अमेरिका में रहते हुए थोड़ी तबियत खराब हो गयी, सोचा गया कि डॉक्टर को दिखा दिया जाए। भारत से चले थे तब इन्शोयरेन्स भी करा लिया था लेकिन अमेरिका आने के बाद पता लगा कि इस इन्श्योरेन्स का कोई मतलब नहीं, बेकार ही पैसा पानी में डालना है। मेरा भानजा भी वहीं रेजिडेन्सी कर रहा है तो उसी से पूछ लिया कि क्या करना चाहिए। उसने बताया कि भारत में जैसे एमबीबीएस होते हैं वैसे ही यहाँ एमडी होते हैं। वे सब प्राइमरी हेल्थ केयर के चिकित्सक होते हैं। अर्थात आपको कोई भी बीमारी हो पहले इन्हीं के पास जाना पड़ता है। वे आपका परीक्षण करेंगे और यदि बीमारी छोटी-मोटी है तो वे ही चिकित्सा भी करेंगे और यदि उन्हें लगेगा कि बीमारी किसी विशेषज्ञ को दिखाने जैसी है तो फिर रोगी को रेफर किया जाएगा।
मैंने भी ऐसे ही प्राइमरी हेल्थ केयर में दिखाया और पाया कि कोई रोग नहीं है, बस सफर के कारण ही हो रहा है। कुछ ही दिनों में मेरी बहु के कान में दर्द हो गया, वह भी प्राइमरी हेल्थ केयर पर ही गयी और वहीं के डॉक्टर ने कान की सफाई कर दी। किसी भी कान के विशेषज्ञ ने उसे नहीं देखा। पोते को बुखार आया तो डॉक्टर ने कह दिया कि तीन दिन भी बुखार नहीं उतरे तो आना, नहीं तो बस पेरासिटेमोल सीरप ही देते रहो।
भारत में बेचारा MBBS गरीबों का डॉक्टर बनकर रह गया है। जिसके पास भी नाम मात्र को भी पैसा है वह किसी न किसी विशेषज्ञ के पास ही चिकित्सा कराता है। इसकारण जहाँ पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए लाइन लगी रहती है वहीं एमबीबीएस की कोई पूछ नहीं होती। मजेदार बात यह है कि अमेरिका में रह रहे नागरिक भी जब भारत आते हैं तो इन्हीं विशेषज्ञों के पास भागते हैं, वे कभी भी छोटी-मोटी, सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों के लिए एमबीबीएस के पास नहीं जाते और ना ही छोटे अस्पतालों में जाते हैं। प्राइमरी हेल्थ केयर के चिकित्सक रोगी की सम्पूर्ण चिकित्सा करते हैं और साथ ही आयुर्वेद की चिकित्सा करने के लिए भी अधिकृत होते हैं। भारत में हम बच्चों की चिकित्सा के लिए बड़े चिंतित रहते हैं जबकि वहाँ पाँच साल के बच्चों के लिए सभी प्रकार की दवाइयों पर प्रतिबंध है। केवल पेरासिटेमोल सीरप ही उन्हें दी जाती है। इन्फेक्शन होने पर ही एण्टी बायटिक्स का प्रयोग किया जाता है। कोशिश यही रहती है कि ज्यादा से ज्यादा घरेलू चिकित्सा की जाए। वहाँ आयुर्वेद की रिसर्च पर सर्वाधिक पैसा खर्च किया जा रहा है और आम चिकित्सक जीवन-शैली में बदलाव की ही वकालात करता है। जबकि भारत में आयुर्वेद को झाड-फूंक के समान मान लिया गया है। मेरी भतीजी भी वहाँ डॉक्टर है और वह भी पूर्णतया आयुर्वेद और योग के आधार पर ही चिकित्सा कर रही है। मैंने आयुर्वेद महाविद्यालय से प्रोफेसर के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति ली थी और अपना जीवन सामाजिक कार्य और लेखन को ही समर्पित किया था तो मेरी भतीजी और भानजे का आग्रह था कि मैं आयुर्वेद की चिकित्सा में उनका सहयोग करूं। अमेरिका में आयुर्वेद के स्कोप को देखते हुए उनका कहना भी अपनी जगह ठीक ही था लेकिन मेरा मन इस सब में लगता नहीं तो मैंने उन्हें कहा है कि मैं उन्हें किसी अन्य से सहयोग दिलाऊँगी।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हम अमेरिका की चिकित्सा के बारे में बहुत अलग राय रखते हैं जबकि प्रारम्भिक चिकित्सा में वे बहुत ही साधारण तरीके अपनाते हैं और एमबीबीएस के समकक्ष चिकित्सक ही चिकित्सा करते हैं। उनका सारा ध्यान जीवन-शैली के बदलाव की ओर है और हमारा सारा ध्यान केवल चिकित्सा में।
अब अमेरिका घरेलू चिकित्सा और आयुर्वेद की ओर ध्यान दे रहा है .. तो शायद आनेवाले समय में भारतीय भी इसपर ध्यान दें .. हमलोगों को नकल करने की आदत जो है !!
ReplyDeleteबनती कोशिश तो हमारी होती है कि पतंजलि आयुर्वेदिक के क्लिनीक पर दिखायें, नहीं तो पास में ही एक MBBS पारिवारिक डॉक्टर हैं, उनसे सलाह ले लेते हैं, फ़िर विशेषज्ञ के पास।
ReplyDeleteभारत मै पता नही क्यो छोटी छोटी बातो के लिये भी विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है, हां अगर डा० जान पहचान का है तो नही, वेसे अब जर्मनी मै भी आयुर्वेद ओर होमोयोपेथी की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, मै भी भारत से बहुत सी जडी बुटिया ले कर आता हुं, पहले पहल बच्चो को यकिन नही था लेकिन जब उन्हे इन चीजो से आराम आया तो अब यकीन आया, ओर अब तो वो भी कुद यह चीजे मांगते है, पेट खराब होने पर, सर्दी जुकाम होने पर, आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी. धन्यवाद
ReplyDeleteएतद्देशे प्रसूतस्य सकासादग्र जन्मनः!
ReplyDeleteस्वं-स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्याम् सर्व मानवाः!!
अच्छा आलेख! लेकिन एमडी को एमबीबीएस के समकक्ष रखना शायद सही न हो क्योंकि अमेरिका मैन चार साल की कौलेज डिग्री के बिना मेडिकल में प्रवेश नहीं मिलता है. जबकि एमबीबीएस के लिये आपका बारहवीं पास होना काफी है. कुछ और नहीं तो भी चार साल तो वहीं अधिक लग गये.
ReplyDeleteदूसरी बात यह है कि अमेरिका में एंटिबायतिक के दुरुपयोग की काफी जागरूकता है परंतु यह प्रायमरी फिजिशिअन भी किसी निश्कर्ष पर पहुंचने से पहले अपने अन्दाज़े के बजाय प्रयोगशाला में हुए सटीक टेस्ट को बहुत महत्व देते हैं और उसीसे आगे की दिशा निर्धारित करते हैं।
Apne desh mein bhi ghareloo upchaar ko praarthmikta deni chaahiye ... ye sabse kaargaar upaay hain jinko ham aadhunikta ke chalte bhoolte ja rahe hain ...
ReplyDeleteअनुरागजी, मेरी जानकारी के अनुसार वहां पोस्ट ग्रेजुएट को डीएम की डिग्री देते हैं। भारत में एमबीबीएस साढे पांच साल में पूरा होता है। भारत से एमबीबीएस किए छात्र को वहां दो साल की रेजीडेन्सी करनी पडती है तब उन्हें एमडी की डिग्री मिलती है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 11.07.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
सही कहा संगीता जी,ने...हर चीज़ वाया विदेश आती है तो लोकप्रिय हो जाती है...वैसे अब भारत में भी लोग थोड़े जागरूक हो गए हैं....और घरेलू उपचार पर भरोसा करने लगे हैं..
ReplyDeleteajit gupta said...
ReplyDeleteअनुरागजी, मेरी जानकारी के अनुसार वहां पोस्ट ग्रेजुएट को डीएम की डिग्री देते हैं।
गुप्ताजी,
यह एकदम अलग बात है. मैं सिर्फ यह कह रहा हूँ की जहां भारत में बारहवीं कक्षा के बाद mbbs में दाखिला मिल जाता है वहीं अमेरिका में मेडिकल में दाखिले के लिए बारहवीं काफी नहीं है बल्कि ४ साल की स्नातक डिग्री पहले से होने के बाद आप मेडिकल में प्रवेश पाते हैं. और रेसीडेंसी तो सभी के लिए ज़रूरी है. अर्थ यह है की भारत का mbbs और यहाँ के md में चार साल की शिक्षा का अंतर सामान्य है.
अनुरागजी,यह मुझे मालूम है आप यह बताएं कि एमडी की मान्यता विशेषज्ञ की है क्या? क्योंकि मुझे बताया गया था कि इन्हें विशेषज्ञ की मान्यता जो भारत में एमडी को है नहीं है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट यहाँ के उन अभिवावकों को पढ़ना चाहिये जो छोटी छोटी बात में बच्चों को दवाईयों से लाद देते हैं ।
ReplyDeleteअरे आपको तो वहीं अपना क्लीनिक खोल लेना था ...समाज सेवा भी करतीं ठाठ से रहतीं -कहाँ यहाँ के कीचड में आ गयीं दुबारा !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी....यहाँ तो बचपन से ही एंटीबायटिक दवाईयों कि आदत डाल दी जाती है...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख ..
ReplyDeleteचरक के देश में चिकित्सा पर कम ध्यान दिया गया है ..
भारत में आयुर्वेद हो रस्मी तौर पर रखा जाता है , उपेक्षा के साथ अध्ययन होता है !
एलोपैथी में विदेश बाजी मार जाता है .. वैसे इंग्लैण्ड में अच्छे खासे भारतीय डॉक्टर
है संख्या में !
भारत को अपने मौलिक जमीन ( आयुर्वेद ) पर शोधपरक ढंग से काम करना चाहिए !
और ,
बीमारियों के कीचड़ में भारतीय चिकित्सक चिकित्सकीय कमल खिलाएंगे , मुझे
यकीन है !
ऐसे उपयोगी सतत लिखे जाने चाहिए ! आभार !
बहुत अच्छा लेख ..
ReplyDeleteचरक के देश में चिकित्सा पर कम ध्यान दिया गया है ..
भारत में आयुर्वेद हो रस्मी तौर पर रखा जाता है , उपेक्षा के साथ अध्ययन होता है !
एलोपैथी में विदेश बाजी मार जाता है .. वैसे इंग्लैण्ड में अच्छे खासे भारतीय डॉक्टर
है संख्या में !
भारत को अपने मौलिक जमीन ( आयुर्वेद ) पर शोधपरक ढंग से काम करना चाहिए !
और ,
बीमारियों के कीचड़ में भारतीय चिकित्सक चिकित्सकीय कमल खिलाएंगे , मुझे
यकीन है !
ऐसे उपयोगी सतत लिखे जाने चाहिए ! आभार !
** ऐसे उपयोगी लेख सतत लिखे जाने चाहिए ! आभार !
ReplyDeleteसंगीता जी से सहमत ...
ReplyDeleteहमारी तो प्राथमिकता आयुर्वेद चिकित्सा ही होती है ...!
लगता नहीं कि आगे के कुछ ही सालों में हमारा ध्यान भी जीवनशैली की तरफ होगा.. अभी बहुत वक़्त लगेगा हमें इस तरफ सोचने में.. लाजवाब पोस्ट रही ये भी..
ReplyDeleteशुक्रिया बहुत अच्छी जानकारी दी.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट! रोचक जानकारी।
ReplyDeleteतुम हमें चिपकाओ हम तुमे चिपकाओ अभियान---
ReplyDeleteअरे ओ तुमे पता है साक्षात्कार.कॉम ने एक नया अभियान चालू किया है । तुम हमें चिपकाओ हम तुमे चिपकाओ ? भाई तुम गलत मत समझो । हम तो ब्लॉग - साईट को प्रेरित करने की बात कर रहे है । अब करना क्या है । आप हमारी साईट पर जाओ और साईट के राईट हैण्ड पर नीले कलर वाले लिखे साक्षात्कार .कॉम पर चटका लगाओ । अब आप सीधे tahelka.co.in पर चले जायेगे वहा से H TML कोड लेकर अपनी साईट पर चिपका दो और हमें अपना लिंक और कोड मेल कर दो । हम आपको चिपका देगे । ऐसे करके चिपका चिपकी का खेल करते रहो । चलो राम राम ।
sahi ka aapne Ajit ji, aapki post ka link dhoondh hi liya humne.
ReplyDeletesaarthak post .