Saturday, October 10, 2009

कविता - सुन शब्द राम के

दीपावली को हम रोशनी का त्‍योहार कहते हैं। लेकिन जिन रामजी के लिए यह दीपमालाएं सजायी गयी थीं उनके त्‍याग का कोई भी स्‍मरण नहीं करता है। दीपावली त्‍याग का पर्व है, प्रेम का पर्व है। इस दीवाली पर हम राम का स्‍मरण करें और उनके शब्‍दों को सुनने का प्रयास भी करें।

सुन शब्द राम के
मान के, त्याग के
प्रेम के, विराग के
संकटों में शौर्य के

सुन शब्द राम के।

पितृ के सम्मान के
मातृ के आदेश के
भातृ के बिछोह के
विधना में धैर्य के

सुन शब्द राम के।

रावण पे जीत के
जनता के प्रश्न के
सीता के त्याग के
नैराश्य में कार्य के

सुन शब्द राम के।

मावस में दीप के
द्वेष में आगोश के
व्यष्टि के समष्टि के
दुराग्रहों में प्यार के

सुन शब्द राम के।

धरती में, व्योम में
पर्वत में, नीर में
जनता के रोम में
विग्रहों में एक्य के

सुन शब्द राम के।

18 comments:

  1. राम के व्यक्तित्व का निरूपण करती सुन्दर कविता !

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  2. sunder kavita,mann mein pavan vichar bhar denewali.

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  3. यह तो रामचरित मानस ही हो गया. सुन्दर रचना. आभार

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  4. बहुत सामायिक एवम सार्थक रचना.

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  5. बिल्कुल समय पर याद दिलाया है आपने. अच्छी रचना.

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  6. बेहद ही खूबसूरत रचना। बधाई

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  7. सुन्दर रचना है।बधाई।

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  8. मावस में दीप के
    द्वेष में आगोश के
    व्यष्टि के समष्टि के
    दुराग्रहों में प्यार के

    सुन शब्द राम के।
    बहुत सुन्दर और सार्थक कविता है। आपने सही कहा हम साध्य की अपेक्षा साधन को अधिक महत्व देने लगते हैं। सुन्दर संदेश देती कविता के लिये धन्यवाद और शुभकामनायें

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  9. "मावस में दीप के
    द्वेष में आगोश के
    व्यष्टि के समष्टि के
    दुराग्रहों में प्यार के
    सुन शब्द राम के।"

    बढ़िया लिखा है।
    बहुत-बहुत बधाई!

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  10. raam ke charitr ka baakhoobi bayaan karti hai aapki rachna.... sach mein RAM naam apne aap mein bahoot kuch kah jaata hai .... shakti swaroop hai ye ek naam ....

    AAP KO DIPAWALI KI HAARDIK SHUBHKAAMNAAYEN ...

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  11. बहुत अनुसरणीय बात कही है आज सच्मुच ऐसे ही अहसासों कि जरुरत बाजार कि चकाचोंध में हमने राम जी कि मर्यादाओ को हाशिये पर लाकर रख दिया |
    आभार

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  12. very nice poem.........Maryada Purushottam Ram ji ke liye sundar kavita.

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  13. मावस में दीप के
    द्वेष में आगोश के
    व्यष्टि के समष्टि के
    दुराग्रहों में प्यार के

    सुन शब्द राम के।
    बहुत ही सुंदर सलाह और कविता ।

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  14. धरती में, व्योम में
    पर्वत में, नीर में
    जनता के रोम में
    विग्रहों में एक्य के

    सुन शब्द राम के।

    बहुत ही सुन्दर भावों, बिचारों, संदेशों से रची बसी आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी

    आपका हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  15. अति सुन्दर. बधाई!!

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  16. काश!! राम के शब्द सुन पाते बहरे हो चुके है अब तो कुछ सुनाई भी नहीं देता बहुत सुन्दर रचना !!

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  17. "विग्रहों में एक्य के"
    आपकी बात सही है. वैसे आज के युग में लक्ष्मी के आगे और किस का ध्यान रखा जाए? कृष्ण का कर्षण भले ही चल जाए, मगर राम का त्याग और संयम, ना बाबा ना!
    बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना, दीपावली की शुभकामनाएं!

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