आखिर हम ब्लाग पर क्यों लिखते हैं? कभी आपने यह प्रश्न अपने मन से किया? एक ऐसा ही दूसरा प्रश्न है कि हम ब्लाग पर क्या पढ़ते हैं? यह दूसरा प्रश्न बहुत ही आसान है। सभी कहेंगे कि हम अपने मन के विषय पढ़ते हैं। आज ब्लाग जगत में असीमित लिखा जा रहा है। हिन्दी ब्लाग भी हजारों की संख्या में हैं। लेखन की सारी ही विधाओं में लिखा जा रहा है। ब्लाग आने से पहले हम सभी लिखते थे और अपनी रचना को किसी भी मंच पर सुनाने की आकांक्षा भी रखते थे। इसलिए ही प्रत्येक शहर में कई साहित्यिक संस्थाओं का जन्म हुआ। यहाँ प्रति सप्ताह या प्रति माह रचनाकर्मी एकसाथ बैठते हैं और अपनी रचनाओं को सुनाते हैं। इसके पहले कॉफी हाउस हुआ करते थे, जहाँ साहित्यकार नियमित रूप से एकत्र होते थे और विभिन्न रचनाओं पर चर्चा करते थे। आज का जमाना ब्लाग का आ गया है। लेखन वहीं खड़ा है लेकिन उसके श्रोताओं या पाठकों का स्थान बदल गया है।
मुझे नवीन विचारों को पढ़ना रुचिकर लगता है। इसकारण ब्लाग पर नवीनता को खोजने का क्रम भी चलता रहता है। कई बार बड़े अच्छे ब्लाग पर खोज-यात्रा टिक जाती है लेकिन जब टिप्पणी करने के लिए पोस्ट कमेण्ट के कॉलम पर जाती हूँ तो वहाँ किसी अन्य की टिप्पणी ही नहीं होती है। मेरी टिप्पणी पहली और आखिरी ही होती है। ऐसा एक बार नहीं अनेक बार हुआ है। तब मन में विचार आता है कि आखिर हम लिखते क्यों हैं? अपने लिखे को पढ़वाने के लिए कुछ तो परिश्रम करिए, क्योंकि इस ब्लाग-जगत में आप भी नए हैं और अन्य भी नए हैं। ऐसा नहीं है कि सीधे ही गुलजार जैसे व्यक्तित्व ने ब्लाग प्रारम्भ किया हो और लोग दौड़कर उनका स्वागत करेंगे। आप परिश्रम कर रहे हैं, समाज को श्रेष्ठ विचार दे रहे हैं तो उसके लिए कुछ तो प्रचार करिए। नहीं तो ब्लाग लिखने का मकसद ही अधूरा रह जाएगा। आपने किसी समस्या को अच्छी प्रकार से उठाया लेकिन आपको उसके समर्थक ही नहीं मिले तो क्या फायदा? इसलिए प्रारम्भ में मैं परिश्रम करना ही पड़ेगा। जब लोगों को समझ आने लगेगा कि आपके विचार श्रेष्ठ है तो वे अपने आप ही आपके ब्लाग पर आएंगे।
वैसे यह पोस्ट मैं जिन लोगों के लिए लिख रही हूँ, वे इस पोस्ट को पढेंगे नहीं। क्योंकि वे तो बस इतना कर रहे हैं कि अपनी बात लिख रहे हैं और खुश हो जाते हैं, कभी भूले से भी उस एकमात्र टिप्पणीकार के ब्लाग पर भी नहीं जाते। तो मुझे लगता है कि हमें एक प्रयोग करना चाहिए कि ऐसे लोगों को यह टिप्पणी भी करें कि आपके विचार श्रेष्ठ हैं लेकिन इनके प्रचार के लिए प्रारम्भिक परिश्रम आवश्यक है और इसलिए आप अपने सम-विचारकों के ब्लाग पर भी जाएं जिससे आपके ब्लाग के पाठक बढ़ सके नहीं तो आपका परिश्रम बेकार ही जा रहा है। ऐसे ही कुछ नवीन ब्लागर भी हैं जो हमेशा टिप्पणी नहीं मिलने से दुखी रहते हैं लेकिन स्वयं दूसरों के ब्लाग पर नहीं जाते। इसलिए ब्लाग लिखना केवल टिप्पणी प्राप्त करने का ही खेल नहीं है अपितु अच्छी रचनाओं को सांझा करने का मंच है। इसलिए ही इतने लोग परिश्रम करके ब्लाग-चर्चा करते हैं। कई बार ब्लाग-चर्चा में भी अच्छी पोस्ट छूट जाती है, उसके लिए भी हम यह कर सकते हैं कि जब हम किसी भी ब्लाग पर टिप्पणी कर रहे होते हैं तब उस पोस्ट का भी जिक्र कर दें जिससे लोग उसे पढ़ने के लिए उत्सुक हो सके। क्योंकि कई बार अच्छी पोस्ट निगाह से निकल जाती है। इसलिए हम सब मिलकर अच्छे विचारों का स्वागत करें और उन्हें विस्तार देने का प्रयास भी।
अजित जी आपने सही सवाल उठाया है। मैं भी लगातार यह बात कहता रहा हूं। पर जानकारों का कहना है टिप्पणियों की फ्रिक मत करो। मुझे भी कई बार लगता है यह सही धारणा है। तो फिलहाल मैंने इसकी चिंता करनी छोड़ दी है। फिर देखिए न आपने अपनी पिछली पोस्ट में ही अब्राहम लिंकन के जिस कथन का जिक्र किया है,उससे भी यही बात साबित होती है कि स्पष्ट लिखने वालों के पाठक होते हैं और अस्पष्ट लिखने वालों के लिए टिप्पणीकार। अगर मैं कहूं कि अच्छा लिखने वालों के पाठक होते हैं तो गलत नहीं होगा। यही सही है कि टिप्पणी से प्रोत्साहन मिलता है। पर केवल, बहुत सुंदर है,नाइस है,भावपूर्ण है,संवेदनायुक्त है,छू गई जैसी पंक्तियों से मुझे तो कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। लेखन आपको आंदोलित करे,बात आगे बढ़े,नया विचार आए तो कुछ बात बनती है। और उस पर टिप्पणी होनी ही चाहिए।
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत...और आपका सुझाव भी बढ़िया है....जब कभी कोई अच्छी पोस्ट चर्चा में छुट जाए तो टिप्पणीकर्ता भी उस लिंक को दे सकते हैं....वाह what an idea , ajit ji
ReplyDeleteblog post par kament tabhie kartee hun jab kuch jodna hota haen yaa kuch galat lagtaa haen
ReplyDeletebekar mae kmaent karnae sae kyaa faydaa hotaa haen
ek blog par nude woman form daekhaa aaptti ki wahii ek kament daekhaa sangetaa ji kaa "swaagat haen " afsoso hua par jaantee hun wo kament datee haen encourage karnae kae liyae { sangee bura anaa maaney please }
lekin kament daene sae pehlae bahut kuchh daekhna chaahiaye aur jabardasti kament daene kaa koi laabh hanin samjh aayaa
mae kament kae liyae nahin likhtee
aap ki pichchli post mae mahilao kae upar tanch thaa , kament nahin kuyaa kyuki aap kaa adar kartee hun anythaa jarur puchhtee mahila kae prati itnii nirmamtaa kyun
बिलकुल सही कहा आपने>>>>>>>>>> ऐसे ही एक ब्लोगर है प्रतुल जी एक से बढ़कर एक रचनाएँ हैं उनके ब्लॉग पर, लेकिन वही प्रोत्साहन का आभाव........................ इसी कारण मेरी पिछली पोस्ट में मैंने उनकी कविताओं का सहारा लेकर पोस्ट बनायीं उनके ब्लॉग का लिंक दिया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, काफी कोशिश की, कि थोडा ट्राफिक उनके ब्लॉग पे भी पहुंचे!!!!!!!!!!!!!!! पर वही ढ़ाक के तीन पात>>>>>>>>>>>> लेकिन जैसा कि आपने कहा ब्लोगर को भी तो मेहनत करनी पड़ेगी, कोई मेहनत ही नहीं करेगा तो विचारों का पता कैसे चलेगा............... उत्तम दिशा-निर्देशन के लिए धन्यवाद् !
ReplyDeleteबहुत बढिया आइडिया दिया है।
ReplyDeleteBlogger's success mantra-
ReplyDeleteLate to bed, Early to rise,
Work like hell and Advertise...
Jai Hind...
सुझाव तो अच्छा है .
ReplyDeleteआपके विचार और अवलोकन ब्लॉग के लम्बी आयु के लिये आवश्यक हैं।
ReplyDeleteआपका यह लेख बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteअच्छे लेख को अगर ध्यान से पढ़ भर लिया जाये तो टिप्पणी का मन अपने आप ही कर जाता है !मगर समस्या यह है की पोस्ट पढने वाले कितने लोग हैं यहाँ ? आप किसी पोस्ट का आकलन करके देख लीजिये ....आपकी बात सच पायी जायेगी !
टिप्पणियों की सबसे अधिक आवश्यकता नए लेखक को होती है जिससे उसमे और अच्छा लिखने की इच्छा जाग्रत होती है ! इस काम को करने में समीर लाल जी की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है ! बाकी लोगों ने भी यह काम किया होगा तो सिर्फ अपने यहाँ बदले में टिप्पणी पाने की भावना भी प्रमुख रही होगी !
सफल लेखकों को टिप्पणी की क्या आवश्यकता .. पर नए लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए टिप्पणी आवश्यक है .. वैसे ब्लॉग जगत में टिप्पणी के माध्यम से आपसी संवाद बनाए रखने में भी मदद मिलती है !!
ReplyDeleteएक प्रोत्साहन बहुत ज़रूरी है ...
ReplyDeleteउपरी रूप से लोग कुछ भी कहें पर भीतर से सभी लोग खुद को पहचान दिलाने कि लिए ब्लॉग्गिंग करते हैं. उन्हें पहचान मिल रही है या नहीं यह सिर्फ प्राप्त टिप्पणियों से ही पता चलता है. अब सभी तो अच्छे लेखक नहीं हो सकते ना. तो कुछ गुटबाजी करते है, कुछ शीर्ष ब्लागरों कि शागिर्दी स्वीकार कर लेते हैं, कुछ विद्रोह का झंडा उठा लेते हैं और कुछ कि शक्लें ही इतनी खुबसूरत होती हैं कि लोग खिचे चले आते हैं और जो कुछ नहीं कर पाते वो दुसरे मंचों कि तलाश में ब्लॉग्गिंग से विदा ले लेते हैं. अपने बहुत अच्छा लेख लिखा है. पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteअजीत जी आप की बात से मै समहत हुं, ओर जब भी मै किसी ऎसे ब्लांग पर भुल से पहुच जाऊं तो दिल खोल कर टिपण्णी करता हुं, बहुत से ब्लांग ऎसे है जहां हम से बहुत अच्छा लिखा होता है, बाकी मै तो मन मोजी हुं कॊई सहित्याकार, कवि, या शायर नही, गलतियो की डिकशनरी हुं, लेकिन सभी के ब्लांग पर जाना ओर फ़िर उन्हे पढना बहुत कठिन है, ओर यहां यह दो घंटे निकालाना भी बहुत कठिन है,
ReplyDeleteधन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
अभी तक समीर जी नहीं आए ? :)
ReplyDeleteबहुत पते की बात की है मैडम आपने!
ReplyDeleteबहुत पते की बात की है मैडम आपने!
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत........
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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ReplyDeleteaapne behtrin or aaavhyk muddaa uthaaya he dhnyvad. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteआदरणीया
ReplyDeleteअभिवंदन
यथार्थ में आपका सकारात्मक लेख नवागंतुकों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करेगा.
आपके वक्तव्य से मैं इस लिए भी सहमत हूँ कि क्योंकि आप अपनी बात का अनुसरण भी कलर रहीं हैं.
यदि ऐसा नहीं होता तो आप मेरे ब्लॉग पर आई ही न होतीं !! और मैं भी आपके कारण ही आया हूँ.
आपकी सोच और सद्साहित्य लेखन के लिए आभार.
आपका अनुज
- विजय तिवारी ' किसलय '
Bahut acchi baat kahi aapne...sambhavtah kuchh badlega.
ReplyDeleteI try to read and comment as many blogs as possible.
Rajesh utsaahi ji ki baat se sehmat hun.
Casual comments do not encourage at all. They offend instead.
Regards,
ममा... मैं अब फ्री हो गया हूँ थोडा सा... अबसे रेगुलरली आऊंगा... सॉरी फोर ... डेले... कल आपको फोन करूँगा...
ReplyDeleteएक समय मैने भी इस दिशा में अभियान चलाया था और लोगों से निवेदन किया था कि नये लोगों को प्रोत्साहित करें. काफी विरोध भी हुआ मेरे अभियान का किन्तु मात्र उन लोगों से, जो किसी को प्रोत्साहित करने में भी ये सोचते हैं कि उनकी पोजिशन डाउन हो जायेगी.
ReplyDeleteआपके विचार से सहमत हूँ और अपने भरसक जब भी, जितना भी बन पाता है, प्रोत्साहित करने का प्रयास करता हूँ.
गिरिजेश भाई का इन्तजार भी खत्म हुआ इस बहाने. :)
खुशदीप जी की लाइनों success mantra- के आगे की लाईने है -----
ReplyDeletesell your post,
and get price...
think yourself,
and be wise...
नए ब्लागरों और कुछ पुरानो के लिए भी उपयोगी सलाह !
ReplyDeleteतत्व पूर्ण बातें कहीं आपने अजीत ,जी
ReplyDelete,''अच्छी रचनांओं को सांझा करने का मंच'
'सब मिलकर अच्छे विचारों का स्वागत करें और उन्हें विस्तार देने का प्रयास
भी
दोनों बातें ग्रहणीय हैं.
टिप्पणी मिले तो अच्छा है.पर मेरी भेजी टिप्पणी बहुत बार पहुँचती ही नहीं-पता नहीं कहाँ गड़बड़ हो जाती है.यह टिप्पणी भी पहली बार में नहीं पहुँची अब फिर पोस्ट कर रही हूँ.
'जिन लोगों के लिए लिख रही हूँ, वे इस पोस्ट को पढेंगे नहीं' -आशा बनाए रखिए ,हो सकता है पढ़ ही लें !
इन अच्छी सलाहों के लिए आपका आभार !
सहमत हूँ आपसे की नवोदित ब्लौगर की रचनाओं को समर्थन देना चाहिए ..साथ ही उन्हें भी मेहनत करनी चाहिए ...
ReplyDeleteविचार अच्छा है ...!
आपकी पोस्ट से आपकी इस मुद्दे पर गंभीरता प्रकट हो रही है। प्रोत्साहन सबको चाहिये, और आपने जो लिखा है उसपर अमल करते भी देखा है।
ReplyDeleteअमित शर्मा ने जिन प्रतुल जी का जिक्र किया है, वे दर्शन- प्राशन के नाम से ब्लॉग लिखते हैं @ http://darshanprashan-pratul.blogspot.com/ और वाकई बहुत स्तरीय लेखन है उनका।
लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि कई बार कुछ टिप्पणियां ऐसी भी होती हैं, असंबद्ध, अप्रासंगिक, विषय से एकदम हटकर जिनसे पोस्टलेखक को प्रोत्साहन तो क्या मिलता होगा, उसकी जवाबदेही और बढ़ जाती होगी। इसलिये टिप्पणी पाना एक अलग बात है, लेकिन सार्थक टिप्पणी मिलना, फ़िर चाहे वो आलोचना की ही क्यों न हो और गिनती में कम ही क्यों न हों, ज्यादा महत्वपूर्ण है।
देखते हैं कि आपकी इस विषय पर लिखी गई पोस्ट का हमारे ब्लॉग-व्यवहार पर क्या असर होता है।
एक सामूहिक विषय पर पोस्ट लिखने के लिये आभार आपका।
अजित जी, मुझे नहीं लगता कि हिन्दी ब्लोगजगत में टिप्पणी प्रोत्साहन के लिये की जाती हैं, यहाँ तो टिप्पणी आपस में आदान-प्रदान की वस्तु बनकर रह गई है और टिप्पणी पाना ब्लोग लेखन का मुख्य उद्देश्य बन गया है।
ReplyDeleteआप सभी के श्रेष्ठ विचार इस पोस्ट पर आए। मेरा तो इतना ही कहना है कि अच्छे विचारों वाली पोस्ट के पाठक होने चाहिएं। जैसे हम संस्थाओं के माध्यम से अपनी रचना का पाठ करते हैं और उसकी समीक्षा भी करवाते हैं तब हमें अपने लेखन की दिशा समझ में आती है। इसलिए यहाँ टिप्पणियों की संख्या का महत्व नहीं है अपितु पाठकों का महत्व है। अच्छे विचारों वाली पोस्ट को पाठक मिलने ही चाहिए। इसलिए कुछ प्रयास हम करें और कुछ लेखक से करने को कहें। आप सभी का आभार।
ReplyDeleteहम अपनी बात दूसरों तक पहूँचाना चाहते हैं,इसीलीए ब्लॉग पर इतना समय लगाते हैं।
ReplyDelete--------
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
अब प्रिंटर मानव अंगों का भी निर्माण करेगा।
अजित मैम, आपने इस दिशा मेँ कदम उठाया-धन्यवाद...
ReplyDeleteमैँ ब्लागिँग की दुनिया मेँ नई हूँ... लिखने का शौक है, इसलिए लिखती हूँ पर कभी-कभी समझ नहीँ पाती कि मैँ सही लिख रही हूँ या नहीँ... तब पोस्ट पर मिलने वाली टिप्पणियोँ से अपना भ्रम दूर करने की कोशिश करती हूँ और प्रोत्साहित होती हूँ... मुझे और मुझ जैसे कई और नवोदित ब्लागरोँ को पाठकोँ के सहयोग और मार्गदर्शन की अभिलाषा है... बल्कि हम सभी को इस साझे मञ्च पर एक दूसरे के प्रोत्साहन की आवश्यकता है... इस विचार को बल देने के लिए मैँ आपकी आभारी हूँ...
धन्यवाद...
Kya kahun, sabhi ne upar itna kuchh kah diya.
ReplyDeleteHaan, rajesh ji ki baat se poorntah sahmat hun. har tippani protsahan nahi deti
अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचाने के लिए शायद।
ReplyDelete................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
ब्लाग लिखना केवल टिप्पणी प्राप्त करने का ही खेल नहीं है अपितु अच्छी रचनाओं को सांझा करने का मंच है। बहुत ही सही कहा आपने, इस बेहतरीन पोस्ट के लिये आभार ।
ReplyDeleteअजित माँ,
ReplyDeleteसादर नमस्ते!
मैं अपना कारण बताता हूँ........
ज़्यादातर खुद को और पढने वालों को ख़ुशी देना! बस और कुछ नहीं, ना ही तो मैं हिंदी की सेवा का दम भरता हूँ और ना ही साहित्य-सृजन का धोखा देता हूँ अपने आप को!
सिर्फ यही मकसद, कोई उदास पढ़े तो कुछ पल के लिए ही सही चहक जाए....
(वैधानिक चेतावनी: मैं बहुत वाहियात लिखता हूँ!!!)
आशीष :)
Saarthak charcha.... mera maanna ha ki nirantar chalte rahne aur apna kaam achhi tarah karte rahen se kabhi n kabhi subah jarur hoti hai.....
ReplyDeleteइसलिए ब्लाग लिखना केवल टिप्पणी प्राप्त करने का ही खेल नहीं है अपितु अच्छी रचनाओं को सांझा करने का मंच है। इसलिए ही इतने लोग परिश्रम करके ब्लाग-चर्चा करते हैं। कई बार ब्लाग-चर्चा में भी अच्छी पोस्ट छूट जाती है, उसके लिए भी हम यह कर सकते हैं कि जब हम किसी भी ब्लाग पर टिप्पणी कर रहे होते हैं तब उस पोस्ट का भी जिक्र कर दें जिससे लोग उसे पढ़ने के लिए उत्सुक हो सके।
ReplyDeleteप्रशंसनीय मुद्दा उठाया आपने ......सही कहा कई बार अच्छी पोस्टों की चर्चा हो ही नहीं पाती ....!!
बहुत अच्छा सुझाव है एक प्रोत्साहन से लिखने की प्रेरणा मिलती है |टिप्पणी के साथ ही हमे दूसरो के ब्लाग की भी चर्चा करना चाहिए |
ReplyDeleteएक सकारात्मक पहल |धन्यवाद|
आपने लाख टके की बात कही है। पर हर ब्लॉग को पढ़ना आसान नहीं। कई बार वाहियात ब्लॉग ज्यादा नजर में आते हैं तो उस पर टिप्पणी नहीं करता। मैं जब कई बाचर 4-5 घंटे तक नेट पर होता हूं। पर ब्लॉग पर टिप्पणी देने में काफी टाईम लग जाता है और कई बार टिप्पणी मेरी लंबी हो जाती है। पता नहीं या गलत। एक परेशानी औऱ है, जब आपको टिप्पणी पर लेखक का प्रत्युत्तर नहीं मिलता तो लगता है क्या लेखक ने अपनी पोस्ट को ही दोबारा पढ़ा है कि नहीं।
ReplyDelete@ boletobindas
ReplyDeleteमुझे लगता है कि लेखक ने अपनी पोस्ट पर अपनी बात कह दी है और टिप्पणी में अन्य लोगों के विचार आते हैं। अब यदि हम दूसरों की टिप्पणी पर भी बहस करते रहे तो अनावश्यक वाद-विवाद हो जाता है हाँ यदि किसी टिप्पणी में कोई प्रश्न किया गया है तब उसका उत्तर अवश्य मिलना चाहिए। मेरा मानना है कि हम पोस्ट लिखते ही इसलिए हैं कि उस विषय पर अनेक विचार आ सकें। इसलिए सभी विचारों का स्वागत करना चाहिए।
अजित जी की बात से सहमत होकर दुबारा आयी हूँ।
ReplyDeleteअपने लेख का प्रचार भी करना चाहिए
Charity begins from home........इसलिए अपने एक ब्लॉग का लिंक दे रही हूँ, अजित जी अवं सभी साथियों के विचारों का स्वागत है।
http://zealzen।blogspot.com/2010/07/blog-post_16.
आभार ।
दिव्याजी, लिंक नहीं खुल रहा है। आप लिंक बनाकर भेजें। वैसे मैं अभी बाहर जा रही हूँ कल देखती हूँ आपकी पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बात कही आपने. हम अब तक जिनसे फोन पर बात कर लेते हैं उनसे तो औरो के ब्लॉग की चर्चा कर ही लेते हैं और बताते हैं की फलां ब्लॉग अच्छा हें ...उसे देखना..अब ये भी कोशिश रहेगी की लिखित में लिंक दें.
ReplyDeleteधन्यवाद.
ब्लॉग एग्रीगेटर ब्लॉग का केवल लिंक दे पाते हैं.चर्चा मंच में सीमित ब्लोगों की चर्चा हो पाती है. अच्छी पोस्टें पढने के लिए स्वयं ही प्रयत्न करने पडेंगे.टिप्पणी मिलने का मतलब यह नहीं कि आपकी पोस्ट चाव से पढी जा रही है. सरसरी तौर पर पढ़ कर टिप्पणियाँ दी जाती हैं, ऐसा अनेक टिप्पणियों को पढ़ कर लगता है. वैसे एक बात विचारणीय है, लेखक के मन में विचार आये और उसने उसे ब्लॉग पर लिख दिया, इससे उसको तसल्ली मिल गयी. यदि उसे ढेर सारी टिप्पणियाँ मिल गयीं तो उसकी तसल्ली बढ़ने के अलावा और क्या होगा ? यदि किसी ब्लोगर ने कुछ सार्थक लिखा है और उसे पर्याप्त प्रतिक्रया नहीं दिख रही है, तो भी उसे निराश नहीं होना चाहिए.उसका सार्थक लेखन पढ़े जाने की संभावना उस लेखक से अधिक है, जिसकी लिखी पुस्तक की प्रतियां दीमक खा गयी है. एक बात और ध्यान देने योग्य है.ब्लॉग को ब्लोगर के अलावा नॉन ब्लोगर भी पढ़ते हैं,जिनमें से अधिकाँश कोई टिप्पणी नहीं देते हैं.
ReplyDeleteब्लाग लिखना केवल टिप्पणी प्राप्त करने का ही खेल नहीं है अपितु अच्छी रचनाओं को सांझा करने का मंच है। sundar vichar hai aapke. lekin durbhagya yahi hai ki aise sochane vale kam hai. achchha likhane vale kam hote ja rahe hai. fir bhi jitane hai, ve hi paryapt hai.
ReplyDeleteअजितजी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद \
आपके इस लेख का आदर करते हुए एक लिंक दे रही हूँ |http://apunugarhwal.blogspot.com/
...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteमुझे शुरुआत में उत्साह था, लेकिन अब ब्लॉग पर लिखना फालतू लगता है। जब किसी विषय पर कई दिन तक दिमाग में कुछ घूमता रहता है, तभी लिखता हूं। अन्यथा नहीं... अगर कोई स्वयंभू विद्वान टाइप का लग गया तो उसके ब्लॉग पर जाता भी नहीं हूं।
ReplyDeleteअच्छे विचार हैं
ReplyDeleteबहुत सराहनीय पोस्ट. अछे लगे आपके विचार. मैं भी सहमत हूँ .
ReplyDeleteअच्छे विचार हैं..स्वागत है.
ReplyDelete********************
'बाल-दुनिया' हेतु बच्चों से जुडी रचनाएँ, चित्र और बच्चों के बारे में जानकारियां आमंत्रित हैं. आप इसे hindi.literature@yahoo.com पर भेज सकते हैं.
fully agree with you ajit ji..ab der kis baat ki hai.. :)
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट का लिंक देने की लिए एड्रेस बार को देखिये , कर्सर को एड्रेस बार पर ले जाकर मार्क करें और कापी कर लें फिर यहाँ पेस्ट करें ! यह रहा आपकी इस पोस्ट का लिंक
ReplyDeletehttp://ajit09.blogspot.com/2010/07/blog-post_16.html