Friday, November 19, 2010

सास बनते ही एक डर दबे पैर क्‍यों चला आता है?- अजित गुप्‍ता

बेटे के विवाह के मायने क्‍या हैं? किसी भी माँ से पूछकर देखिए वह यही कहेगी कि जीवन का सबसे अनमोल क्षण है। शायद पिता के लिए भी ऐसा ही होता हो, लेकिन चूंकि मैं एक माँ हूँ तो पिता की अनुभूति का मुझे मालूम नहीं। आप उत्तर दे पाएंगे। घर में जब बहु के कदम पड़ते हैं तो लगता है कि हमारा घर पूर्ण हो गया। बेटे के चेहरे पर जो उल्‍लास दिखायी देता है, वह किसी भी शब्‍दों में नहीं समेटा जा सकता है। घर-परिवार में प्रत्‍येक सदस्‍य नवागत का स्‍वागत करने के लिए प्रफुल्लित हो रहा होता है। मुझे अमिताभ बच्‍चन का स्‍मरण आ रहा है। जब वे अपनी पुत्रवधु को लेकर स्‍वयं ही ड्राइविंग करते हुए घर आते हैं। इससे बड़ा उल्‍लास का उदाहरण मुझे दिखायी नहीं देता है। आज से लगभग पाँच वर्ष पूर्व जब मेरे घर भी बहु आने वाली थी तब मेरे अन्‍दर भी ऐसा ही उल्‍लास भरा था। बहु के आगमन पर कितनी ही कविताएं रच दी गयी थीं। कहीं भी चिन्‍ता या डर का नाम नहीं था। ना ही यह भाव था कि मैं सास बन रही हूँ तो एक बदनाम नाम मेरे साथ भी जुड़ जाएगा। लेकिन समय बीता, और जब हमउम्र मित्र एकत्र हुए तो ध्‍यान में आया कि इस प्‍यार भरे रिश्‍ते के बीच में एक भय भी साथ-साथ आकर घर करता जा रहा है। पहले यह भय बहु के मन में साथ चलकर ससुराल की चौखट तक आता था और कितने अन्‍तरद्वंद्वों से निकलकर कभी समाप्‍त होता था तो कभी नहीं। लेकिन आज दुनिया बदल गयी है, वास्‍तव में ही बदल गयी है। डर ने भी अपना पाला बदल लिया है। अब उसने सास के दिल में दस्‍तक दे दी है।
मैं आज ये बातें आपसे क्‍यों कह रही हूँ? अभी विवाह का मौसम चल रहा है। घर-घर में शहनाइयां बज रही हैं। मेरे पड़ोस में भी मेरी मित्र के यहाँ शहनाई की धूम रही। आज वे जानी-पहचानी हस्‍ती हैं तो चर्चा का बाजार भी गरम रहा। उम्र भी अधिक नहीं तो सास बनना कौतुहल का विषय हो गया। सभी कहने लगे कि अरे अब आप सास बन जाएंगी? जीवन में कई तब्‍दीली आएंगी। सभी ने उनके मन में एक अन्‍जाना सा भय डाल दिया। कुछ वर्ष पूर्व के प्रश्‍न बदल गए। मुझसे पूछा जाता था कि अरे आपकी बहु आ रही है? घर में रौनक हो जाएगी। लेकिन अब यह कहा जा रहा है कि अरे आप सास बन जाएंगी? गीत भी ऐसे ही गाए जा रहे हैं कि सासु अब सम्‍भलकर रहना, घर में बहु आ रही है। मुझे फिर एक आलेख का स्‍मरण हो रहा है, जिसे मेनका गांधी ने बहुत वर्ष पूर्व लिखा था। पता नहीं क्‍यों वे शब्‍द मेरी स्‍मृति में अंकित हो गए थे? उन्‍होंने लिखा था कि मैं उस दिन से सबसे ज्‍यादा डरती हूँ जिस दिन मेरे घर में बहु आएगी। वह आते ही कहेगी कि मम्‍मी को कुछ नहीं आता। कुछ ही दिनों में वह घर माँ का नहीं रह जाता। ऐसे ही कुछ भाव थे उस आलेख में।
तो क्‍या आज वास्‍तव में एक माँ के मन में डर समा गया है? पढी-लिखी माँ, समाज में उच्‍च स्‍थान रखने वाली माँ भी आज इस अन्‍जाने डर से भयभीत क्‍यों हैं? कैसा है यह भय? क्‍या केवल एक भ्रम है या वास्‍तव में ही माँ के ऊपर सास नाम का बदनाम उपनाम हावी होने को है। बहुत सारे खट्टे-मीठे अनुभव हैं हम सबके। समाज उन्‍नति भी कर रहा है, सास-बहु के रिश्‍तों में मधुरता भी आयी है लेकिन डर ने भी अपनी जगह बनायी है। मुझे लगता है कि यह डर हमारे अहम् का है। पहले परिवार में जो बड़ा होता था सब उसका सम्‍मान करते थे इसलिए बहु अपने साथ अहम् लेकर नहीं आती थी बस सास का अहम् ही रहता था। लेकिन आज बहु का अहम् भी प्रमुख हो गया है इस कारण बड़े-छोटे का भाव समाप्‍त होता जा रहा है। हमारी पीढ़ी ने हमेशा बड़ों का सम्‍मान किया है लेकिन जब यह सुनने और दिखने में आने लगा कि बड़ों का सम्‍मान अब सुरक्षित नहीं है तब ही डर नामके अजगर ने अपना डेरा डाल लिया। यह डर मेरी मित्र के ऊपर भी हावी हो गया और उन्‍होंने संगीत संध्‍या के दिन बहु के नाम पत्र लिखा और उसे पढ़कर सुनाया। बार-बार उनका डर झलक रहा था। मीठे से पत्र की जगह कहीं डर ने जगह बना ली थी।
आज की इस पोस्‍ट का केन्द्रित विषय है क्‍या है यह डर? यदि हम अपने विचार केन्द्रित करेंगे और विषय में भटकाव नहीं लाएंगे तो मेरे लिखने का श्रम सार्थक होगा। हम जान सकेंगे कि वर्तमान समाज किस ओर जा रहा है। आप सभी के विचारों का स्‍वागत है।  

42 comments:

  1. lagta hai iss aalekh pe to sirf female blogger hi post karenge.......:)

    ham to bas itna kahenge

    saas bhi kabhi bahu thi.........:D

    ReplyDelete
  2. डर है अपनी सत्ता छिन जाने का
    डर है बेटे द्वारा माँ के साथ का समय बंट जाने का
    डर है जो आपने अपनी सास के हरेक आदेश को सिर-माथे पर लिया है, (क्या बहू भी वैसे ही करेगी)
    डर है जो सास के साथ झगडे किये हैं (क्या बहु भी वैसे ही करेगी)
    डर परिवार के सदस्यों द्वारा अब केवल आपके हाथ के खाने की ही नहीं, बहू के हाथ के खाने की भी तारीफ होगी।
    डर है कि क्या मैं बहू को बेटी की तरह प्यार दे पाऊंगी।
    और अगर बहू ने भी सास की ईमेज बना रखी है तो उसमें फिट हो पाऊंगी या नहीं।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  3. औलाद के अच्छी परवरिश की हो और अपनी सास से प्रेम तो यह डर शायद ना आये. अधिक नहीं कहूँगा मुझे भी डर लगता है

    ReplyDelete
  4. अभी वो उम्र तो नही आयी है मगर आप कह रही हैं तो शायद ऐसा होता होगा……………परन्तु ऐसा होना नही चाहिये…

    ReplyDelete
  5. मुकेश कुमार जी,
    विचार तो सभी दे सकते हैं। बल्कि पुरुष को और अच्‍छे दे सकते हैं क्‍योंकि वे तटस्‍थ दर्शक हैं। कई बार यह डर सास और ससुर दोनों में ही दिखायी देता है तो विचार तो किया ही जा सकता है।

    ReplyDelete
  6. आपने लिखा है पहले यह डर बहू के अंदर होता था। अब सास के अंदर पनपता दिखता है। शायद इसका एक कारण यह है कि पिछले पंद्रह बीस सालों में समाज जिस तरह से बदला है,उसमें आने वाली बहुएं ज्‍यादा मुखर और समझदार भी हो गई हैं। वे समय के साथ बदली हुई लड़कियां हैं। इसलिए शायद उनमें अब डर उतना नहीं रहा है। दूसरी तरफ जो सास बन रही हैं या बनने की दहलीज पर हैं वे अभी अपने पुराने समय से उबर नहीं पाईं हैं। उसका नतीजा है कि उन्‍हें हाशिए पर आ जाने का डर सताता रहता है।
    यह केवल सास बहू के बीच की बात नहीं है। यह हर क्षेत्र में नजर आएगा। यह नए और पुराने विचार का द्वंद है।

    ReplyDelete
  7. एक अच्छी ईमानदार और विचारणीय पोस्ट लिखी है आपने !समस्या अधिकतर डबल स्टैण्डर्ड को लेकर होती है जो कि अकसर बेटी को कुछ सिखाया जाता है और बहू से कुछ और उम्मीद की जाती है !

    जब बहू अपनी माँ को बार बार फोन कर ससुराल के बारे में सलाह करे तो गलत है और वहीं अपनी बेटी को फोन कर उसकी ससुराल के बारे में खोद खोद कर पूंछना अपनी बेटी की चिंता करना मानी जाती है !

    बहू के आने पर वही कांटे चुभते हैं जो हमने बोये हैं

    ReplyDelete
  8. मैं जो कहना चाहती थी ...अंतर सोहेल जी और राजेश उत्साही जी ने कह दिया .
    लड़कियों कि परवरिश का तरीका बदला है ,मानसिकता बदली है.तो इस रिश्ते में भी कुछ बदलाव आना तो स्वाभाविक ही है.

    ReplyDelete
  9. अजित जी,
    बहुत समसामयिक विषय उठाया है आपने. वैसे मैं इस भय से मुक्त हूँ क्योंकि मेरे सिर्फ दो बेटियाँ है. लेकिन इस भय से दो चार होते देखा है और उस पर विचार भी किया है. अब ये भय बहुत अधिक है. क्योंकि अब लोग कहने लगे हैं की लड़की की शादी अधिक आसान है , लड़के की शादी करने में डर लगता है पता नहीं बहू कैसी हो? सबसे अधिक भय का कारण अपनी आने वाली बहू नहीं बल्कि बहुओं वाली के किस्से होते हैं. आज की पीढ़ी 'स्व' केन्द्रित हो रही है और फिर बदलती मानसिकता ने उसको सामंजस्य, सहनशीलता और संयम जैसे गुणों से वंचित नहीं तो दूर अवश्य कर दिया है. पहले सास बहुओं को सिखाती थी कि ऐसे नहीं ऐसे किया जाता है और अब बहुएँ ये सिखाने की कोशिश करती हैं कि आपकी सोच पुरानी है. बेटी जैसी बहू हो पाना मुश्किल नहीं तो आसन भी नहीं है. फिर भी कोशिशें तो करनी ही पड़ेंगी.
    ये रिश्ता एक दिन का नहीं कि डर कर काम चला लें. दोनों की समझदारी से काम चलता है और इसमें सबसे अधिक समझदारी बेटे को बरतनी पड़ती है कि वह बीच में सामंजस्य बनाये रखे तो आपात स्थिति पैदा नहीं होती. माँ को आश्वासन और पत्नी को विश्वास के सहारे ही घर को घर बनाये रख सकता है.

    ReplyDelete
  10. नारी तेरी यही कहानी
    सास बनी और आंखों में पानी :)

    ReplyDelete
  11. .

    शिक्षा ने स्त्रियों में जागरूकता ला दी है, इसलिए अब वे अपने खिलाफ अन्याय और अत्याचार होने पर अपनी आवाज़ बुलंद करती हैं, और समाज भी उनका साथ देता है। घरेलु हिंसा आदि पर कड़े क़ानून बनने के कारण बहूए जलाने या दहेज़ मांगने कि कोई जुर्रत नहीं कर पता।

    ममतामयी सास को डरने कि कतई जरूरत नहीं है, लेकिन अकड और धौंस जमाने वाली साँसों कि अब गुज़र बसर नहीं है कहीं।

    .

    ReplyDelete
  12. मेरा तो ये मानना है की जब हम अपनी बेटी को पूरी छूट दे सकते हैं तो बहू को भी दें और उससे बहुओं जैसी अपेक्षा न करके बेटियों जैसी करें उसे सम्मान दे और बदले में सम्मान लें

    ReplyDelete
  13. वक़्त का पहिया बड़ी तेज़ी से चल रहा है और उसी के साथ परिवर्तन भी तेज़ी से आ रहे हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी सोचों में फर्क आता जा रहा है. पहले सासे घरेलु होती थी तो उनकी सोच भी संकीर्ण थी..आज सासें नौकरी वाली, या उच्च शिक्षित हैं और बहुए भी नौकरीपेशा हैं तो एक दूसरे को समझने का क्षेत्र विस्तृत हुआ है. और बाकि बदलता वक्त सोचों को तेज़ी से बदल रहा है. ये भी बात सच है की पहले बहुए जितना डरती थी ससुराल के नाम से आज उतना डर नहीं है क्युकी स्वावलंबन है. आज सासें कुछ हद तक चिंतित हैं क्युकी सामजस्य, सहनशीलता जैसी सोच में कमी है. लेकिन आज की लड़कियां इतनी बुरी और स्वार्थी भी नहीं हैं. स्वावलंबी के साथ समझदार होते हुए परिवार की एहमियत भी समझती हैं. कहीं ना कहीं आज भी घर के सदस्यों से भरा, हँसता, मुस्कुराता आँगन उन्हें अपनी तरफ खींचता है. बडो का सम्मान करना कम से कम लड़कियां तो अच्छे से जानती हैं.
    अगर सास को डर होता है तो शायद कुछ हद तक ये सोच होती है की वो आज की युवा पीढ़ी से, आने वाली बहु से अपनी सोच मिला नहीं पाती.बदलते हालातों को आसानी से, जल्दी से अपना नहीं पाती.

    ReplyDelete
  14. एक सही विषय को उठाया है ..ऐसे विषयों में व्यक्ति की अपनी -अपनी सोच होती है .....शुक्रिया

    ReplyDelete
  15. अंतर सोहिल जी और राजेश जी से सहमत हुं | वास्तव में ये सिर्फ सास बहु के बीच के तनाव या रिश्ते के कारण नहीं है | ये आज के समय में लड़कियों के हर क्षेत्र में मुखर होने अपनी बात कहने और खुद के लिए खुद निर्णय लेने की भावना के कारण है |

    ReplyDelete
  16. इस विषय पर तो टिप्पणी नहीं पूरी पोस्ट लिखने की संभावना है जल्द ही….…

    ReplyDelete
  17. बहुत बढ़िया और सटीक चर्चा की आपने इस बारे में ज़्यादा तो नही कह सकता हूँ हाँ जहाँ तक डर की बात है वो एक भावनात्मक डर हो सकता है..कि कहीं बहू बेटे को माँ से दूर ना कर दे..पर ऐसा ज़रूरी नही| बस प्रेम बॅंट जाने का डर होता है...

    ReplyDelete
  18. समय अब बदल रहा है ....पहले यह डर सिर्फ बहु के ही मन में हुआ करता था . शायद आपने भी अनुभव किया हो . मैंने अपनी सास और माँ से सुना है . लेकिन अब सास के मन में होता है इसका मतलब यह नहीं की बहू के मन में नहीं होता . परिवर्तन कही न कही हमसब को कुछ हद तक विचलित तो कर ही देता है लेकिन पिचले ५ सालों के अनुभव की बात है अगर सास और बहू दोनों ही अपनी सोच में सहजता और सामंजस्य लाने की थोड़ी कोशिश भी करे तो इस रिश्तें को मधुर और सहज रखना उतना कठिन भी नहीं . अब सासें पहले की तरह नहीं रही पढ़ी लिखी बाहरी दुनिया का ज्ञान रखने वाली और बहुत हद तक आने वाली बहू की भावनाएं समझती है फिर भी जहाँ यह डर या तनाव देखने में आजाता है वहां दोनों ही पक्षों को अपने स्वाभाव में सहजता लाने की ज़रूरत है .

    ReplyDelete
  19. EK DOOSRE KI BHAAVNAON KO SAMJHA JAAYE TO AISA DAR HONE KI GUNJAAISH NAHI RSHTI ... AUR PRAYAAS DONO TARAF SE HONA CHAAHIYE .. RAASTA KHATAM HO JAAYEGA ...

    ReplyDelete
  20. सास में ममता और बहू में लिहाज़ हो तो यह समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी .ज़माने की नई बातें जैसे हम अपनी बेटी से पूछते हैं ,उस पर सहज विश्वास करते हैं वैसा ही अगर बहू के साथ करें तो न हमारा मान घटे और न बहू को असहज लगे.अपनी ओर से सहज स्वीकृति दे कर सास को निश्चिंती और संतोष ही मिलेगा कि उसके दाय को सुरक्षित रख आगे बढ़ानेवाली प्रस्तुत है .
    और बहू? संस्कारशील होगी तो अवश्य समझेगी .
    समझना दोनों को ही आपस में है ,बेटे को बेकार बीच में डाल चकरघिन्नी न बनाया जाय तभी ठीक,वह बेचारा क्या करेगा !

    ReplyDelete
  21. महज सास और बहू के रिश्ते की ही बात नहीं है , जब दो व्यक्तियों के स्नेह और अनुराग का केंद्र एक ही व्यक्ति होता है तो शंका , डर स्वाभाविक है ...
    समय और समाज तेजी से बदल रहा है ...पहले यह डर सिर्फ बहू के मन में होता था क्योंकि एडजस्टमेंट सिर्फ उसे ही करना होता था , अब बदलाव् और सामंजस्य की अपेक्षा दोनों ही पक्षों से की जाती है ..
    स्त्री सम्मान को बनाये रखने के लिए बने कड़े कानून और प्रावधानों के गलत उपयोग भी इस डर की एक बहुत बड़ी वजह है !

    ReplyDelete
  22. अनिता कुमार जी, आप कहती हैं लेकिन समय नहीं निकाल पाती, पोस्‍ट लिखने के‍ लिए। समय निकालो तो आपके विचार हमें भी पढ़ने को मिलें।

    ReplyDelete
  23. जहाँ एक ओर महत्वाकांक्षा में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर सहनशीलता में कमी आई है. सामाजिक परिवेश बदला है. अब कुछ भी टेकन फॉर ग्रान्टेड लेने को कोई भी तैयार नहीं. कुछ नया कर गुजरने की आशा, न्यूक्लियर फेमिलि का चलन, हम से मैं की ओर बढ़ते कदम, बुजुर्गों का सम्मान, फैमिलि के बजाय कैरियर के प्रति समर्पण आदि अनेकानेक कारण बन रहे हैं इस परिवर्तन के. कुछ अच्छाई है तो स्वभाविक रुप से कुछ नजरियों से बुरा भी है किन्तु यह सामन्जस्य की बात तो शुरु से ही रही है. आज के बुजुर्ग भी तो स्वावलंबी हो गये हैं..कौन किस पर निर्भर हो रहा है.

    ReplyDelete
  24. मुझे कुछ अलग लगता है। आजकल सास मां-बेटी के रूप में या सास-बहू के रूप में नहीं, बहन के रूप में रहती हैं, और उतना ही डर रहता है उनके मन में जितना बड़ी बहन को छोटी से! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

    ReplyDelete
  25. इस भय और आशंका की वजह मुझे लगता है की वो तथाकथित बदलाव हैं जो कहने को समाज में आ तो चुके हैं पर सोच में कोई परिवर्तन नहीं है..... जैसे की पढ़ी लिखी बहू चाहिए पर उसकी मुखरता नहीं..... वो बर्दाश्त नहीं होती .......और बहू को आपसी समझ रखने वाली सास चाहिए पर समझाइश देने वाली बुजुर्ग नहीं.... वो खटकने लगती है....

    ReplyDelete
  26. किसे कितना डर लगता है यह तो नहीं कह सकती ...लेकिन मुझे लगता है कि कम से कम मेरी पीढ़ी कि महिलाओं ने यह ज़रूर अनुभव किया होगा कि पहले हमने सास के साथ सामंजस्य किया और अब नयी पीढ़ी के साथ कर रहे हैं ..यानि कि हर बार हम ही स्वयं को बदलने का प्रयास कर रहे हैं ...
    सही बात तो यह है कि हर व्यक्ति को खुद में बदलाव करना पड़ता है ...हमारी पीढ़ी अपनी दृष्टि से सोचती है तो नयी पीढ़ी अपनी दृष्टि से ...

    ReplyDelete
  27. इसे डर भी कह सकते हैं और एक अज्ञात व्यक्ति के घर का सदस्य बन जाने की बेचैनी भी… कि पता नहीं बहू कैसी होगी?
    परन्तु यही भय लड़की पक्ष वालों को भी होता है कि पता नहीं जमाई कैसा है? जितना बताया है क्या वाकई उतना कमाता है, दारुकुट्टा तो नहीं है, आजकल खुला ज़माना है तो पता नहीं उसके किसी और लड़की से सम्बन्ध तो नहीं हैं… आदि-आदि…
    कहने का मतलब ये कि दोनों ही तरफ़ डर बराबरी से होता है… :) :)
    डर का ठेका सिर्फ़ सास का नहीं है… हा हा हा हा हा हा हा

    ReplyDelete
  28. bhaya kuchh bhi nahi hai,wah hamara swarth sidhi hai.saas aur bahu niswarth bane ,to kisi ko kisi tarah ki bhaya nahi hogi,mere bhi do bete hai,aaj tak is tarah ke sawal mere jehan me nahi aaye the,lekin is post ko padhane ke bbad yeh laga ki duniya me kaise-kaise log hai,jo jajbat ko batagad bana rahe hai.blog ke madhayam ko healthy banane ki jarurat hai n ki manoranjan? hamare taraf ek kahawat kahi jati hai wah bhi aaj ke pripreksh me ki aaj padhe likhe qualifie log bahut hai par educated nahi hai.ho sakata hai mere bichar se sahamat sabhi n ho par kisi ko heart karana mera makasad nahi hai.apani- dafhali apani raag.

    ReplyDelete
  29. अजित जी,
    हर किसी को याद रखना चाहिए कि डर के आगे ही जीत होती है, इसलिए डर से कभी नहीं डरना चाहिए...
    सास हो या बहू, उसे बस ये पता होना चाहिए कि उसका धर्म और दायित्व क्या है...इससे विचलित नहीं होना
    चाहिए कि दूसरा क्या कर रहा है...हम खुद ऐसा कुछ न करें जिससे कि कल खुद ही अपनी नज़रों में शर्मिंदा होना पड़े...अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा की इच्छा रखना इनसानी फितरत होती है...सास-बहू में क्लेश के लिए भी यही फितरत ज़िम्मेदार है...बेटे या पति पर सबसे ज़्यादा हक़ समझना सास और बहू को आमने-सामने ला देता है...कमी यहां से शुरू होती है कि आजकल बेटी के मां-बाप ऐसा घर ढूंढना चाहते हैं जहां लड़का अकेला ही अकेला हो...ज़्यादा ज़िम्मेदारी न हो और सर्वेसर्वा हो...यहीं से स्वार्थ की शुरुआत हो जाती है...मां को भी लगने लगता है कि बेटे की शादी हुई नहीं कि हाथ से गया...बहू ये पसंद नहीं करती कि पति मां के ही आंचल में हर वक्त छिपा रहे...ऐसे में ज़रूरत अपने से ज़्यादा दूसरों की भी ज़रूरत समझने की है...लेकिन आपका बस सिर्फ आप पर ही चल सकता है...इसलिए आप ही समझदारी से काम लें तो टकराव की नौबत कम से कम आती है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  30. g.n.show
    आपकी बात को मैं काट नहीं रही हूँ लेकिन मैंने यह ज्‍वलन्‍त मुद्दे को सबसे शेयर करने के लिए ही लिया है। आपके बच्‍चे अभी छोटे होंगे लेकिन जिस दिन बड़े हो जाएंगे तब आपको शायद मेरी इस पोस्‍ट के मायने समझ आएंगे और मुझे खुशी भी है कि अभी आप लोग चैन की नींद सो रहे हैं। आज शिक्षा का अर्थ व्‍यक्तिवाद हो गया है और इस व्‍यक्तिवाद में परिवार का स्‍थान नहीं है। लेकिन हमने जिस युग में शिक्षा पायी थी तब वहाँ परिवारवाद था। यह संकट केवल सास और बहु का भी नहीं है जिसे आप कह दें कि क्‍या सास-बहु का रोना लेकर बैठ गयी हूँ। यह मामला पूरे परिवार की खुशियों से जुड़ा है। जिस डर को मैंने प्रत्‍येक जवान होते हुए घर में देखा है उसे ही यहाँ लिखा है। और आप जिस शिक्षा की बात कर रहे हैं कि पढे लिखे भी अपढ हैं, यह मसला ना तो ज्ञान का है और ना ही शिक्षा का अपितु अहम् का है। मैं आपके विचार की कद्र करती हूँ और मैं मानती हूँ कि सभी के अपने अनुभव हैं। मैं किसी भी जज्‍बात को बतंगड़ नहीं बना रही हूँ। कृपया मेरी पोस्‍ट को ध्‍यान से पढें।

    ReplyDelete
  31. शायद कुछ हद तक यह डर जायज़ है ...
    पर दूसरी तरफ देखें तो कुछ डर बहु के मन में भी होता होगा ...
    तकलीफ तब होती है जब इस डर के बस में आकर हम अंधे हो जाते हैं ...

    ReplyDelete
  32. इस पोस्‍ट में भी विचारक प्रश्‍न है ...वक्‍त के साथ-साथ दोनो ही जागरूक हुए हैं कहीं बहु तो कहीं सास .....लेकिन में Zeal जी के विचारों से सहमत हूं बिल्‍कुल सही कहा है आपने भी ।

    ReplyDelete
  33. मेरी माँ भी बहुत प्रसन्न हैं, उनकी दूसरी बहू आने वाली है।

    ReplyDelete
  34. ... saarthak muddaa ... saarthak abhivyakti !!!

    ReplyDelete
  35. बदलते परिवेश और शिक्षा की जागरूकता ने आज नारी को नई सोच और विस्तार दिया है ! ऐसे में पुरानी पीढ़ी को तालमेल बिठाने में परेशानी आ सकती है और कई बार यही परेशानी डर बन कर उभर सकती है ! मगर हमेशा ऐसा ही होगा यह भी सच नहीं है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  36. ीअजित जी आज आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। मै तो बेटिओं की माँ हो इस लिये इस डर से मुक्त हूँ लेकिन आस पास देखती हूँ तो लगता है ये डर हर सास के दिल मे घर करता जा रहा है इसे के लिये मैं अन्तर सोहिल और सतीश जी की बात का समर्थन करती हूँ। दूसरी जो डर की बात है वो महिलाओं की सुरक्षा के लिये जो कानून बने हैं कुछ लोग उनका गलत इस्तेमाल भी कर रहे हैं इस बात का डर अधिक रहता है। अगर बहु का तालमेल न हुया तो पता नही कब क्या कह दे अब तो कोर्ट तक पहुँचाने मे भी देर नही लगती। तीसरी बात सहनशीलता मे कमी है आज के बच्चों मे सहनशीलता त्याग और बडों के प्रति सम्मान की भावना नही रही। बहुत अच्छा लगा आपका आलेख। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  37. मेरे इर्द-गिर्द तो लगभग एक पूरी पीढ़ी रही है, जो पहले बहू बनते हुए फिर सास बनते हुए सहमी रही, कारण शायद सिर्फ अपरिचित स्थितियों के विन्‍ध्‍याचल हैं.

    ReplyDelete
  38. बदलती जीवन शैली और उच्च शिक्षा के प्रचार प्रसार के कारण लड़कियों में आत्मविश्वास और आत्म गौरव की वृद्धि हुई है। यह आत्मविश्वास और आत्म गौरव बहू बन जाने के बाद यथावत बना रहता है...मेरा अनुमान है कि सास के मन में यही बात खटकती होगी जो धीरे धीरे डर में परिवर्तित हो जाता होगा।

    ReplyDelete
  39. gahan visay hai ,saas aur bahu dono ko sochne ke liye.

    ReplyDelete
  40. मेरे विचार से पहले घर में बहुत सारे लोग रहते थे नै बहू आती थी एक रूटीन सा होता था सारे रीती रिवाजो के साथ उसका स्वागत |जिसमे कोई मीनमेख नहीं होता था |अब एक या दो बच्चे होते है सारी निगाहे सारे अरमान सारी अपेक्षाए आने वाली बहू से जुडी होती है |फिर पिछले कुछ सालो में सास की छबी
    बदली है (हलाकि पहले भी बहुत सी सास अच्छी ही होती थी )इसे सास का अहम कहे या बहू का या फिर लड़ाई का मैदान न हो घर इसलिए बड़े ही सोफेस्टिक तरीके से बनावटी बनकर रहने लगी है आज कल सास बहू |और इस सबके बीच समाज में या अपने ही बेटे के सामने कही मै बुरी न बन जाऊ ये दर हमेशा बना ही रहता है \क्योकि मन में हमेशा से यही रहा था की जब भी सास बनूँगी मै ऐसा वैसा कुछ नहीं करुँगी अपनी बहू के साथ |

    ReplyDelete