श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Friday, June 4, 2010
लॉस वेगास Las Vegas में प्ले - पाप की नगरी में कला और तकनीक का अद्भुत संगम
हम अपनी सीट पर बैठ चुके थे, एकदम पहली कतार में। लेकिन बैठने के बाद लगा कि सिनेमा हॉल की तरह यहाँ सामने एक ऊँची सी दीवार है और मंच कहीं दिखायी नहीं दे रहा था। दीवार के सामने से रह-रहकर आवाज के साथ आग के गोले निकल रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे जंगल में बम फूट रहे हों। हॉल में चारों तरफ राकेट के आकार की लम्बीह बिल्डिंग बनी हुई थीं। समझ नहीं आ रहा था कि रंगमंचीय शो है तो मंच कहाँ है? उन राकेटनुमा बिल्डिंगों में से कोई ना कोई मनुष्याककृति निकलकर आ रही थी तो हमें लगा कि बेकार ही हमने पहली कतार में सीट ली और इतने पैसे दिए। हमें तो यह प्लेी गर्दन घुमा-घुमाकर ही देखना पड़ेगा। आप सोच रहे होंगे कि मैं किस प्ले की बात कर रही हूँ? अजी हम अभी अमेरिका में हैं और वहाँ लॉस वेगास देखने गए थे। एक बड़े से होटल में बेटे ने कमरा आरक्षित कराया था नाम था एमजीएम होटल। उसी होटल में प्रतिदिन प्ले होता है तो बेटे का आग्रह था कि आपको अवश्य देखना चाहिए। टिकट के लिए लाइन में लगे तो मालूम पड़ा कि टिकट समाप्तत है बस ओने कोने में दो सीट मिल सकती हैं। अब दो जने प्ले देखने वाले हों तो अलग-अलग बैठकर तो प्ले नहीं देखा जा सकता है ना? लेकिन बेटे ने धैर्य नहीं खोया, उसने कमरे में आकर फिर टिकटों की जानकारी ली तो मालूम पड़ा कि पहली रो में ही दो सीटे हैं लेकिन पहली रो? अरे बाप रे वो तो बजट बिगाड़ देगी। 170 डॉलर की एक टिकट। तभी फोन के दूसरी तरफ से राहत की घोषणा हुई कि इसी होटल में ठहरे हुए यात्रियों के लिए 60 प्रतिशत की कटौती है तो एक टिकट हो गयी लगभग 100 डॉलर की। लेकिन जब हॉल में मंच ही नदारद था तो 100 डॉलर का औचित्य समझ नहीं आ रहा था।
हमने विचार किया कि इस बम के गोलों को देखा जाए कि ये कहाँ से आ रहे हैं? अभी हमने विचार ही किया था कि मूर्त रूप और किसी ने दे दिया। लेकिन वह सफल नहीं हो सका। वहाँ सर्कस की तरह दो-तीन जोकरनुमा आदमी घूम रह थे और उन्होंसने उसे वापस बैठा दिया। अब तो केवल शो शुरू होने का ही इंतजार था। इतने में ही कुछ और व्यक्ति चारों तरफ से कूदकर आने लगे तब तो पक्का यकीन हो गया कि यह प्ले तो दर्शकों के बीच ही खेला जाएगा। लेकिन कुछ पलों के बाद ही बम वर्षा बन्दा हो गयी और वहाँ से एक स्टेतज निकल आयी। राजा-रानी का दरबार सजा था, नृत्ये हो रहे थे। एक बात तो आम है कि राजा का दरबार सजा हो तो नृत्य तो अनिवार्य है। तभी लगता है कि हर आदमी राजा क्यों बनना चाहता है? खैर छोड़िए इस रामायण को, प्ले पर ही आती हूँ नहीं तो पोस्ट बेहद लम्बी हो जाएगी। नाच-गाना हो गया और अभी राजा प्रसन्नब होकर ईनाम वगैरह देने की सोच ही रहा होगा कि एकदम से जलजला आ गया। हॉल के चारो ओर बनी बिल्ड़िंगों से तीरों की बरसात होने लगी और सभी जगह आदिवासी लोग दिखायी देने लगे। तीर राजा और रानी को भी लगे और वे वहीं धराशाही हो गए। सभी तरफ भगदड़ मच गयी तभी स्टेज गायब हुई और एक नाव पानी में डोलती हुई दिखायी दी। समुद्री डाकुओं ने राजकुमार-राजकुमारी को उठा लिया।
पूरा प्ले तो नहीं बता रही, यदि अभी बता दिया तो आप क्या देखेंगे? बस इतना कहना चाहती हूँ कि वह स्टेलज कभी समुद्र का किनारा बन जाती, कभी नाव, कभी जंगल तो कभी कुछ और। आधुनिक तकनीक का मंचीय प्रदर्शन में इतना सुन्दिर प्रयोग कभी कल्पाना में भी नहीं देखा था। अब समझ आ रहा था आगे की प्रथम रो का कमाल। पूरे दो घण्टे के लाइव शो में पलक झपकने की भी फुर्सत नहीं मिली। कब कहाँ से तीर चल जाते और कब कहाँ से तलवार। सभी कुछ अपने आसपास हो रहा था। अन्ती में राजकुमार और राजकुमारी का प्रेम आदिवासी कबिले के राजकुमार और राजकुमारी से हो जाता है और सुखद अन्तज हो जाता है। पूरे प्ले में डॉयलाग नहीं थे। बस साउण्ड इफेक्ट था। इस प्ले का नाम था “का”। वेगास का यह प्रसिद्ध शो है और कई वर्षों से इसके अनवरत दो शो प्रतिदिन होते हैं। रंगमंचीय प्ले तो आपने बहुत देखे होंगे लेकिन तकनीक का ऐसा प्रयोग यहाँ पर ही देखा जा सकता है। आपके लिए मैं फोटो नहीं लगा सकती क्योंेकि शो में केमरा नहीं ले जा सकते थे। बस लॉस वेगास का टि्रप बनाइए और देखिए इस अद्भुत नजारे को। वैसे यह सिन-सिटी अर्थात पाप की नगरी कहलाती है लेकिन इस नगरी में भी कला की तो इस रूप में पूजा हो ही रही है। भई हमें तो बस यह प्ले ही रोमांचित कर गया और बाकि किसी पाप को हाथ भी नहीं लगाया। समझ गए ना आप, अर्थात बिल्कुल पवित्र ही बनकर रहे। आज यही तक, कल और कुछ।
रोचक वर्णन ...काश आप कैमरा ले जा पातीं ...
ReplyDeleteपाप की नगरी में पवित्रता बचाए रखने के आपके अभियान को सलाम ...:):)(lol)
रोचक वर्णन
ReplyDeletebahut sundar varnan...
ReplyDeleteaccha laga padh kar...
रोचक!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रही यह राम कहानी!
ReplyDeleteबस लॉस वेगास के टिकेट का जुगाड़ हो जाये तो प्ले की टिकेट तो खरीद ही लेंगे जी । :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा ये वर्णन ।
बड़े शहर के एक बड़े और अलग रंगमंच के बारें में पढ़ कर अच्छा लगा..बढ़िया प्रस्तुति...धन्यवाद
ReplyDeleteaapki lekhni ke through hamne bhi dekh liya Las VEgas me play.....:)
ReplyDeletekabhi hamare blog pe aayen plz!
अब जाकर लगा कि आप अमेरिका में हैं !
ReplyDeletehttp://en.wikipedia.org/wiki/K%C3%A0
ReplyDeleteवर्णन बहुत बढिया किया जी आपने और ट्रेलर देखकर ही मैं तो रोमांचित हो गया।
ReplyDeleteप्रणाम
बढ़िया प्रस्तुति , और उनकी यही सब खूबियाँ, तकनीकियाँ देख यह नहीं लगता कि हम लोग अभी कुंए के मेंढक है ?
ReplyDeleteरोचक पोस्ट...
ReplyDeleteमजे दार ओर रोमांच कारी, एक बार 4D फ़िल्म भी जरुर देखे, यह यादे बहुत देर तक साथ रहती है जी
ReplyDeleteममा...बहुत रोचकता से वर्णन किया है आपने....
ReplyDeleteराज भाटिया जी, 4 डी फिल्म तो मैं पहले ही देख चुकी हूं, इस बार भी माइकल जेक्सन का एक शो था उसमें भी 4डी इफेक्ट था।
ReplyDeleteलास वेगस की बात ही निराली है. लगता है MGM में रुकीं थी क्या आप?
ReplyDeleteसमीरजी, मैंने लिखा है एमजीएम में रुकने के बारे में। बहुत विशाल होटल है।
ReplyDeleteबहुत रोचक....आपके साथ साथ शब्दों के माध्यम से कुछ कुछ जानने में सफलता मिली ....और भी अनुभवों का इंतज़ार रहेगा ..
ReplyDelete"KA" play ka anubhaw ya varnan aapne blogron ke liye ki yah kabile tarif hai. baharhal log kahte hai-"Kashmir ki kalpna kitabon se padh kar nahi ki ja sakti".......................????
ReplyDeleterochk vrnan .ham to pdhte pdhte hi is teknik ke kayl ho gye .achha lg raha apke snmrn pdhna ,aage intjar rhega .
ReplyDeleteajitji main to yun hi las vegas ho aya aap ko padhkar. us din sachmuch ka tel thode hi pee liya tha. are, kuchh tedhi bat kahni ho to bhumika bhi to vaisi hi honi chahiye.
ReplyDeleteaap ka blog jankariyon se bhara hai.
अद्भुत.
ReplyDeleteकिसी शो का मजा लेने के लिए आपकी सीट बेहद मायने रखती है...आपकी परेशानी समझ सकती हूं
ReplyDeleteआनंद आ गया आपकी नज़रों से लास वेगास घूम कर ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteplay,technology ka upayog sab to badiya hi hai,mujhe to play shuru na hone tak aap ke man ki dhukdhuki,100 dollars ki barbadi ki chinta ka varnan majedar laga.aam bhartiy ki bholi si mansikta.
ReplyDeleteLas Vegas , ek baar dekhne jaisee jagah hai ...
ReplyDeleteRochak varnan kiya aapne