पूजनीय
प्रसिद्ध साहित्यकार रामबल्लभजी का आज उद्बोधन है। मंच पर एक राजनेता, एक पूँजीपति भी बैठे हैं। रामवल्लभजी अपने उद्बोधन से पूर्व मंच को सम्बोधित करते हुए बोल रहे हैं कि पुज्यनीय नेता जी, पूज्यनीय सेठजी.......। लोग आश्चर्य में पड़ गए। रामवल्लभजी एक राजनेता और काली कमाई से बने सेठ को पुज्यनीय सम्बोधित कर रहे हैं! कार्यक्रम समाप्त हुआ, उनके शिष्य ने प्रश्न किया कि आप का सम्बोधन कितना उचित था? क्या आप भी राजनेता और पूँजीपतियों को पूजनीय मानते हैं?
हाँ। क्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं।
जिन सापों की पूजा की जा रही है आजकल वो ही डस भी रहे है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteक्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं।
ReplyDeleteबहुत तीखा व्यंग्य है, इस लघुकथा में।
बहुत धारदार कटाक्ष है अजित जी बधाई इस लघुकथा के लिये।
ReplyDeleteबेहद तीखा व्यंग है ।
ReplyDeleteजाने लोग साँपों को दूध क्यों पिलाते हैं !
आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार ,शोषण आदि का जो ज़हर फ़ैल रहा है ,उसका एक प्रमुख स्रोस्त्र ये नाग ही हैं, लेकिन फिर भी हम इनकी पूजा करते हैं..बहुत ही सटीक व्यंग्य..आभार
ReplyDeleteव्यंग्य में लेखनी की धार तेज होती जा रही है. :)
ReplyDeleteबहुत ही सटीक लघुकथा है!
ReplyDeleteयह ठीक रही :-)
ReplyDeleteतीखा कटाक्ष है। अजित जी, इस सार्थक लघुकथा के लिए बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी लघु कथा एक ही शब्दों में दो लोगों का चरित्र चित्रण हो गया |
ReplyDelete... kyaa baat hai ... behatreen !!!
ReplyDeleteसत्य वचन :)
ReplyDeleteअच्छी कही.... :)
ReplyDeleteशानदार व्यंग्य !
ReplyDeleteसांप शायद तरस खाकर एक बार छोड़ भी दे लेकिन नेता....
ReplyDeleteजय हिंद...
अच्छा चुटकुला है.
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व्यंग्य....कम शब्दों में बड़ी गहरी और सोच्परक बात कह दी आपने...
ReplyDeleteभाई मजाल जी, आपने इस लघुकथा को चुटकुला कहा है। आपका कथन एक अंश में ठीक हो सकता है लेकिन इस अन्तिम वाक्य में गहरी हँसी नहीं है अपितु व्यथा भी शामिल है। लघुकथा तभी सार्थक होती है जब उस अन्तिम वाक्य से कहने वाले का चिंतन झलके और सोचने पर मजबूर करे। वैसे आपका आभार, क्योंकि मैंने भी इस पर चिंतन किया था कि कहीं चुटकुला तो नहीं लगेगा। क्योंकि लघुकथा और चुटकुले में बहुत थोड़ा ही तो अन्तर होता है। एक शुद्ध हास्य होता है और दूसरा चिंतन।
ReplyDeleteअच्छा कटाक्ष है ...वैसे हमारी यह पूजने की आदत ने ही तो बेड़ा गर्क किया हुआ है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लघुकथा है बेहतरीन प्रस्तुति.... संगीता जी के विचारों से सहमत हूँ ... आभार
ReplyDeleteक्योंकि भारत में हम साँपों की भी पूजा करते हैं...
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य...
गज़ब कर दिया…………धारदार कटाक्ष्।
ReplyDeleteबहुत ही तीखी बात ...।
ReplyDeleteअजित जी बहुत ही गहरा व्यंग छुपा है इस लघुकथा में....... साँपों को पूजना गलत नहीं है बल्कि साँपों का दूध पीकर भूल जाना गलत है जिसमे हमारे नेता जी लोग तो पारंगत ही है. शायद स्वामी जी को इस बात का भान हो की सांप शब्द के असली हक़दार एही है.
ReplyDeleteWah,kya jawaab diya guruji ne shishy ko!!
ReplyDeleteशीर्षक नागपंचमी भी हो सकता है.
ReplyDeleteबहुत ही कम शब्दों में सार्थक लघुकथा |
ReplyDeletesahi kaha aapne.
ReplyDeletelekin mai bhi sahi hoon ki jin vyaktiyon ne is laghu-katha par comment / tippnai likhi hai unme se ek bhi vyapari varg se nahi hai.
aakhir punjipati ki aukat saanp se jyada nahi aank sakte aap log.
galti bhi to nahi aapki kyonki aap punjipati banne ke peeche uski mehnat ko nahi dekhte.
aapki gali ke nukkad par kirane ki dukan chalane wala "BANIYA" agar 30-40 saal bad agar punjipati ban jaye aapko phuti aaknh nahi suhata aur agar university me padhane wala professor apne ghar bulakar tution padhakar paisa-wala ban jaye to aapko manjoor hai.
punjipati agar udyag na lagaye to BNAK apko apke deposit par interest kahan se dega ?? kabhi socha hai ?
punjipati agar kapde ki mill na lagaye to kya pahnenge ? sut kat-kar khadi ke kurte - pajame?
punjipati agar industry na lagaye to naye rojgar kahan se paida honge aur aapke hamare bachche kahan naukri karenge? ye nahi socha hoga apne
aakhir kyon chidte hain aap punjipati / vyapaari-varg se itne ?
ek vyapari subah 7 baje se le kar rat ke 10 baje tak apne kaam me laga rahta hai agar bimar bhi hai to bhi apne dukan/factory jata hai.... aur ek sarakari karmchari .... use ka parvah... use medical leave milti hi hain na.
BAAKI FIR KABHI......
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ReplyDeleteaur haan ek baat to rah gayi
ReplyDeleteye MOBILE jisse aap har samay apne sath rakte hain .... uska netwaork bhi punjipati hi khada karte hain.
सार्थक चिंतन।
ReplyDelete---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
हिमांशुजी, आपका कथन सोलहा आना सही है। लेकिन मेरे शब्दों को यदि आपने ढंग से पढ़ा होता तो शायद इतना आक्रोश नहीं आता। मैंने लिखा है - काली कमाई से बने सेठ।
ReplyDeletewah.kitni bari baat ka di lokkatha ke madhyam se.
ReplyDeleteSAAP BHI HAMARE SAMAJ KE EK ANGA HAI. HAME INKI ILAJ KARANI CHAHIYE,JO PUJA KARATE HAI ,UNAKE ANDAR APANA SWARTH CHHIPA HOTA HAI.WAHI YAHA GURU KE WAANI/JABAB ME DIKHAI DETA HAI.WAISE AAP NE GAGAR ME SAGAR BHARA HAI .DHANYABAD.
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