके लिए
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देने वाली पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteबहुत ही achhee jankaari है dohon के baare में .. ज्ञानवर्धक पोस्ट ...
ReplyDeleteअत्यंत उपयोगी, ज्ञानवर्धक....
ReplyDeleteसादर आभार....