Saturday, October 24, 2009

कविता - तुम ही दीप जला जाती हो

गीला-गीला मन होता जब
तुम आकर बस जाती हो
रीता-रीता मन होता जब
झोंका बन छू जाती हो।


मेरी चौखट, तेरे चावल
मुट्ठी भर से सज जाती है
अपने पी के धान-खेत से
आँचल में भर लाती हो
आँगन मैके का भरा रहे
यह सपना भर लाती हो।

सूने कमरे, सूना आँगन
आया संदेशा, बज जाते हैं
मीत तुम्हारे, माँ कहने से
सूना आँचल भर जाती हो
माँ का दर्पण खिला रहे
अक्स चाँद भर लाती हो।

गूंगी दीवारे, मौन अटारी
गूँज उठी, बिटिया आयी है
तुम से ही घर मैका बनते
सूना घर, दस्तक लाती हो
बाबुल तेरा आँगन फूले
आले की जोत जला जाती हो।

कैसे होंगे वे घर, चौबारे
मैना जिनमें नहीं होती है
भँवरें तो उड़ जाते होंगे
गुंजन तो तुम ही लाती हो
बेटा है फिर सूनी दिवाली
तुम ही दीप जला जाती हो।

26 comments:

  1. सुन्दर!
    घुघूती बासूती

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  2. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    मैना बिना घर -- वाह क्या परिकल्पना है

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  3. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती

    Bahut sundar !

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  4. गूंगी दीवारे, मौन अटारी
    गूँज उठी, बिटिया आयी है
    तुम से ही घर मैका बनते
    सूना घर, दस्तक लाती हो
    बाबुल तेरा आँगन फूले
    आले की जोत जला जाती हो।

    बेटिआं ऐसी ही होती है ..!!

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  5. वाह....
    कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती हो।

    वाह....
    बहुत सुन्दर कविता है।
    बधाई!

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  6. वाह वाह वाह वाह .......एक ऐसी कविता जो के हर तारो झंकृत कर गयी........

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  7. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती हो।

    bahut hi sundar bhavon se saji kavita...........badhayi

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  8. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती हो।


    -बहुत सुन्दर..महसूस कर पाया.

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  9. वाह !!
    बहुत खूब !!
    बढिया लिखा है !!

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  10. क्या कहूँ कविता पढ कर आँखें नम हो गयी। तीन बेटियाँ हैं तीनों दूर बस यादे ही हैं बेटियों की रोनक अपनी ही होती है घर भरा भरा लगता है उनके साथ। सच है---कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है। वैसे ही होंगे जैसे हमारे उन के जाने के बाद हैं ।लगता है आप भी मेरी तरह बेटियों से बहुत प्यार करती हैं। सुन्दर रचना के लिये और बेटियो की यादें ताज़ा करने के लिये धन्यवाद और शुभकामनायें

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  11. मेरी चौखट, तेरे चावल
    मुट्ठी भर से सज जाती है
    अपने पी के धान-खेत से
    आँचल में भर लाती हो
    आँगन मैके का भरा रहे
    यह सपना भर लाती हो।

    सुन्दर कविता , आभार आपका

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  12. बाबुल तेरा आँगन फूले
    आले की जोत जला जाती हो।

    बहुत ही सुंदर कविता
    मेरी तो कोई बेटी नहीं है पर मै अपनी बहू कि बिदाई पर अपने आंसू नही रोक पाई थी |
    जिस घर जाये स्वर्ग बनाये
    दोनों कुल कि लाज निभाए |
    सच बेटिया होती ही ऐसी है

    तू है मेरी पुत्री प्यारी
    पढ़ी लिखी अति ही सुकुमारी
    आँखों कि पुतली सी प्यारी
    करो सुहागन राज री
    घर को वैकुण्ठ बनाना |
    माँ अक्सर ये गीत गाती और सीख देती थी
    आपने बेटी कि शीर्ष दिया है
    आभार

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  13. ...खासा अनबोला हूँ मै...

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  14. गिरीश पंकजOctober 25, 2009 at 11:58 AM

    आपकी रचनात्मकता में भी गहरा समर्पण-भावः दृष्टव्य होता है. आपकी प्रस्तुतियां भी आपके मन का दर्पण है. उदयपुर में तनिमा नमक पत्रिका निकलती है. शकुंतला जी. उनसे आपका परिचय तो होगा, शायद...?

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  15. गिरीश जी,
    तनिमा से भी परिचय है और शकुन्‍तलाजी से भी। आप मेरे ब्‍लाग पर आए आपका आभार।

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  16. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती हो।

    Bahut hi Khubsurat Lines hain... Mere Dil ko Choo Gayin..

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  17. कैसे होंगे वे घर, चौबारे
    मैना जिनमें नहीं होती है
    भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो...

    दिल के गहरे एहसास को समझना कोई कवी मन ही कर सकता है .......आपने बाखूबी जिया है इस रचना को ...

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  18. सुन्दर भाव को समेटे हुए एक सार्थक रचना.. बधाई!

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  19. सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई

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  20. गूंगी दीवारे, मौन अटारी
    गूँज उठी, बिटिया आयी है
    तुम से ही घर मैका बनते
    सूना घर, दस्तक लाती हो
    बाबुल तेरा आँगन फूले
    आले की जोत जला जाती हो।
    कविता में घर चौबारा भी कितना अच्छा लगता है..मर्मस्पर्शी कविता

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  21. बेटियाँ सचमुच घर का उजाला होती हैं . अंधेरों को वे ही उजालों में बदलती हैं . इसे औरत और माँ ही समझ सकती है .बात सीधी दिल तक गयी है . . खूबसूरत भाव .

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  22. वाह, बिटिया के वियोग में मां के मन की संवेदना क्या खूबसूरती से निखारी हैं ।

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  23. एक बहुत ही सुंदर गीत, मैम...वैसे भी आपका लिखा तो हमेशा चमत्कारिक ही होता है।

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  24. भँवरें तो उड़ जाते होंगे
    गुंजन तो तुम ही लाती हो
    बेटा है फिर सूनी दिवाली
    तुम ही दीप जला जाती हो।
    सुनी पड़ी मेरी बगिया में
    तुम ही कमल खिला जाती हो

    जीवन की कड़वी सच्चाई कह दी अपने अपनी इन पन्तियो में
    बहुत ही भावपूर्ण रचना ! बधाई !!!!!!!!

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