अमेरिका के एक मॉल में घूम रहे थे। कुछ किशोर बच्चे अजीबो-गरीब ड्रेस पहने हुए थे। किसी ने अपनी आयु से काफी बड़ा टी-शर्ट, किसी ने फुल टी-शर्ट पर हॉफ शर्ट और फटी जीन्स पहन रखी थी। वे बच्चे मेक्सिन, साउथ अफ्रिका आदि देशों के थे। गरीब थे और छोटे-मोटे धंधे करके अपना गुजारा करते थे। मैंने बेटे से पूछा कि ये बच्चे क्या ऐसी ही अजीबो-गरीब और फटी-टूटी ड्रेस पहनते हैं। उसने कहा कि हाँ ये ऐसी ही पहनते हैं। खैर हम भी मॉल में एक कपड़ों की दुकान में गए। बेटे ने कहा कि कुछ खरीदना हो तो खरीद लो। वहाँ फटी हुई जीन्स लटकी हुई थीं, मुसी-तुसी शर्ट पड़ी थीं। मैंने कहा कि क्या हम किसी कबाड़ी की दुकान में आ गए हैं? बेटा हँसा और बोला कि यही फैशन है।
दूसरे दिन शहर के अन्दरूनी हिस्से में थे, लोग बड़े करीने से सूट पहने थे, महिलाएं भी अच्छे वस्त्र पहने हुई थीं। मैंने फिर बेटे से पूछा कि तुम तो कहते थे कि वो फैशन है, पर ये सम्भ्रान्त लोग तो बड़े सलीके से कपड़े पहने हैं। बेटा बोला कि ये तो बड़े लोग हैं। हम देशी तो यही पहनते हैं। एक बार मेरा तो बेटे से झगड़ा भी हो गया। बाजार जाना था वो बरमूडा पहनकर आ गया कि चलो। मैंने कहा कि यह क्या? कपड़े तो ढंग के पहनकर चलो। वह बोला कि अरे यहाँ तो सभी ऐसे ही जाते हैं। मैंने गुस्से में कहा कि नहीं तुम कपड़े बदलो। वह गुस्से में भुनभुनाता हुआ कपड़े बदलकर आया, वो भी कोई अच्छे नहीं थे।
मैंने भारत आकर जब अपनी बहन से कहा कि अरे ये युवा फैशन के नाम पर क्या पहनते हैं? उसने बताया कि मेरा किस्सा सुनो। वह बोली कि मेरा बेटा जब भारत आया तो अपनी एक जीन्स छोड़ गया। मैंने उसे देखा, वो फटी हुई थी। मेरे नर्सिंग होम में जो सफाई कर्मचारी था, उसे मैंने वो जीन्स दे दी। कुछ महिनों बाद बेटा जब वापस आया तब उसने पूछा कि मम्मी आपने मेरे कपड़े किसी को दिए हैं क्या? मेरी एक नयी जीन्स नहीं मिल रही। मैंने बड़ा याद किया लेकिन कुछ याद नहीं आया। फिर अचानक से याद आया कि अरे एक जीन्स जो फटी हुई थी वो मैंने राजू को दी थी। अब बेटा भड़क गया, बोला कि अरे मम्मी आप क्या करती हैं? मेरी नयी जीन्स उसे दे दी। मैं अभी वापस लाता हूँ।
मैंने कहा कि उसकी पहनी हुई वापस लाएगा क्या? लेकिन वो बोला कि मुझे कोई फरक नहीं पड़ता। वो गुस्से में तमतमाया हुआ राजू के पास गया। उसने कहा कि तूने मेरी जीन्स ली है क्या? वह बोला कि मैं फटी हुई जीन्स नहीं पहनता, मेडम ने दी थी, तो मैं मना नहीं कर सका, लेकिन वो उस अल्मारी में रखी है। मैंने उसे हाथ भी नहीं लगाया है। आखिर उसे जीन्स वापस मिल गयी।
अभी टीवी पर एक कार्यक्रम आ रहा था, उसमें शाहिद कपूर ने एकदम फटी हुई जीन्स पहन रखी थी। फिर दूसरे कार्यक्रम में और भी हीरोज ने ऐसी ही घुटनों से और पीछे से फटी हुई जीन्स पहन रखी थी। कुछ ने लम्बी टी-शर्ट और ऊपर से हॉफ शर्ट पहन रखी थी। तब मन में एक विचार आया कि अमेरिका के गरीब की तो मजबूरी है, फटे हुए कपड़े पहनना और शायद जो भारतीय वहाँ रह रहे हैं वे भी अपनी धुलाई की समस्या और गरीबी के कारण ऐसे ही कपड़े पहन लेते हों। लेकिन ये अभिनेता, जिनसे भारत का फैशन बनता है, क्या इतनी हीनभावना से ग्रसित हैं जो अमेरिका की गरीब जनता जैसे कपड़ों को फैशन के नाम पर पहनते हैं? यह तो आप सब जानते ही हैं कि जीन्स तो वहाँ काउ-ब्वायज अर्थात ग्वाले पहनते हैं। वो भी हमने फैशन बना लिया और अब फटे-टूटे कपड़ों को फैशन बना रहे हैं। क्या ये अभिनेता वहाँ के अभिनेताओं के फैशन को नहीं अपना सकते? कितनी हीनभावना से भरा हुआ हैं हमारा अभिजात्य वर्ग भी?
बहुत बढ़िया ....प्रस्तुति ......आपने सही कहा किसी की मजबूरी को हमारे देश में फैशन बना लिया जाता है .
ReplyDeleteअच्छा लेख और अच्छी सोच। पर ऐसा क्यों हुआ तो इसका उत्तर यह है ( क्व्वा चला हंस की चाल अपनी चाल भूल गया)
ReplyDelete"अमेरिका के एक मॉल में घूम रहे थे। कुछ किशोर बच्चे अजीबो-गरीब ड्रेस पहने हुए थे। किसी ने अपनी आयु से काफी बड़ा टी-शर्ट, किसी ने फुल टी-शर्ट पर हॉफ शर्ट और फटी जीन्स पहन रखी थी। वे बच्चे मेक्सिन, साउथ अफ्रिका आदि देशों के थे।"
ReplyDeleteतो इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फैशन और प्रगति और समृधि की दौड़ में हमारा देश अमेरिका से कितने साल पीछे है !
पसन्द अपनी अपनी !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
अच्छा लगा आपका लेख ........ दरअसल ये फैशन शब्द भी कुछ अमीर और पढ़े लिखे अभिजात्य वर्ग से आया है ...... ग़रीब को तो दो जूनकी रोटी मिल जाए वो बहुत है .........
ReplyDeleteसहमत हूँ,विचारों के दर्पण जी से ।
ReplyDeleteमैम आपने मेरे मन की बात कह दी अगर मैं आपको अपनी कहानी सुनाऊँ तो आप हंसते हंसते लोट पोट हो जायेंगी। बिलकुल सही लिखा है हम उन लोगों से अच्छी बातें तो सीखते नही बस ऐसी उल्टी पुल्टी हरकतें जरूर सीख लेते हैं सही पोस्ट है शुभकामनायें
ReplyDeleteहमारे देश का अभिजात्य वर्गीय युवा व्यवसायिक विशेषज्ञ बन कर पश्चिमी देशों में पलायन कर जाता हैं। वह जब भारत वापस लौटता है तो उसकी समाजिक प्रतिष्ठा और बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त उसकी गिनती श्रेष्ठ पुरुषों (महाजनों) में होने लगती है। अच्छा व्यवसायिक होना और अच्छा इंसान होना दोनों में बहुत अंतर है। फिर भी वे वहाँ से जो आचार-विचार भाषा और संस्कार यहाँ लाते हैं उसे आम भारतीय युवा अपना आदर्श (रोल माडल) मान बैठते हैं। उसी की परिणति आधुनिक परिधानों में दिख रही है।
ReplyDeleteसद्भावी.डा0 डंडा लखनवी।
हा हा आप भी -अमेरिकेन बेटे के साथ भी रहकर उन्हें समझ नहीं पायीं .अमेरिकन साफ़ दिल के क्रेजी होते हैं .
ReplyDeleteमेरी अमेरिकन भतीजी ने अपनी जींस भारत में लाकर खूब मिट्टी में गन्दा किया ,कुत्ते से नुचवाया ,नीचे फट फुट गया तो शान से पहना .हा हा जाते वक्त अपने साथ वापस ले गयी .
हम ज्यादातर भारतीय पाखंडी होते हैं और छद्म अभिजात्य के शिकार .नाहक आपने बेटे को डांटा >
सच्चाई है कि हम विदेशी संस्कृति को अपना कर अनगिनत संकटों में घिर गये हैं।
ReplyDeleteनकल में हम सबसे आगे हैं!
ReplyDeleteअरे बाबा ..यही फैशन है आजकल ..
ReplyDeleteनए कपडे फटे हुए मिलते हैं यहाँ ...
मेरे बेटे ने टी-शर्ट पहनी हुई थी गले में सारा घिसा हुआ था...मैंने कहा ये पुरानी फटी टी-शर्ट क्यूँ पहनी है..कहाँ से निकाल लाये ये पहले तो नहीं देखा था...
बोला मम्मी कल ही खरीदा है....Go with the flow मम्मी...
ये कपडे भिखारियों के नहीं है....मिलियानार्स भी यही पहन रहे हैं आज कल....
Go with the flow !!!
हा हा हा
कमाल है, इस वस्त्र-साम्यवाद का प्रणेता भी अमेरिका ही निकला.
ReplyDeleteये भी खूब रही.
ReplyDeleteआपने सही कहा किसी की मजबूरी को हमारे देश में फैशन बना लिया जाता है ......
ReplyDeletebahut aacha lekh hai,please see my blog RAMRAYBLOGSPOST.BLOSPOST.COM
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteपहले तो बधाई, अमर उजाला में आज आपकी ये रचना प्रकाशित हुई है...मैं पहले वहीं
पढ़ चुका था...
आपको नहीं लगता समाजवाद सही मायने में आ रहा है...एक के पास इतने पैसे नहीं होते
कि वो अच्छी तरह तन ढकने लायक कपड़े खरीद सके...एक के पास इतने पैसे है कि वो
तन दिखाने के लिए फैशन के नाम पर फटे हुए कपड़े पहन रहा है वो भी मोटी कीमत
चुका कर...एक के लिए फटे कपड़े पहनना मजबूरी है...दूसरे के लिए अलग दिखने का
चोंचला...
जय हिंद
खुशदीप जी
ReplyDeleteकृपया अमर उजाला का लिंक दें। मुझे कहीं नहीं मिला। सूचना के लिए आभार। आपने सच लिखा है कि ऐसे कपड़ों से ही अमीरी-गरीबी का भेद मिटेगा।
अजित जी,
ReplyDeleteये रहा लिंक...
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जय हिंद...
फटे पुराने कपडे पहनना न सिर्फ फैशन का सिम्बल है, बल्कि विद्रोह का भी सिम्बल है, और कुछ हद तक सामाजिक दबाब जो हमेशा एक ख़ास खांचे में आपकों ढलना चाहतें है उससे आज़ादी भी है. कुछ अलग तरह से अपने समय से और अपनी पीढी से संवाद का मामला भी है. इसे इतनी आसानी से खारिज़ नहीं करना चाहिए.
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