दीपावली को हम रोशनी का त्योहार कहते हैं। लेकिन जिन रामजी के लिए यह दीपमालाएं सजायी गयी थीं उनके त्याग का कोई भी स्मरण नहीं करता है। दीपावली त्याग का पर्व है, प्रेम का पर्व है। इस दीवाली पर हम राम का स्मरण करें और उनके शब्दों को सुनने का प्रयास भी करें।
सुन शब्द राम के
मान के, त्याग के
प्रेम के, विराग के
संकटों में शौर्य के
सुन शब्द राम के।
पितृ के सम्मान के
मातृ के आदेश के
भातृ के बिछोह के
विधना में धैर्य के
सुन शब्द राम के।
रावण पे जीत के
जनता के प्रश्न के
सीता के त्याग के
नैराश्य में कार्य के
सुन शब्द राम के।
मावस में दीप के
द्वेष में आगोश के
व्यष्टि के समष्टि के
दुराग्रहों में प्यार के
सुन शब्द राम के।
धरती में, व्योम में
पर्वत में, नीर में
जनता के रोम में
विग्रहों में एक्य के
सुन शब्द राम के।
राम के व्यक्तित्व का निरूपण करती सुन्दर कविता !
ReplyDeletesunder kavita,mann mein pavan vichar bhar denewali.
ReplyDeleteयह तो रामचरित मानस ही हो गया. सुन्दर रचना. आभार
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबहुत सामायिक एवम सार्थक रचना.
ReplyDeleteबिल्कुल समय पर याद दिलाया है आपने. अच्छी रचना.
ReplyDeleteबेहद ही खूबसूरत रचना। बधाई
ReplyDeleteसुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteमावस में दीप के
ReplyDeleteद्वेष में आगोश के
व्यष्टि के समष्टि के
दुराग्रहों में प्यार के
सुन शब्द राम के।
बहुत सुन्दर और सार्थक कविता है। आपने सही कहा हम साध्य की अपेक्षा साधन को अधिक महत्व देने लगते हैं। सुन्दर संदेश देती कविता के लिये धन्यवाद और शुभकामनायें
"मावस में दीप के
ReplyDeleteद्वेष में आगोश के
व्यष्टि के समष्टि के
दुराग्रहों में प्यार के
सुन शब्द राम के।"
बढ़िया लिखा है।
बहुत-बहुत बधाई!
raam ke charitr ka baakhoobi bayaan karti hai aapki rachna.... sach mein RAM naam apne aap mein bahoot kuch kah jaata hai .... shakti swaroop hai ye ek naam ....
ReplyDeleteAAP KO DIPAWALI KI HAARDIK SHUBHKAAMNAAYEN ...
बहुत अनुसरणीय बात कही है आज सच्मुच ऐसे ही अहसासों कि जरुरत बाजार कि चकाचोंध में हमने राम जी कि मर्यादाओ को हाशिये पर लाकर रख दिया |
ReplyDeleteआभार
very nice poem.........Maryada Purushottam Ram ji ke liye sundar kavita.
ReplyDeleteमावस में दीप के
ReplyDeleteद्वेष में आगोश के
व्यष्टि के समष्टि के
दुराग्रहों में प्यार के
सुन शब्द राम के।
बहुत ही सुंदर सलाह और कविता ।
धरती में, व्योम में
ReplyDeleteपर्वत में, नीर में
जनता के रोम में
विग्रहों में एक्य के
सुन शब्द राम के।
बहुत ही सुन्दर भावों, बिचारों, संदेशों से रची बसी आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी
आपका हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अति सुन्दर. बधाई!!
ReplyDeleteकाश!! राम के शब्द सुन पाते बहरे हो चुके है अब तो कुछ सुनाई भी नहीं देता बहुत सुन्दर रचना !!
ReplyDelete"विग्रहों में एक्य के"
ReplyDeleteआपकी बात सही है. वैसे आज के युग में लक्ष्मी के आगे और किस का ध्यान रखा जाए? कृष्ण का कर्षण भले ही चल जाए, मगर राम का त्याग और संयम, ना बाबा ना!
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना, दीपावली की शुभकामनाएं!