राजस्थान की जब बात आती है तब लोगों के मन में एक दृश्य उभरता है, बस बालू ही बालू। बालू के टीले, अंधड़, भँवर, कहीं कहीं उग आए केक्टस। ऊँट की सवारी और पानी को तरसता सवार। राह भटकते राहगीर। लेकिन इन सबसे परे भी कुछ और है राजस्थान में। राजस्थान का सेठाना, रंग बिरंगी चूंदड़, तीज-त्योहार, मेले-ठेले, और केक्टस पर लगा सुन्दर सा लाल फूल। आज का राजस्थान कभी राजपुताना था और इससे पूर्व रेगिस्तान या मरु भूमि। आज के राजस्थान में मरूभूमि भी है तो अरावली पर्वत मालाएं भी हैं। रेगिस्तान में खिलने वाले केक्टस पर लाल फूल हैं तो वादियों में लहलहाते खेत भी हैं। सात रंगों से बना है राजस्थान। सारे ही रंग हैं यहाँ। जिस धरती पर मीरां ने शाश्वत प्रेम के गीत गाए हों वह भूमि प्रेमरस से पगी हुई है। हम राजस्थानी प्रेम क्या है, इसे समझते हैं।
यहाँ के नायक ने सीमाओं को तोड़ा है, अपने देश से दूर विदेश तक में स्वयं को ना केवल बसाया है अपितु उस देश को भी सदा-सदा के लिए उन्नत कर दिया है। हजारों-लाखों युवा दिल जब राजस्थान से कूच करते हैं तब पीछे छूट गए उनके प्रेम को प्रेम और विरह के शब्द यहीं से मिले हैं। राजस्थानी कभी दुखी नहीं हुआ, उसने संघर्षों में से अपनी राह बनायी है। रेतीले धोरों में भी पानी निकाला है और आँधियों के साथ अपने को खड़ा किया है। यहाँ का कर्मठ व्यक्ति पंख लगाकर उड़ा है और सारी दुनिया को उसने नाप लिया है।
राजस्थान के आँचल में अनेक सभ्याएं पलती हैं, कहीं शेखावाटी है, कहीं मेवाड़, कहीं मारवाड़, कहीं बागड़, कहीं हाड़ौती, कहीं मेवात। सभी के अपने रंग हैं। लेकिन पधारो म्हारा देश की तान हर ओर सुनायी देती है। शेखावाटी और मारवाड़ में पी कहाँ का राग मोर अपने सतरंगी पंख फैलाकर सुनाते हैं तो मेवाड़ में कोयलिया बागों में कुहकती है। बागड़, मेवात और हाड़ौती के घने जंगलों में आज भी बाघों की दहाड़ सुनी जाती है। न जाने कितने सुन्दर और सुदृढ़ किले आज भी अपनी आन-बान-शान से पर्यटकों को सम्मोहित करते हैं। कितनी ही हवेलियां और उनमें बने झरोखें, राजसी ठाट-बाट का चित्र उपस्थित करते हैं।
राजस्थान में क्या नहीं हैं? यहाँ शौर्य रग-रग में टपकता है, यहाँ प्रेम नस-नस में बहता है और यहाँ त्याग कण-कण के बसता है। तभी तो कहते हैं कि म्हारो छैल-छबीलो राजस्थान। कभी यहाँ की मिट्टी को मुठ्ठी में उठाइए, इसका कण-कण सोने की आभा सा चमक उठेगा, आपके हाथों में कभी नहीं चिपकेगा बस हौले से सरक जाएगा। जब हवा अपनी रागिनी छेड़ती है तब यहाँ के मरूस्थल में स्वर लहरियाँ ताना-बाना बुनने लगती हैं और मरूस्थल पर बन जाते हैं अनगिनत मन के धोरे। बस इस बालू रेत को आहिस्ता से सहला दीजिए, मखमली अहसास दे जाएगी लेकिन कभी इसे उड़ाने की भूल की तो आँखों में किरकिरी बन चुभ जाएगी। इस बालू रेत का आकर्षण सारे ही आकर्षणों को फीका कर देता है तभी तो कहते हैं कि मरूस्थल में ही मरीचिका का जन्म होता है।
यहाँ की पहाडियां वीरगाथाओं से भरी पड़ी हैं। न जाने कितने किले सर उठाकर भारत के स्वाभिमान की रक्षा कर रहे हैं? कहीं चित्तौड़, कहीं रणथम्भोर, कहीं लौहागढ़ तो कहीं बूंदी का तारागढ़। सभी में न जाने कितनी कहानियां छिपी हैं। कहीं रानी पद्मिनी जौहर करती है तो कहीं हाड़ी रानी अपना सर काटकर युद्ध में जाते हुए अपने राणा को सैनाणी के रूप में दे देती है, कहीं पन्ना धाय अपने ही पुत्र का बलिदान राजवंश को बचाने के लिए कर देती है। कही राणा सांगा है तो कहीं राणा कुम्भा और महाराणा प्रताप। न जाने कितना इतिहास बिखरा है यहाँ? गाथा पूर्ण ही नहीं होगी, सदियों तक चलती रहेगी, अनथक।
बस ऐसा ही राजस्थान और ऐसे हैं राजस्थानवासी। जिसने भी यहाँ जन्म लिया है उसने इन सारे ही रंगों को अपने अन्दर संजोया है। यहाँ तपते रेगिस्तान में भी जब शाम ढलती है तब लोग स्वर लहरियां बिखेर देते हैं और जब पहाड़ों पर आदिवासी नंगे पैर चलता है तब भी वह प्रेम की धुन ही छेड़ता है। राजपूत जब युद्ध में जाते हैं तो वीर रस सुनायी पड़ता है और जब रानियों को जौहर करना पड़ता है तब भी करुण रस कहीं नहीं आता। यहाँ तो बस यही गीत गूंजता है – मोरया आच्छयो बोल्यो रे ढलती रात में।
और अन्त में इस पोस्ट लिखने की भूमिका। http://satish-saxena.blogspot.com
पर सतीश जी ने इंदुपुरी गोस्वामी पर एक पोस्ट लिखी।
मैंने उस पर यह टिप्पणी की - राजस्थान वाले ऐसे ही प्रेम करते हैं। इस प्रेम को अनमोल समझ कर झोली में बांध लीजिए।
और अनामिका की सदाएं ने यह टिप्पणी की -
और डा.अजित जी क्या आप सच कह रही हैं ?
:):):):)
:):):):)
बस उसी प्रेम का उत्तर देने का प्रयास किया है कि राजस्थान वाले सदा प्रेम ही करते हैं।
बहुत ही सुन्दर जानकारी उपलब्ध करवाता आलेख्।
ReplyDeleteराजस्थान का इतिहास और वहाँ के प्रेम से सराबोर लेख अच्छा लगा ....
ReplyDeleteसचमुच बहुत जरुरी पोस्ट है यह, धन्यवाद
ReplyDeleteराजस्थान में जाकर मैंने भी खुद को प्रेम से सराबोर पाया है।
भारत के उत्तर, पश्चिम और 14 राज्यों में घूमने के बाद आतिथ्य, वातावरण, रहन-सहन, प्रेम, वीरता, परिश्रम, भाषा आदि हर प्रकार से राजस्थान ने ही मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।
प्रणाम स्वीकार करें
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
राजस्थान से संबंधित सीमित शब्दों में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। साधुवाद!
ReplyDeleteराजपूताना की सार्थकता ही इसके साथ है, राजस्थान की छवि को मुकम्मल करती पोस्ट .
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख है...
ReplyDeleteराजस्थान जाना हमेशा ही भला लगता है...इसी माह पहली फ़ुर्सत में राजस्थान जाना है...
aap aise hi prem bhare uttar dete rahen:)
ReplyDeleteachchha laga!!
बढिया लगा राजस्थान पर ये लेख....
ReplyDeleteशराफत, प्रेम और शांति का रास्ता अपना कर ये राज्य तरक्की की अग्रसर है.
हाँ, मेरे जन्मस्थान व बेसिक शिक्षा भी राजस्थान में ही है.
बहुत सुन्दर आलेख। राजस्थान सचमुच वीरता, प्रेम और सरलता से सरोबार है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति... राजस्थान पर केन्द्रित बहुत ही सुंदर पोस्ट. जोधपुर में हमने ५ साल बिताये और राजस्थानी परंपरा को नजदीक से देखने का मौका मिला............
ReplyDeleteचूरमा
ReplyDeleteमुझे तो चूरमे और दाल-बाटी का स्वाद अभी भी याद है। जाडों में राजस्थान घूमने का सबसे उपयुक्त समय है।
छोटी सी पोस्ट में सब कुछ समाहित कर डाला |प्रभावशाली लेखन की यही तो पहचान है | राजस्थान के कण कण में प्रेम का वास है |
ReplyDeleteराजस्थान की तो बात ही निराली है।
ReplyDeleteआपने बहुत भावुक होकर राजस्थान को सराहा है ...और मेरे अपने अनुभव में यह सच भी है ! प्यार देखना हो तो राजस्थान जरूर जाओ अपनापन महसूस होता है !
ReplyDeleteवहां का भोजन कहीं भी देख मैं खुद पर काबू नहीं रख पाता अजित जी ! हार्दिक शुभकामनायें आपके राजस्थान को !
म्याह्डो प्यारो राजस्थान :)
ReplyDeleteबेशक राजस्थान का अपना ही आकर्षण है ।
ReplyDeleteएकदम सच कहा है आपने राजस्थान जैसा कुछ नहीं..अभी तक ३ बार पूरे राजस्थान की सैर कर चुकी हूँ पर मन नहीं भरा है.वहां का आथित्य,लोग,और गोरवशाली इतिहास ..वाह और हाँ ...व्यंजन भी :)
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया.
सुन्दर आलेख के लिए.
हमारा रंग रंगीला राजस्थान ऐसा ही तो है ....!
ReplyDeleteबहुत ही सहज और मुग्ध कर देने वाली भाषा में आपने राजस्थान को अभिव्यक्त किया है, आलेख छोटा है पर इसके भावों ने विराट राजस्थान को अपने में समेट लिया है. आभार.
ReplyDeleteरामराम.
आप जैसे गुणीजनों से राजस्थान के बारे में जान कर राजस्थान को नजदीक से जानने की उत्सुकता बढ़ जाती है. थोड़े में ही आपने बहुत प्रभावी विवरण दिया है. मान गए गुरु जी की राजस्थान के कण कण में प्रेम, वीरता, आतिथ्य और त्याग भरा हुआ है. राजस्थान की इस माटी को और हमारे देश के इस गौरव को शत शत नमन.
ReplyDeleteशुक्रिया मेरे प्रश्न का जवाब इतनी सुंदरता से देने के लिए. और हाँ इस अनमोल प्रेम को हमने आज से अपनी झोली से बाँध लिया है जी. :)
जी हाँ ... ऐसा ही है रंग रंगीला राजस्थान ........ आपके हर शब्द ने एक याद ताज़ा कर दी..... बहुत सुंदर पोस्ट धन्यवाद आभार
ReplyDeleteवहा के हवेली हो महल या किले सब काफी अच्छे है और कपड़ो में रंग की बाहर तो पूछिये नहीं बस खाने से पहले संभलना चाहिए नहीं तो लगता है कि देशी घी में डूबा कर मार ना दे |
ReplyDeleteअजित जी बहुत सुंदर रंगो से आप ने अपनी रचना को सजाया ओर राजस्थान के सुंदर रंगो को उकेरा हे, जरुर आयेगे आप के राजस्थान मे कभी, पहले सोचा था किसी किसी टूर ग्रुप के संग आयेगे, लेकिन् हम भारतियो को इन गोरो का संग, इन के तोर तरीके पसंद नही, इस लिये आजाद आयेगे, * यहां से १५ दिनो का टुर चलता हे जो सारे राजस्थान के संग दिल्ली ओर आगरा घुमाता हे, खाना पीना ,रहना ओर घुमाना सब एक बार, जो काफ़ी सस्ता पडता हे, लेकिन हमारी बीबी ओर बच्चे नही आना चाहते इन के संग, बस बंधे रहो इन के संग ओर फ़ार्मेल्टी करते रहो.
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्य है राजस्थान ,और धन्य हमारा देश जो रंग-बिरंगी (अनेक प्रान्तों की )धन्यता वाला इन्द्र-धनुष धारे है !
ReplyDelete.
ReplyDeleteबस ऐसा ही राजस्थान और ऐसे हैं राजस्थानवासी। जिसने भी यहाँ जन्म लिया है उसने इन सारे ही रंगों को अपने अन्दर संजोया है।
@ और जिसने राजस्थान बोर्डर पर जन्म लिया हो, वह कैसा होगा? क्या उसके अन्दर कुछ कम रंग मिलेंगे?
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ReplyDeleteमेरा दूसरा प्रश्न :
मैं बड़ी शांति से जिए जा रहा था. लगता था कि पूरा जीवन यूँ ही बीत जाएगा. मुझे कोई नहीं जान पायेगा. मेरी पहचान केवल घर की चौखट तक होगी. तभी अचानक एक शेर ने आक्रमण किया और मैंने उसे मार गिराया. तभी मेरी पहचान ने दहलीज लांघ ली. मुझे बाघमारे और शेर बहादुर कहा जाने लगा. क्या मेरी इस अचानक मिली प्रसिद्धि में शेर को कुछ क्रेडिट दिया जाना चाहिए?
विषय पर लौटता हूँ —
क्या जौहर कर्म के लिये उकसाने वाले को कुछ क्रेडिट दिया जाना चाहिए?
यदि हाँ तो कितना? यदि नहीं तो क्यों नहीं?
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भाई प्रतुल, आपने जौहर की बात छेड़ी है, यह जौहर जब हुआ था तब मुगल आक्रमण हुआ था। उस मानसिकता को देखो। जब जलियांवाला बाग काण्ड हुआ था तब भी एक शहीदी कुआँ बना था और आज वो पूजनीय है। कल तक शिकार लोगों के जीवन का अंग था लेकिन आज नहीं। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि कल वे लोग गलत थे।
ReplyDeleteआप राजस्थान के बोर्डर पर हैं तो क्या अन्तर है, हम सब भारतवासी पहले हैं। लेकिन जब बात किसी प्रदेश की चलेगी तो राजस्थान की जो खूबियां होगी उन्हें गिनाया ही जाएगा। फिर हर सिक्के के दो नहीं अनेक पहलू होते हैं। कोई मीरां को भक्ति और प्रेम के लिए स्मरण करता है तो कोई उनकी आलोचना भी कर सकता है। सब का अपना दृष्टिकोण है। साहित्य में इन सारे ही दृष्टिकोणों की भरमार है।
नीरज, हमारे यहाँ एक कहावत है कि स्याला याने जाड़ा सुधारना हो तो एक बार किसी महाजन के यहाँ जीम आओ। तो आ जाओ, चूरमा क्या अब तो लड्डू भी मिल जाएंगे। कब आ रहे हो?
ReplyDeleteताऊ रामपुरिया जी, ब्लाग पर पोस्ट छोटी हो तो पठनीय बनती है, इसलिए मैंने बहुत ही संक्षेप में केवल ट्रेलर लिखा है। नहीं तो हरि कथा अनन्ता वाला हाल है।
ReplyDeleteराज भाटिया जी, आप तो कभी भी आएं, आपका स्वागत है। किसी एजेन्सी के चक्कर में मत पड़िए, यहाँ आपकी बहन है ना।
ReplyDeleteराजस्थान के वीरो की कहानियाँ और उनकी रानियों के जौहर की कथाएं पढ़ते बचपन गुजरा....राजस्थान का नाम आते ही मरुभूमि नहीं चटकीले रंग..लोगो का उल्लास और जोशीले गीतों का ध्यान आता है.."रंगीलो..मोरो ढोलना...." :)
ReplyDeleteराजस्थान को कैनवास पर उतरना मुझे हमेशा से प्रिय रहा है..एकाध पेंटिंग की तस्वीरें मेरे ब्लॉग पर भी हैं.
mere बहुत से mitr हैं Rajisthan से हैं aur aapki बात से poora poora sahmat hun main .... देश की tarakki में bhi Rajsthan के logon को बहुत bada haath है ..
ReplyDeleteराजस्थान के गौरव को सुंदर शब्द दिये।
ReplyDeleteनिश्चित ही आतिथ्य सत्कार और मनुहार में राजस्थान का जवाब नहिं।
सुंदर पोस्ट आंटी..... आपणों राजस्थान तो है प्यारो अर न्यारो..... सादर
ReplyDelete.
ReplyDeleteदिल्ली हो या राजस्थान , है तो अपने भारत का ही एक अंग। विभिन्नताओं से विभूषित हर राज्य की तरह राजस्थान की भी शौर्य एवं प्रेम गाथाएं हमारा गौरव हैं।
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रंगीलो राजस्थान के संबंध में पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteलोकप्रिय-अतिलोकप्रिय-महालोकप्रिय व वरिष्ठ-कनिष्ट-गरिष्ठ ब्लॉगर
जब तक वास्ता नहीं पड़ा था, राजस्थान के बारे में ऐसी ही छवि थी अपने मन में भी जैसा कि आपने शुरू में कहा। अपने राजस्थानी दोस्त का शुक्रगुजार हो चुका हूँ रियल लाईफ़ में, जब वि जिद करके अपने गांव ले गया था और फ़िर उसकी शादी में तीन दिन तक हम राजस्थान की संस्कृति की झलक पाते रहे।
ReplyDeleteराजस्थान भारत का गौरव है, यह कहने में कोई हिचक नहीं है।
राजस्थान मेरे भी पुरखों का प्रान्त रहा है जहाँ अजमेर व किशनगढ में मेरे अधिकांश परिजन बसे हैं । किसी भी अन्य प्रांत की बनिस्बत राजस्थान को मैंने सर्वाधिक बार घूमा है और यहाँ आना व कुछ समय रहना हमेशा ही अच्छा लगता है.
ReplyDeleteअजीत जी, मैंने देश के तकरीबन सभी हिस्सों में घूमने के बाद पाया है कि राजस्थान को घूमने का जो आनंद आया, जो मेहमाननवाजी राजस्थान में देखी वह कहीं नहीं मिली। इसी साल के मध्य में मैं जयपुर, अजमेर में था, पहली बार राजस्थान जाने का मौका मिला था, प्रसंग था पर्यटन, सच में दिगर जगहों में और विज्ञापनों में दिखने वाला 'पधारो म्हारो देश' वाली भावना राजस्थान में दिखी। आतिथ्य में राजस्थान सभी जगहों से श्रेष्ठ लगा, फिर राजस्थान का माहौल, वहां के लोगों का रहन सहन, राजस्थान के साहस पराक्रम की कहानी का मजा ही अलग है। यह मैंने महसूस किया। अजीत जी आपकी यह पोस्ट मुझे अचानक पढने मिल गई, मेरे लिए यह इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि मैं जनवरी महीने में उदयपुर राजस्थान की यात्रा को लेकर उत्साहित हूं। मैं राजस्थान में उदयपुर पहले कभी नहीं गया, वहां की तस्वीरें वहां के बारे में पढकर सुनकर मन उत्साहित है और ऐसे में आपकी पोस्ट ने मेरे भीतर उदयपुर की आगामी यात्रा को लेकर उत्साह कई गुना बढा दिया है। आपको इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई।
ReplyDeleteअतुल श्रीवास्तव
atulshrivastavaa.blogspot.com
"लू के टीले, अंधड़, भँवर, कहीं कहीं उग आए केक्टस।"
ReplyDeleteहम तो आज भी तरस रहे हैं इन्हें देखने और राजस्थान घूमने के लिए। अब तक राजस्थान आने का सौभाग्य ही प्राप्त नहीं हो पाया, किन्तु ईश्वर ने चाहा तो एक बार अवश्य ही आएँगे राजस्थान घूमने, राजस्थान तो भारत का गौरव है!
राजस्थान की जानकारी देता सार्थक पोस्ट!
हम आपकी बात से इत्तेफाक रखते हैं।
ReplyDelete---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
अतुल श्रीवास्तव जी
ReplyDeleteआपका स्वागत है उदयपुर में। जब भी आएं अवश्य बताएं। यदि उन दिनों में उदयपुर रही तो आप का आतिथ्य का अवसर मुझे जरूर मिलेगा।
rajasthan men kuch din rahne ka suawsar mila tha.wahan ke logon ne jo sneh diya wah aaj bhi yaad hai.aapki baaten solho aane sach hai.
ReplyDeleteराजस्थान के वारे में सुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद। मेरे पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं।।
ReplyDeleteराजस्थान सी कोई दूसरी जगह नहीं.. वास्तव में ही. बस जयपुर ही मर रहा है अब.
ReplyDeleteअजीत जी, मेरी भडास में छपी एक अधूरी पोस्ट पर आपके कमेंट के बाद आपके ब्लाग पर आना हुआ। आते ही राजस्थान को लेकर आपके पोस्ट को पढकर काफी अच्छा लगा। तुरंत हाथ चल पडे और कमेंट लिख दिया। मेरे कमेंट के बाद आपका राजस्थान आने पर आतिथ्य का निमंत्रण सच में राजस्थान के अतिथि देवो भव: की परंपरा का ही रूप लगा। आदरणीय मैं जनवरी के दूसरे सप्ताह में उदयपुर की यात्रा पर रहूंगा। 12 जनवरी से लेकर 16 जनवरी तक उदयपुर में राष्टीय युवा उत्सव है इसी के सिलसिले में उदयपुर आना होगा। आपको एक बात और बता दूं कि भडास में मेरे अधूरे पोस्ट 7 दिसम्बर को आप मेरे ब्लाग atulshrivastavaa.blogspot.com में पूरा पढ सकती हैं।
ReplyDeleteअतुल श्रीवास्तव
बहुत अच्छा लिखा है...राजस्थान के लोगों में आज भी सरलता और आत्मीयता दिखती है..
ReplyDelete.........
क्रिएटिव मंच आप को हमारे नए आयोजन
'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में भाग लेने के लिए
आमंत्रित करता है.
यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
आभार
pranam !
ReplyDeleteअच्छे लेख के लिए आभार , राजस्थान तो प्रेम का खजाना है , मेम ! मैं भी बीकानेर से हूँ .
पुनः आभार .
साधुवाद
अजितजी
ReplyDeleteराजस्थान की तो बात ही निराली है इसमें एक बात और कहूँगी यहाँ मर्यादाओ का पालन बखूबी किया जाता है चाहे वो परिवार की हो या समाज की |
ाब लगते हाथ मुझे भी आम्न्त्रण दे ही दीजिये। आपकी दाल बाटी की बहुत प्रशंसा सुनी है। ये ब्लागजगत का प्रेम बना रहे। शुभकामनायें।
ReplyDeleteजिस तरह से सागर के बीच में तैरते बर्फ के पहाड़ का जितना हिस्सा पानी के ऊपर दिखता है, उससे कई गुना ज्यादा हिस्सा पानी के अंदर रहता है, उसी तरह आपका यह आलेख भी है । मगर, फिर भी जो हिस्सा आपने दिखाया है, उसके दर्शन से रोमांच हो आया । मैं तो बिहार का रहनेवाला हूं, मगर जीवन के कुछ वर्ष राजस्थान में बिताये, सच कहता हूं दोस्त, आज भी ऐसा लगता है कि राजस्थान बाहें फैलाये मुझे बुला रहा है । वहां की हवा में भीनी-भीनी खुशबू है, हर सुबह में रवानियत है, सादगी और सच्चाई है, ईमानदारी और निश्छलता हर चेहरे पर झलकती है, भले आपको कोई न जाने, मगर ऐसा लगता है कि जन्मों का संबंध रहा हो । ऐसे प्यारे, रंगीले और अलमस्त राजस्थान को मेरा सलाम- सुभीम शर्मा, पटना
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