Monday, January 5, 2009

पाती

पाती
परदेस बसे बेटे ने
स्याही की खुशबू से लिपटी
माँ के हाथों की पाती माँगी
अँगुली के पोरों से बाँध कलम को
शब्दों से झरती ममता को
छूने की मंशा चाही।

इंतजार की बेसब्री हो
रोज डाक पर निगाह रहे
दफ्तर से आने पर
एक लिफाफा पड़ा मिले
उद्वेग लिए हाथों से खोलूँ
खत की खुशबू से मन को भर लूँ
घुल-मिलकर बनते शब्दों से
अपने रिश्ते को छूने की इच्छा जागी।

मेरे कमरे की टेबल की
बंद दराज से स्याही लेना
जो बचपन में तुमने पेन दिया था
उस से पाती को रंगना
जहाँ छूट गया मेरा बचपन
उस कमरे में खत को लिखना
यहाँ बनाकर उन यादों का कमरा
छूट गए घर में रहने की चाहत जागी!

10 comments:

  1. कभी नहीं कर सकते वो, फोन और ई-मेल.
    पाती के संग है जुङा, जो भावों का खेल.
    भावों का शुभ मेल,हस्त-लिपि का वह जादू.
    बार-बार पढना और खोना दिल का काबू.
    कह साधक यह अजित विधा बस वही समझते.
    फोन और ई-मेल वह, कभी नहीं कर सकते.

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  2. डॉ. गुप्ता,

    अँगुली के पोरों से बाँध कलम को
    शब्दों से झरती ममता को
    छूने की मंशा चाही।

    बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्‍ति है. एक मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाईयाँ.

    मुकेश कुमार तिवारी

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  4. मेरे कमरे की टेबल की
    बंद दराज से स्याही लेना
    जो बचपन में तुमने पेन दिया था
    उस से पाती को रंगना
    जहाँ छूट गया मेरा बचपन
    उस कमरे में खत को लिखन
    *
    बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियां, बधाई ।
    सादर,
    vinay

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  5. नववर्ष् की शुभकामनाओं के साथ
    नये ब्लोग की बधाई !
    माटी की खुशबू हो या हो ममता की
    बेटा खत से छू लेगा ममता मां के आंचल की
    वात्सल्य भरी विरह वेदना,तड़प मां की
    अजित जी के शब्दों में गहराई सारे जहां की
    कलम से जोड्कर भाव अपने
    ये कौनसा समंदर बनाया है
    बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
    सुंदर रचना संसार बनाया है
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  6. मर्मस्पर्शी कविता। धन्यवाद।

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  7. अजित जी,
    आपको ब्लॊग आरम्भ करने करने पर शुभकामनाएँ।
    लिखती तो आप बढ़िया हैं ही, सो उसे दुहराना ही कहा जाएगा, यदि कुछ कहूँ तो।
    ब्लॊग को आपने दोनों संकलकों (चिट्ठाजगत व ब्लॊगवाणी) पर जोड़ ही लिया होगा, अन्यथा तुरन्त जोड़ लें।

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  8. मेरे कमरे की टेबल की
    बंद दराज से स्याही लेना
    जो बचपन में तुमने पेन दिया था
    उस से पाती को रंगना
    जहाँ छूट गया मेरा बचपन
    उस कमरे में खत को लिखना
    यहाँ बनाकर उन यादों का कमरा
    छूट गए घर में रहने की चाहत जागी!


    अजित जी,

    आपका ब्लॉग देखकर बहुत अच्छा लगा. आप जैसे दिग्गजों का नयी तकनीक से समन्वय हो - इसमें हिन्दी भाषा का भला ही होना है! इस बहाने आपको प्रिंट में न पढ़ सकने वाले भी आपकी रचनाओं तक पहुँच सकेंगे.

    शुभकामनाओं सहित
    ~ अनुराग शर्मा

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  9. मार्मिक अभिव्यक्ति..साधुवाद.

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