tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post5535411619089299211..comments2023-12-30T03:15:36.067+05:30Comments on अजित गुप्ता का कोना: गर्मियों की छुट्टियों में घूमने जाना क्या वास्तव में मन में ऊर्जा भरता है? – अजित गुप्ताअजित गुप्ता का कोनाhttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-63403496085460893342011-05-30T21:55:51.681+05:302011-05-30T21:55:51.681+05:30बहुत अच्छा लेख है, हम जैसे तो गर्मी हो सर्दी कुछ न...बहुत अच्छा लेख है, हम जैसे तो गर्मी हो सर्दी कुछ नहीं देखते है,SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-10947095160769284512011-05-25T13:47:04.344+05:302011-05-25T13:47:04.344+05:30माता पिता दोनों का निजी कम्पनियों में काम करना .लम...माता पिता दोनों का निजी कम्पनियों में काम करना .लम्बी छुट्टी न मिलना ,और सबसे बड़ी बात है आज के दौर में रिश्तेदारों से दूर रहना कही और इंज्वाय करना यही फंडा होता जा रहा है |<br />हम लोग तो बिना पैसे खर्च किये ही दो महीने आराम से बिताते थे और एक जैसी जीवन शैली होने के कारण प्रतिस्पर्धा भी नहीं थी |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-78522108085014129812011-05-25T13:32:27.714+05:302011-05-25T13:32:27.714+05:30बिल्कुल सही, गर्मी की छुट्टियां है, बाहर जाने का प...बिल्कुल सही, गर्मी की छुट्टियां है, बाहर जाने का प्रोग्राम बन रहा है। आज कल इस पर दिन भर में कई बार चर्चा हो जाती है। सुंदर लेखमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-5338478766857477202011-05-22T22:15:06.484+05:302011-05-22T22:15:06.484+05:30वाकई सीमित समय के लिये मौसम की मार सहते हुए आना-जा...वाकई सीमित समय के लिये मौसम की मार सहते हुए आना-जाना किसी सजा से कम साबित नहीं होता ।Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-34503890998890614722011-05-22T15:59:40.197+05:302011-05-22T15:59:40.197+05:30पोस्ट पढ़ कर मुझे भी अपना बचपन याद आ गया जब हम सब ...पोस्ट पढ़ कर मुझे भी अपना बचपन याद आ गया जब हम सब नानी के यहाँ जाते थे और बहुत मज़े करते थे. पर इसका एक दूसरा पहलु ये है की मामी आज इतने सालो बाद अहसान जताती है की उन्हें खूब काम करना पड़ता था. जब कि मेरी माँ, मौसिया और नानी सब बराबर काम करती थीशोभाhttps://www.blogger.com/profile/12010109097536990453noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-10682436947632985282011-05-22T09:02:19.679+05:302011-05-22T09:02:19.679+05:30जो मज़ा छज्जू के चौबारे, वो बलख न बुखारे...
मनोरम...जो मज़ा छज्जू के चौबारे, वो बलख न बुखारे...<br /><br />मनोरम स्थानों पर घूमने के लिए सबसे पहले मन का प्रसन्नचित होना ज़रूरी है...अगर काम के तनाव, बच्चों के होमवर्क की चिंता साथ लेकर कहीं भी जाएंगे तो सुंदर नज़ारों के बीच भी खुद को कुड़-कुड़ करते ही पाएंगे...<br /><br />और अगर वक्त की कमी और पैसा आपको छूट नहीं देता तो अपने शहर के आस-पास वीकएंड की आउटिंग ही पूरे हफ्ते प्रफुल्लित रखने के लिए काफी होती है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-23572174386357318342011-05-21T07:41:19.932+05:302011-05-21T07:41:19.932+05:30पिताजी अध्यापक थे तो गर्मी की छुट्टियाँ होती थीं। ...पिताजी अध्यापक थे तो गर्मी की छुट्टियाँ होती थीं। अब कहाँ गर्मी की छुट्टियाँ? बस चुरानी पड़ती हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-68112417902586339202011-05-21T03:45:49.443+05:302011-05-21T03:45:49.443+05:30आदरणीय अजीत गुप्ता जी...मुझे तो गर्मियों की छुट्टि...आदरणीय अजीत गुप्ता जी...मुझे तो गर्मियों की छुट्टियों में अपने ननिहाल जाने का बहुत शौक था| परीक्षाएं ख़त्म होते ही अगले दिन मामाजी आ जाते| मैं और बड़े भैया उन्ही के साथ चले जाते थे| पूरे दो महीनों की छुट्टियां वही बीतती थीं|<br />अब तो पता नहीं कितने दिन हो गए नानी के पास गए हुए? अब तो बस यहाँ से वहां तो वहां से यहाँ धूमता रहता हूँ| मेरी नौकरी ही कुछ ऐसी है|दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-5986963430113402992011-05-21T00:30:32.251+05:302011-05-21T00:30:32.251+05:30भाटिया जी ने बहुत सही बात कही..... उनसे सहमत हूँ.....भाटिया जी ने बहुत सही बात कही..... उनसे सहमत हूँ.... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-26058768976478577222011-05-21T00:00:43.325+05:302011-05-21T00:00:43.325+05:30अजीत जी बहुत सुंदर बात कही आप ने, भारत मे तो आज क...अजीत जी बहुत सुंदर बात कही आप ने, भारत मे तो आज कल लोग एक दुसरे को देखा देखी यह सब करते हे, अरे भाई जब जा ही रहे हो तो कम से कम १५, २० दिन वहां रहो भी, इतनी गर्मी मे घर से निकलना ओर फ़िर वापिस आना बहुत कठिन हे, हां मामा, नाना, दादा ताऊ के घर जाना तो हमारे जमाने मे होता था, उस जमाने की यादे आज भी दिल मे छाई हे, बहुत शरारते करते थे, <br />लेकिन हम यहां तो हर साल जाते हे, पहाडो पर सर्दी गर्मी देखने नही बल्कि उन्हे देखने ओर मनोरंजन करने, असल मे यहां मामा मामी, चाचा चाची तो हे नही, ओर यह गोरे वैसे ही अपने मे मस्त रहते हे,लेकिन जब भारत आते हे तो सब से ज्यादा मजा आता हे, ओर घर पर ही रहते हे... इस बार देखे..राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-31251781061275552652011-05-20T23:37:46.133+05:302011-05-20T23:37:46.133+05:30हम भारतीय छुट्टिया बिताने में नहीं कही जा कर घुमान...हम भारतीय छुट्टिया बिताने में नहीं कही जा कर घुमाने में विश्वास करते है कही गए साडी जगह देख ली अब क्या करेंगे वह बैठ कर अब अपने घर चलो | खुद मै भी यही करती हूँ कही जाने से पहले देखती हूँ की वह घुमाने देखने के लिए कितनी जगह है उसी हिसाब से वहा ठहराने के दिन गिने जाते है हा घर में बैठ कर कुछ नया करने से ज्यादा बच्चे बहार जा कर घुमाना पसंद करते है और मुझे लगता है की वो इससे सिखाते भी ज्यादा है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-42494214032704430722011-05-20T23:11:22.643+05:302011-05-20T23:11:22.643+05:30हम तो जी......यही कहेंगे कि
घूमो।हम तो जी......यही कहेंगे कि <br />घूमो।नीरज मुसाफ़िरhttps://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-29342062522140146202011-05-20T22:49:32.337+05:302011-05-20T22:49:32.337+05:30यह तो वैसा ही है कि कुछ देर एयर कंडीशन कमरे में बै...यह तो वैसा ही है कि कुछ देर एयर कंडीशन कमरे में बैठे और लम्बे समय के लिए दोपहर में निकल पडे... तो हताशा होगी ही॥चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-69064572341977098362011-05-20T22:31:54.167+05:302011-05-20T22:31:54.167+05:30Sach! Wo din kitne achhe the jab maasee yaa nanee ...Sach! Wo din kitne achhe the jab maasee yaa nanee ke ghar jaya karte the! Khatm se ho gaye wo din!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-37197254070166993502011-05-20T22:14:19.960+05:302011-05-20T22:14:19.960+05:30अजीत जी ,
यह तो सही है की जीवन में बदलाव ज़रुरी ...अजीत जी , <br /><br />यह तो सही है की जीवन में बदलाव ज़रुरी है पर इतनी गर्मी में मात्र दो चार दिन के लिए सही में पहाड़ों पर जाना एक सिरदर्दी है ...लेकिन मौसम के अनुसार बच्चों की छुट्टियाँ भी तो नहीं होतीं ..या फिर काम से छुट्टी नहीं मिलती ...<br />आधुनिक साधनों के इतने आदी हो चुके हैं कि बच्चे क्या बड़े भी बहुत मुश्किल से एडजस्ट कर पाते हैं ... पर आपकी पोस्ट ने बहुत से इनडोर गेम्स कि याद दिला दी ... हम लोंग तो चौसर बहुत खेलते थे ... गोटियों को पीटने में और उनको बावली कर खड़ा करने में जो आनन्द आता था ..कितनी धामाचौकड़ी होती थी सब बच्चों में ..आपने भी क्या याद दिला दी :):)संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-52423239562318478392011-05-20T20:37:01.325+05:302011-05-20T20:37:01.325+05:30बचपन में बहुत जगह जाने का ऑप्शन ही नहीं होता था। त...बचपन में बहुत जगह जाने का ऑप्शन ही नहीं होता था। तो गांव चले जाया करते थे। इस बार दिल्ली, ऊटी और गांव का भ्रमण हुआ। आज भी सबसे ज़्यादा आनंद गांव में ही आया।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-22964760259300240482011-05-20T20:00:22.128+05:302011-05-20T20:00:22.128+05:30नैनीताल हमें भी आना है, अब देखते हैं कि कब जाना हो...नैनीताल हमें भी आना है, अब देखते हैं कि कब जाना होता है। अभी तो धौलपुर, वृन्दावन, मथुरा, आगरा और उज्जैन का ही कार्यक्रम बनाया है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-59104457779563697052011-05-20T19:57:18.923+05:302011-05-20T19:57:18.923+05:30घूमना उतना ही अच्छा है जितना अपना शरीर झेल सकता है...घूमना उतना ही अच्छा है जितना अपना शरीर झेल सकता है और आराम करके घूमना ठीक होता है, बजाय लगातार एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करके हर जगह एक दिन का आराम का रखा जाये तो बेहतर होता है, हाँ घूमने के दिन और बजट दोनों बड़ जाते हैं, परंतु ताजगी के साथ ही वापिस आते हैं। और यह हर व्यक्ति की अपनी मानसिकता और इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।<br /><br />अब हम भी जा रहे हैं, इस २६ मई को ५ जून तक ३० डिग्री से ४६ डिग्री में, फ़िर आकर बतायेंगे कि कितनी उर्जा मिली :)विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-26536763790077390512011-05-20T19:38:54.329+05:302011-05-20T19:38:54.329+05:30शास्त्री जी, नैनीताल देखा भी नहीं हैं, बड़ा मन है...शास्त्री जी, नैनीताल देखा भी नहीं हैं, बड़ा मन है वहाँ आने को। लेकिन आप सार्वजनिक निमंत्रण दे रहे हैं तो देख लीजिएगा, कितने ब्लागर तैयार हो जाएंगे?अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-88843680122237127942011-05-20T19:33:29.591+05:302011-05-20T19:33:29.591+05:30गर्मी में ना जाइये और ना जाड़ों में जाइये, आनंद बड...गर्मी में ना जाइये और ना जाड़ों में जाइये, आनंद बड़ी चीज है घर में ही सोइए| हम तो इसी का पालन करते थे मगर अब बच्चे कहाँ मानते छुट्टी ही कहीं चलो ?Sunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-32773407020613432272011-05-20T19:21:12.512+05:302011-05-20T19:21:12.512+05:30नैनीताल आइए न घूमने के लिए!
इसी कमिस्नरी में हमारी...नैनीताल आइए न घूमने के लिए!<br />इसी कमिस्नरी में हमारी भी कुटिया है!<br />आपका स्वागत करके हम भी धन्य हो जाएँगे!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-42620372077379274862011-05-20T18:31:03.905+05:302011-05-20T18:31:03.905+05:30आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को &qu...आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/<br />चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)Er. सत्यम शिवमhttps://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-79475116966584805442011-05-20T17:48:37.947+05:302011-05-20T17:48:37.947+05:30सही कह रही हैं आप...छुट्टियों में घूमने जाना अनुभ...सही कह रही हैं आप...छुट्टियों में घूमने जाना अनुभव अथवा तारो-ताज़ा होने के लिए कम , प्रतिष्ठा के लिए ज्यादा होता है.SKThttps://www.blogger.com/profile/10729740101109115803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-44154470503601276792011-05-20T17:36:22.005+05:302011-05-20T17:36:22.005+05:30मैं आप सभी की इस बात से सहमत हूँ कि घूमने जाने से ...मैं आप सभी की इस बात से सहमत हूँ कि घूमने जाने से नयी ऊर्जा मिलती है लेकिन जब पारा 42 से 44 डिग्री हो और केवल दो-तीन दिन के लिए हिल-स्टेशन पर जाना मन को निढ़ाल भी करता है। इसलिए जाओ तो लम्बे समय के लिए जाओ। या फिर तापमान में इतना अन्तर ना हो। रोजमर्रा की जिन्दगी में बदलाव से कुछ राहत तो मिलती ही है। चलिए यहाँ सब लोग घूमने के शौकीन ज्यादा हैं और घर-घुस्सू कम, अच्छी बात है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-69785037002204174362011-05-20T16:53:35.558+05:302011-05-20T16:53:35.558+05:30सुन्दर साल भर मेहनत के बाद नई उर्जा की आवश्यकता ह...सुन्दर साल भर मेहनत के बाद नई उर्जा की आवश्यकता होती ही है इसके लिए दिन चर्या में बदलाव की जरुरत होती है ।Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.com