आज समाचार पत्रों में एक समाचार प्रकाशित हुआ, बी.बी.सी. ने एक सर्वे कराया कि सात मानवीय दुर्गुण यथा लोभ, ईर्ष्या, आलस्य, पेटूपन, वासना, क्रोध और अभिमान किन देशों के नागरिकों में अधिक है? आस्ट्रेलिया, अमेरिका, मेक्सिको, दक्षिणी कोरिया आदि देश इन दुर्गुणों में प्रथम रहे। हम अपने देश भारत को इन दोषों से युक्त मानते हैं और हम इसी हीन भावना से ग्रसित हैं कि हम ही सर्वाधिक इन दुर्गुणों से ग्रसित हैं। क्यों भारत के नागरिक इस सर्वे में प्रथम नहीं आए और क्यों विकसित देश इस सर्वे में प्रथम आए? हमें इस विषय पर चिंतन करना चाहिए।
विश्व में जब से सभ्यता का जन्म हुआ तभी से परिवारवाद को महत्व मिला। इसका मुख्य कारण व्यक्ति की सुरक्षा था। व्यक्ति परिवार में रहकर स्वयं को सुरक्षित पाता था। लेकिन पश्चिम में जब से व्यक्तिवादी दर्शन की स्थापना हुई तभी से परिवारवाद का विघटन प्रारम्भ हुआ। विज्ञान के आविर्भाव के साथ ही इस व्यक्तिवादी चिन्तन में तीव्रता आई। डार्विन नामक वैज्ञानिक ने यह सिद्ध किया कि सृष्टि में जो शक्तिशाली है वही जीवित रहता है। इस दर्शन के बाद तेजी से व्यक्तिवाद बढ़ा। लगभग 100 वर्षों पूर्व व्यक्तिवाद का नया नामकरण हुआ और वह था केरियर। अब आधुनिकता का पर्याय बन गया केरियर। ज्ञान के स्थान पर विज्ञान के आने का परिणाम यह हुआ कि ज्ञान पुरातन का प्रतीक बना और विज्ञान आधुनिकता का। इस कारण जो परम्परागत चिन्तन एवं व्यवस्थाएं थीं वे पुरातन हो गयीं और इसके विपरीत सारी ही व्यवस्थाएं आधुनिक हो चली।
भारत सन् 1500 तक सर्वाधिक समृद्ध राष्ट्र था, यह इतिहास का निर्विवादित सत्य है। इसके विपरीत यूरोप जैसे देश सर्वाधिक अविकसित देश थे। अमेरिका आदि देश तो कहीं गणना में ही नहीं थे। भारत में तब तक पारिवारिक व्यापार या रोजगार प्रथा थी। ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण और क्षत्रीय का बेटा क्षत्रीय बनता था। लेकिन विज्ञान और अंग्रेजों के आने के बाद भारत में भी आधुनिकता का प्रवेश हुआ। अंग्रेजों की वेशभूषा, खानपान और विवाह पद्धति हम से एकदम भिन्न थे इस कारण भारतीयों को इनने आकृष्ट किया। शिक्षा के नवीन आयामों के कारण नवीन रोजगार प्रारम्भ हुए। पारिवारिक व्यवसाय बिखरने लगे। लेकिन यह बदलाव बहुत ही कम मात्रा में था। लेकिन लगभग 100 वर्षों से शिक्षाजनित रोजगारों में तेजी आयी और परिवारवाद के स्थान पर व्यक्तिवाद आ गया। धीरे-धीरे व्यक्तिवाद का नामकरण हुआ केरियर। केरियर निर्माण आधुनिकता का प्रतीक बन गया और समय की आवश्यकता भी।
शिक्षा से उत्पन्न रोजगारों के कारण गाँव-कस्बों में निकलकर युवावर्ग शहरों में बसने लगा। शहरों और महानगरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण अनेक रोजगार उत्पन्न हुए और गाँव से मजदूर भी अब शहरों की ओर पलायन करने लगे। यह स्थिति भारत में ही नहीं आयी अपितु विश्व के प्रत्येक देश में आयी। जिन देशों का समाज जितना अधिक केरियर ओरियेण्टेड हुआ उतने ही परिवार बिखर गये। परिवारवाद और व्यक्तिवाद में एक मूल अन्तर है। परिवारवाद में सबको साथ रखने का भाव है जबकि व्यक्तिवाद में केवल स्वयं का चिन्तन है। इस कारण परिवार में त्याग की भावना सर्वोपरि होती है और व्यक्तिवाद में भोग की। परिवार में रहते हुए सभी सदस्यों के अभ्युत्थान का भाव रहता है तथा किसी अशक्त व्यक्ति को भी बराबर के अवसर प्राप्त होते हैं। लोभ, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, आलस्य, पेटूपन और वासना के भावों की वृद्धि नहीं होती। व्यक्ति अपने परिवार से ही संस्कारित होता है इस कारण उसके सार्वजनिक जीवन में भी इन दुर्गुणों का प्रवेश नहीं होता है।
लेकिन वर्तमान परिवेश में जब केरियर ही हमारी प्राथमिकता हो गयी है तब यह सारे ही दुर्गुण स्वयं ही चले आते हैं। केरियर का अर्थ होता है कि जीवन की घुड़दौड़ में प्रथम आना। आज के माता-पिता अपने बच्चों को इस घुड़दौड़ में प्रथम लाने के प्रयास में लगे रहते हैं। वे स्वयं को मिटाकर केवल बच्चे को प्राथमिकता देते हैं इस कारण बच्चे में अहंकार का दोष उदय होता है। जैसे-जैसे उसकी शिक्षा बढ़ती है माता-पिता के लिए केवल बालक ही सर्वोपरि होने लगता है और बच्चा अहंकार से परिपूर्ण बन जाता है। जब वह प्रतियोगिता में भाग लेता है तब वह क्रोध और ईर्ष्या का शिकार होता है। माता-पिता ही उसे आलसी और पेटू बना देते हैं। जब बालक व्यक्तिवादी बनता है तब लोभ और भोग स्वत: ही चले आते हैं। ये सात दुर्गुण केरियर निर्माण की देन है।
आस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि देशों में परिवार पूर्णतया: बिखर चुके हैं। जिन-जिन देशों से जनसंख्या का सर्वाधिक पलायन हुआ या जिन देशों में सर्वाधिक आगमन हुआ, ये दोष वहीं अधिक उपजे। क्योंकि पलायन करने से ही परिवार का बिखराव हुआ। अमेरिका और आस्ट्रेलिया दोनों ही देश यूरोपियन्स के कारण विकसित हुए हैं। वे वहाँ जाकर बसे और अब तो इन दोनों देशों में विश्व के सारे देशों की जनसंख्या बसती है। इसकारण परिवार के संस्कार वहाँ सर्वाधिक न्यून है। भारत में आज भी बहुत बड़ी जनसंख्या परिवार के संस्कार के साथ रहती है इसी कारण ये सारे ही दोष हमारी अधिकांश जनसंख्या में नहीं है।
लेकिन केरियर निर्माण की दौड़ में प्रत्येक व्यक्ति दौड़ने को आतुर है। देर-सबेर भारत में भी केरियर के कारण परिवार प्रथा समाप्त होगी। तब हम भी इन सारे ही दुर्गुणों से बच नहीं सकते। इसलिए हमें पुन: विचार करना होगा अपने पारिवारिक व्यवसाय प्रणाली पर। गाँवों और कस्बों से पलायन रोकने के लिए वहाँ रोजगार के साधन उपलब्ध कराने होंगे। नहीं तो महानगरों और शहरों में संस्कारविहीन युवाओं की जनसंख्या बढ़ती जाएगी। शिक्षित युवाओं को भी अपने ग्रामों में ही रोजगार के साधन खोजने होंगे। अधिक से अधिक स्थानीयता को महत्व देना होगा। सरकार को भी अपनी नीति बदलनी होगी। परिवारप्रथा को बचाने के लिए कर्मचारी की नियुक्ति स्थानीय स्तर पर ही करनी होगी। बड़ी कम्पनियों को भी कर्मचारी के कार्य-समय को नियमित करना होगा, जिससे वह परिवार में पूर्ण समय दे सके। इससे दो लाभ होंगे, एक कर्मचारी के स्थान पर दो कर्मचारी की नियुक्ति होगी और परिवार भी बचेंगे। अब समय आ गया है कि हम इस विषय को गम्भीरता से लें और परिवारवाद को पुन: विकसित करें और केरियरवाद को गौण करें।
bhut achhi jankari abhi adha lekh padha hai ek or tippni dunga sara lekh padhne ke pashchat
ReplyDeletepashcimi desho ka to pariwarik dhancha hai nhi or ab bhart ko bhi khtm karne ki sazish ho rahi hai or bhartiy mans samjh nhi pa rahaa hai bhartiy pahle andh vishvasi nhi the jitna unhe angreji mansikta ne kya hai
ReplyDeleteआपका लेख सारगर्भित है!
ReplyDeleteअजित गुप्ता जी, क्षमा करे लेकिन बीबीसी के सर्वे में मुझे लगता है कुछ कमिया रह गई !
ReplyDeleteउनका सर्वे तुर्टिपूर्ण इसलिए है क्योंकि उन्होंने जानबूझकर भारतीयों को इस गलत फहमी में रखा है कि वे औरो से बेहतर है, मुझे तो उनके सर्वे में भी नश्लवाद की बू आ रही है, क्योंकि वे नहीं चाहते कि हम सुधरे !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कुछ विचारणीय तथ्य रखती है .... सर्वे की बात छोड़ भी दें तो ये अपने आप में एक समस्या तो है ही ....... परिवार की परिपाटी को बचाना है या नही .........
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है,आपने....धीरे धीरे परिवारों का विघटन शुरू हो गया है...,,और जबतक सरकार गाँवों -कस्बों में रोजगार मुहैया करने के साधन नहीं ढूंढती....गाँवों से शहरों का पलायन जारी रहेगा...और ये सारे दुर्गुण अपनी चपेट में लेने ही वाले हैं...हमारे देशवासियों को भी.
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteभौतिक सुखों की मृगतृष्णा ही समाज में विकार पैदा कर रही है...भागते रहने, भागते रहने का अंत आखिर कहां होता है...पश्चिम वाले भौतिकता की पराकाष्ठा पार करने के बाद मन की शांति ढूंढने के लिए ऋषिकेश, अजमेर, हरिद्वार या हिमालय के अन्य मनोरम स्थलों पर मारे-मारे घूमते देखे जा सकते हैं...अपने अहम के सामने दूसरे किसी को कुछ न समझने की नासमझी ही है जो हमारे देश में भी न्यूक्लियस परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है...आदमी को अपनी गलतियों का अहसास तभी होता है जब वो घर में खुद बड़ा हो जाता है...इतना बड़ा कि छोटे ही सारे बड़े फैसले खुद लेने लगते हैं...
जय हिंद...
आपकी बात से सहमत हूँ..
ReplyDeleteविदेशों में परिवारवाद है ही नहीं...यहाँ सिर्फ व्यक्तिवाद है...अधिकांश लोगों की सोच की सीमा खुद तक ही सीमित है..और यह बहुत बड़ा कारण है कि गहरे संबंधों में भी आपसी सामंजस्य तो है... प्रेम नहीं है...लोग संबंधों को बहुत ही औपचारिक रखते हैं...
सम्बंदों में औपचारिकता......बहुत बड़ा कारण है जो किसी को भी अपनी समस्या को दुसरे के साथ साझा करने से रोकती है....हर इंसान अपना सलीब खुद ही उठाये होता है.....परिवार के और से कोई साथ नहीं मिलता.....इसलिए उअर कोई विकल्प नहीं होता सिवाय इसके की करियर की ओर उन्मुख हो जाएँ ...
अगर आप १८ वर्ष की आयु के बालक/बालिका को घर से चले जाने को और खुद अपनी देख भाल करने को कहेंगे तो वो कर भी क्या सकते हैं...ऐसे परिवार की फिर आवश्यकता भी कहाँ रह जाती है..तब वह इंसान परिवार को भूल अपना जीवन बचाने को जुट जाता है...
जबकि बारात में अधिकंश परिवार परिवारवाद पर ही आधारित हैं...हर माँ-बाप अपने बच्चे के तब तक साथ होता है जब तक उनमें क्षमता होती है...और यह धुन आज भी बरकरार है...
आपका आलेख बहुत ही समय सामयिक है...अच्छा लगा पढ़ कर...
आभार...
बारात= भारत
ReplyDeletebahut saar garbhit lekh..
ReplyDeleteकेरीअर की भेंट चढ़ते परिवारों की व्यथा और गाथा और उसके समाधान की सटीक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआभार ...!!
विचारणीय...बहुत सारगर्भित!
ReplyDeleteआपका आलेख बहुत सार्गर्भित है। आज कल परिवारों के बिखराब को देखते हुये सही मे कुछ करने की जरूरत है। ये सर्वे बिलकुल सही लगता है ये हमारा ही देश है जहाँ अभी भी बहुत कुछ अच्छा है और इसे समय रहते सहेजा भी जा सकता है। अगर सरकार मे देश के लिये कुछ करने की इच्छा सकती हो तभी। धन्यवाद
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