tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post8723021118307179295..comments2023-12-30T03:15:36.067+05:30Comments on अजित गुप्ता का कोना: कर्म करूं या श्रद्धा से नत हो जाऊँ या फिर मांगने के लिए हाथ फैला दूं? – अजित गुप्ताअजित गुप्ता का कोनाhttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-72195150769072045912011-03-10T20:45:55.674+05:302011-03-10T20:45:55.674+05:30बहुत सुन्दर अच्छी लगी आपकी हर पोस्ट बहुत ही स्टिक ...बहुत सुन्दर अच्छी लगी आपकी हर पोस्ट बहुत ही स्टिक है आपकी हर पोस्ट कभी अप्प मेरे ब्लॉग पैर भी पधारिये मुझे भी आप के अनुभव के बारे में जनने का मोका देवे <br />दिनेश पारीक <br />http://vangaydinesh.blogspot.com/ ये मेरे ब्लॉग का लिंक है यहाँ से अप्प मेरे ब्लॉग पे जा सकते हैDinesh pareekhttps://www.blogger.com/profile/00921803810659123076noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-86344929109036615142011-02-09T09:25:30.001+05:302011-02-09T09:25:30.001+05:30... इसके अलावा भगदड और अव्यवस्था के कारण अक्सर होन...... इसके अलावा भगदड और अव्यवस्था के कारण अक्सर होने वाली मौतें! हे राम!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-89344734048460903262011-02-07T17:51:00.517+05:302011-02-07T17:51:00.517+05:30आप के लेख पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं पढ़ने को मिल...आप के लेख पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं पढ़ने को मिली नास्तिक भी आस्तिक भी । ये बात तो मैं बी मानती हूं कि ज्यादातर मंदिरों के पुजारी पूरी तरह कर्म कांड में दीक्षित नहीं है संस्कृत आती नहीं है , लोभी है जो ज्यादा चढ़ावा चढ़ाता है उसे लड्डू , बरफी का प्रसाद देते हैं बाकी को कुछ दाने बूंदी के दे देते हैं । लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं कि भगवान के दर पर ही ना जाओ । दुनिया में सभ तरह की किताबें मिलती हैं लेकिन डिग्री लेने के लिए हमें स्कूल कॉलेज ,युनिवर्सिटी जाना पड़ता है । कुछ लोगों के कारण हम परमपिता परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा कम नहीं कर सकते । सिस्टम में दोष हर जगह है फिर मंदिर उससे अछूते कैसे रह सकते हैं ।-सर्जना शर्मा-https://www.blogger.com/profile/14905774396390857560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-84372263945839715882011-02-05T16:04:41.416+05:302011-02-05T16:04:41.416+05:30अजित जी बिल्कुल सही कह रही है आप. इस तरह का लाभ उ...अजित जी बिल्कुल सही कह रही है आप. इस तरह का लाभ उठाकर तो खुद ही भगवान की नजरों में लोभी बन जाना है.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-6560719386101691072011-02-05T15:38:27.362+05:302011-02-05T15:38:27.362+05:30अजित मेम !
नमस्कार !
बिल्कुल सही कह रही हैं आप , ...अजित मेम !<br />नमस्कार !<br /><br />बिल्कुल सही कह रही हैं आप , इन विचारों से सहमत भी हूँ और हैरान भी हूँ की यात्रा के दौरान भी कितना सुंदर चिंतन चल रहा था आपके मन में. कर्म की महत्ता सबको समझना जरूरी है!सुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-24083597127396961762011-02-05T15:38:02.238+05:302011-02-05T15:38:02.238+05:30हम सभी, हमारा समाज भी कर्म की प्रधानता को भूलता जा...हम सभी, हमारा समाज भी कर्म की प्रधानता को भूलता जा रहा है ... इन स्थानों में जेया कर उन उपदेशों को सुनते तो सभी है ,,,, पर दिल में कोई उतारना नही चाहता ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-79380708913900690072011-02-05T14:38:04.598+05:302011-02-05T14:38:04.598+05:30सचमुच...इस दिशा में कुछ तो करना चाहिए . सबकुछ तो अ...सचमुच...इस दिशा में कुछ तो करना चाहिए . सबकुछ तो अमीरों की सुविधा के लिए ही है...वे और भी अधिक अमीर होते जा रहे हैं.<br />लाखो का चढ़ावा भी वे बस स्वार्थवश ही चढाते हैं कि ,ईश्वर इस लाख को दो लाख में...करोड़ को दो करोड़ में बदल दे.<br />मन दुखी हो जता है यह सब देख सुन....कुछ ऐसे नियम होने ही चाहिए...बढ़िया सुझावrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-6483950816916848792011-02-05T08:44:53.823+05:302011-02-05T08:44:53.823+05:30शोर्टकट भी तो कोई चीज़ है. हर कोई ऐसे मौके की तलाश ...शोर्टकट भी तो कोई चीज़ है. हर कोई ऐसे मौके की तलाश में रहता है. फिर चाहे वह भगवान के दर्शन ही क्यों न हों, श्रमदान शुरू हो गया तो लाइन ही नहीं बचेगी.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-8780381908875114162011-02-05T00:10:44.076+05:302011-02-05T00:10:44.076+05:30आदरणीय गुप्ता जी!
प्राय: जो सामने दिखता है उसे ही ...आदरणीय गुप्ता जी!<br />प्राय: जो सामने दिखता है उसे ही लोग सत्य समझ लेते हैं किन्तु व्यंग्यकार ऐसा नहीं करता है। वह पर्दे के पीछे झाँक कर वहाँ चल रहे पाखंड को उदघाटित करता है। आप के पास व्यंग्यकार की दृष्टि है जिसके कारण विसंगतियाँ साफ नज़र आ जाती हैं। ध्यान से देखें तो धर्म एक उद्योग / व्यवसाय का रूप ले चुका है। उप- भोक्ता होने के नाते प्रत्येक वस्तु को ह्म आँख-कान खोल कर बरतते हैं परन्तु धर्म की शरण में जाने वाले को अपने आँख-कान-मुख बंद रखने की सलाह दी जाती है। ऐसी सलाह के पालन पर उसे ठगना आसान हो जाता है। संसार में आँख-कान-मुख बंद किए व्यक्तियों की कमी नहीं है। कबीर ने यूँ ही नहीं कहा था-’दुनिया ऐसी बाँवरी, पत्थर पूजन जाय। घर की चकिया कोउ न पूजे. जीका पीसा खाय।’ पूजागृहों धन और पद के दखल पर प्रशंसनीय लेखन हेतु-साधुवाद!<br />सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवीडॉ० डंडा लखनवीhttps://www.blogger.com/profile/14536866583084833513noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-69172411682747858862011-02-04T22:07:10.609+05:302011-02-04T22:07:10.609+05:30इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ..यह धरत...इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ..यह धरती कर्मक्षेत्र है ...कर्म ही सच्ची पूजा है . सुन्दर पोस्टAmrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-26711024839454547022011-02-04T19:34:41.155+05:302011-02-04T19:34:41.155+05:30आप की बात से पूर्णतः सहमत हूँ...अपना कर्म करते रहो...आप की बात से पूर्णतः सहमत हूँ...अपना कर्म करते रहो ...भगवान से मंदिर में जा कर अपने मुंह से क्या मांगना, वह बिना कहे ही सब जानता है और बिना मांगे ही देता है. मैंने भारत के कोने कोने में बहुत प्रमुख मंदिरों में दर्शन किये हैं, पर कहीं पर कुछ विशेष माँगने का दिल नहीं किया. हमेशा यही कहा कि तुझे पता है मुझे क्या चाहिए, मैं अपने मुख से क्यों कहूँ. और मुझे हमेश सब कुछ मिला है. आज भगवान के मंदिरों को भी व्यापार का अड्डा बना दिया है, यह देख कर दुःख होता है. साईं बाबा ने कभी नहीं चाहा होगा कि उन्हें चांदी के सिंहासन पर बिठाया जाए या सोने का मुकुट लगाया जाए. यह पैसेवालों का अपनी भक्ति दिखाने का एक भोंडा प्रदर्शन है.Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-60138964369905863512011-02-04T16:40:02.064+05:302011-02-04T16:40:02.064+05:30Di agar bhagwan prasad khane lage to koi prasad na...Di agar bhagwan prasad khane lage to koi prasad nahi chadhayega. .waise hi shram daan kar ke koi darshan nahi karega...:)<br /><br />pichhle saal ham bhi gaye the shani signapur, Sirdi aur Trabakeshwar...:)मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-23479965747646027362011-02-04T13:23:31.988+05:302011-02-04T13:23:31.988+05:30आपने तो जैसे मेरे ही मन की बात कह दी |और आपका सुझा...आपने तो जैसे मेरे ही मन की बात कह दी |और आपका सुझाव शत प्रतिशत अनुकरणीय है |आपके विचारो से पूर्णतया सहमत |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-55628871795620152282011-02-04T12:48:05.205+05:302011-02-04T12:48:05.205+05:30आप लोगों के विचारों से अवगत हुई। मैं आज शाम को मुर...आप लोगों के विचारों से अवगत हुई। मैं आज शाम को मुरादाबाद जा रही हूँ इसलिए शेष चर्चा आकर ही सम्पन्न होगी। मैं सोमवार को वापस आ रही हूँ। आभार।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-21451001870726654932011-02-04T11:18:15.424+05:302011-02-04T11:18:15.424+05:30एक ऐसी जगह जहां न कोई मूर्ति है और न ही आडम्बर
प्र...<b>एक ऐसी जगह जहां न कोई मूर्ति है और न ही आडम्बर</b><br />प्रभु पालनहार से मांगने की सबसे बड़ी चीज़ है उसका मार्गदर्शन । साईं बाबा भक्त हैं भगवान नहीं। आख़िर जब उन्होंने ख़ुद ईश्वर होने का दावा नहीं किया तो फिर उन्हें भगवान किसने और क्यों बना लिया ?<br />और आप जैसे पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों ने भी उन्हें लोगों की ज़रूरतें पूरी करने वाला मान लिया ?<br />क्या आप नहीं जानतीं कि ईश्वर अजन्मा , अविनाशी और शाश्वत है ?<br />जिसमें ये गुण न हों वह सत्पुरूष कितना भी बड़ा क्यों न हो लेकिन ईश्वर नहीं हो सकता । जहां ईश्वर की पूजा होती है वहाँ आडम्बर नहीं होता और न ही वहाँ मूर्ति होती है , न पत्थर की और न ही सोने चाँदी की । ऐसी जगह केवल मस्जिद है और यही वह जगह है जहाँ इनसान को उसकी वाणी सुनने का सौभाग्य अनिवार्य रूप से मिलता है जिससे उसे मार्गदर्शन मिलता है जो कि सबसे बड़ी चीज़ है और इसी को पाने के बाद इनसान को वास्तव में पता चलता है कि उसे क्या करना चाहिए , कैसे करना चाहिए और क्यों करना चाहिए ?<br />इसी ज्ञान के बाद इनसान अपने मन की श्रद्धा का सही इस्तेमाल करने के लायक़ बनता है और नतमस्तक होने की रीति जान पाता है जिसका नाम है 'नमाज़'।<br />जब आप लोग सच से मुंह फेरकर जाएंगे तो फिर आप आडम्बर के सिवा कुछ और कैसे पा सकते हैं ?<br />Please think about it.DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-4930189397068446072011-02-04T11:18:10.240+05:302011-02-04T11:18:10.240+05:30This comment has been removed by the author.DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-82628059513868748842011-02-04T09:49:15.137+05:302011-02-04T09:49:15.137+05:30आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर भावमयी विचारोत्तेजक ...आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर भावमयी विचारोत्तेजक पोस्ट चर्चामंच पर है... आपका आभार ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं<br />आज रूपचन्द्र शास्त्री जी का जन्मदिन भी है..<br />http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.htmlडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-33868619219816410332011-02-04T00:55:56.187+05:302011-02-04T00:55:56.187+05:30शायद आम आदमी जहाँ समृद्धि मांग रहा है वहीं सोने-चा...शायद आम आदमी जहाँ समृद्धि मांग रहा है वहीं सोने-चांदी व लाखों के चढावे चढाने वाले अपने पापों से मुक्ति मांग रहे हैं । जुदा वात ये है कि जिनके समक्ष ये दो नंबर के धन का ढेर लगाये दे रहे हैं वे सांई बाबा अपनी पूरी जिन्दगी स्वयं निर्धनता में प्रेमपूर्वक गुजारने के साथ ही निर्धन लोगों के बीच ही अपना प्रेम लुटाते रहे जबकि आज एक तरफ ये धर्म के ठेकेदार उनके नाम पर करोडों जमा किये जा रहे हैं तो दूसरी ओर दो नंबरी सामर्थ्यवान इस दान के द्वारा स्वयं को पापमुक्त होने का संतोष वहाँ से बटोरने में लगे हैं । कर्म की प्रधानता तो इन सबमें गौण हो गई लगती है ।Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-65317176231228124462011-02-04T00:38:41.524+05:302011-02-04T00:38:41.524+05:30बिल्कुल सही कह रही हैं आप ..... इन विचारों से सहमत...बिल्कुल सही कह रही हैं आप ..... इन विचारों से सहमत भी हूँ और हैरान भी हूँ की यात्रा के दौरान भी कितना सुंदर चिंतन चल रहा था आपके मन में..... कर्म की महत्ता सबको समझना जरूरी है.... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-10521327818320177702011-02-04T00:08:23.247+05:302011-02-04T00:08:23.247+05:30कर्म के बिना तो भगवान भी कुछ नहीं देता, लेकिन भगवा...कर्म के बिना तो भगवान भी कुछ नहीं देता, लेकिन भगवान के दरबार में फिर भी लोग जाते हैं। शिरडी हो या तिरूपति या फिर वैष्णवदेवी। मक्का हो या अजमेर शरीफ। स्वर्ण मंदिर हो या फिर सोमनाथ। हां इतना जरूर है कि धार्मिक स्थलों में जाने वालों को मन भी साफ रखना चाहिए और उस दरबार की देखरेख करने वालों को अमीर गरीब में भेद नहीं करना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। तो क्या ये भगवान की मर्जी है, नहीं, ऐसा होता तो भगवान कृष्ण सुदामा की कुटिया में नहीं जाते।<br />बहरहाल, आपने जो मुददा उठाया है मैं उसका समर्थन करता हूं।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-36598574803077563432011-02-03T23:33:08.727+05:302011-02-03T23:33:08.727+05:30अजित गुप्ता जी मेरे से ज्यादा तर लोग बस इसी बात स...अजित गुप्ता जी मेरे से ज्यादा तर लोग बस इसी बात से नाराज हो जाते हे, मै कभी मंदिर नही जाता, लेकिन हर रोज भगवान को धन्यवाद देता हुं अपने बीते आज का, बाकी तो कर्म करेगे तभी फ़ल मिलेगा,मुझे तो कई बार लगता हे हम सब एक पाखंड करते हे भगवान के नाम से, अगर सही मे उस को मानते तो सब से पहले उस का कहना मानते, लेकिन हम नालायक बेटे की तरह से अपने सार्टीफ़िकेट मे तो बाप का नाम मजबूरी मे लिखेगे(वर्ना हरामी कहलायेगे) लेकिन उस बाप का कहना नही मानेगे... इस लिये आज के युग मे मुझे मंदिरो मे ना तो यह पुजारी ही श्रद्धालू लगे ना ही यह भीड, बस देखा देखी का मेला हे ओर निकम्मे लोगो का रेला हे, कर्म करने वाले के पास तो समय ही नही इस फ़ालतू बकवास के लियेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-17286783319079705562011-02-03T23:16:01.226+05:302011-02-03T23:16:01.226+05:30अच्छे भाव लिए प्रेरक पोस्ट।अच्छे भाव लिए प्रेरक पोस्ट।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-45623541416779234902011-02-03T23:10:32.784+05:302011-02-03T23:10:32.784+05:30‘मुझे तो लगता है कि ऐसे स्थानों पर कुटीर उद्योग ख...‘मुझे तो लगता है कि ऐसे स्थानों पर कुटीर उद्योग खोल देने चाहिए और प्रत्येक भक्त को वहाँ निश्चित समय और श्रम-दान अनिवार्य कर देना चाहिए।’<br /><br />पुट्टापर्ति में सत्य साईबाबा के आश्रम में कई वरिष्ठ अधिकारी, डॊक्टर आदि श्रम दान देते हैं और उनका अस्पताल भारत के सर्वश्रेष्ठों में गिना जाता है॥चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-72977132585807246362011-02-03T22:19:11.830+05:302011-02-03T22:19:11.830+05:30श्रद्धावत कर्म निरत हों।श्रद्धावत कर्म निरत हों।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-48641696346311027192011-02-03T19:48:16.815+05:302011-02-03T19:48:16.815+05:30जो आपसे बड़ा है उससे माँगा जा सकता है | भगवान हम से...जो आपसे बड़ा है उससे माँगा जा सकता है | भगवान हम से बड़े है | आपके विचारों से सहमत है इसलिए मै इस प्रकार की जगह पर जाने से बचता हूँ |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.com