tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post3898828287494187342..comments2023-12-30T03:15:36.067+05:30Comments on अजित गुप्ता का कोना: अपराधी को सजा हुई और सारा परिवार ही भूख की चपेट में आ गयाअजित गुप्ता का कोनाhttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-64692704706539117662010-09-22T10:16:27.139+05:302010-09-22T10:16:27.139+05:30अपराधी को दंड मिले ,और उससे जेल में रख कर काम करवा...अपराधी को दंड मिले ,और उससे जेल में रख कर काम करवाया जाय ,जिसकी आय परिवार को देने की व्यवस्था हो तो दोनों के साथ न्याय हो सकता है .<br />(हो सकता है मेरे इस विचार में कोई टेक्नीकल बाधा हो.)प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-16099528910306204162010-03-30T14:07:14.070+05:302010-03-30T14:07:14.070+05:30युवा सोच का पता मिल गया, अद्भुत। सजदे में सिर झुकत...युवा सोच का पता मिल गया, अद्भुत। सजदे में सिर झुकता है।kulwant Happyhttp://yuvatimes.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-24969022456256463942010-03-28T16:04:58.596+05:302010-03-28T16:04:58.596+05:30...प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!...प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-41048074972243771702010-03-28T07:05:34.716+05:302010-03-28T07:05:34.716+05:30कथा भी अच्छी लगी और उसके पीछे की अवधारणा भी. जहां ...कथा भी अच्छी लगी और उसके पीछे की अवधारणा भी. जहां तक क़ानून के सर्वोपरि होने की बात है, हमें यह यह रखना चाहिए कि क़ानून में कमी हो सकती है और है. एक ज़माने में अरब-यूरोपीय क़ानून में अश्वेतों को जानवरों की तरह खरीदना-बेचना-यौन शोषण-मारना कानूनी रूप से जायज़ था. कई अमेरिकी प्रदेशों में भू-विकास के लिए मूल निवासियों की सामूहिक ह्त्या जायज़ थी. चीन में तो आज भी कम्म्युनिस्ट विचारधारा के विरोधियों को न सिर्फ मौत की सज़ा देना जायज़ है बल्कि उनके अंग भी प्रत्यारोपण के लिए धनी विदेशियों को "कानूनन" बेच दिए जाते हैं.<br /><br />एक पुरानी फिल्म "दुश्मन" में अपराधी को पीड़ित परिवार की देखरेख की सज़ा दिए जाने की भारत के वकीलों में आलोचना हुई थी जबकि अमेरिका में अपराधियों को जन-सेवा की ज़िम्मेदारी देना आम बात है. <br /><br />आपकी लेखनी बहुत प्रभावशाली है - अविचलित लिखती रहिये.<br />सादर...Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-44710891572044138562010-03-28T06:57:26.617+05:302010-03-28T06:57:26.617+05:30This comment has been removed by the author.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-70603806177645118702010-03-27T22:14:34.086+05:302010-03-27T22:14:34.086+05:30अगर एक झूठ से किसी कि जान बचा सकते है तो वो ,झूठ ...अगर एक झूठ से किसी कि जान बचा सकते है तो वो ,झूठ झूठ नहीं कहा जायेगा |कुछ ऐसे ही भाव उभरे है आपकी इस लघुकथा को पढ़कर |अपराधी को सजा तो मिलनी ही चाहिए |पर देश ,काल और परिस्थितिया अपना महत्व रखती है |<br />प्रयोग के तौर पर जज साहब का फैसला सही है इसी विषय पर वि शांताराम कि "दोंखे बारह हाथ "पिक्चर बनी थी |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-8824514069772658002010-03-26T20:49:33.935+05:302010-03-26T20:49:33.935+05:30डॉ0 गुप्ता जी!
जिस समाज में हम रह रहे हैं वह वास्त...डॉ0 गुप्ता जी!<br />जिस समाज में हम रह रहे हैं वह वास्तव में राजशाही के ईट-गारे से बना है। उसी से उपजे बहुत सारे नियम-कानून हम ओढ़-बिछा रहे हैं। जाने अनजाने हम आज भी उसी राजतांत्रिक व्यवस्था को पोषित करते हैं। पिछले दिनों एक ‘सूचना के अधिकार संबंधी’ आयोजन के अध्यक्ष पद से बोलते हुए एक वक्ता ने भारत को प्रजातंत्रिक राज्य कहा है। उनके वक्तव्य को सुन कर मैं हैरान रह गया। बडे-बडे लोग लोकतंत्र को प्रजातंत्र कहते हैं। भारत में अभी समाजवादी व्यवस्था के पैर जम भी न पाए थे कि हम फिर पूंवावादी व्यवस्था के जबडों में जकड़ते जा रहे हैं। बाजारीकरण ने हर वस्तु को बिकाऊ बना दिया है। कल्याणकारी राज्य और हर नागरिक के सर्वांगीर्ण विकास की अवधारण का अब सवाल अब पीछे छुट गया है। आपने अपनी लधुकथा में इन्हीं प्रश्नों को उठाया है। मेरा मानना है कि राज्य के सभी नागरिकों को ‘शिक्षा-स्वास्थ और उसके जीवन को सुरक्षा’ सुलभ कराना राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है। इसके अतिरिक्त अपराध मुक्त सामाजिक परिवेश बनाना राज्य का कर्तव्य है। आपने अच्छे मुद्दे को उठाया है। साधुवाद! सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवीडॉ० डंडा लखनवीhttps://www.blogger.com/profile/14536866583084833513noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-46262872112269248502010-03-26T19:01:24.442+05:302010-03-26T19:01:24.442+05:30Aaj ki laghukatha ko sirf ek post ki tarah nahin b...Aaj ki laghukatha ko sirf ek post ki tarah nahin balki class ki tarah padha.. ummeed hai aap blogrole me is anuj ke blog ko daal niyamit margdarshan karti rahengeen ma'am. agar sambhav ho to kripya apna koi no. mujhe mail kar den jisse main saturday ya sunday ko baat kar sakoon.दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-82692638561197785412010-03-26T18:07:53.654+05:302010-03-26T18:07:53.654+05:30सही कहा....अपराधी को समाप्त न कर यदि उसकी आपराधिक ...सही कहा....अपराधी को समाप्त न कर यदि उसकी आपराधिक वृत्ति को समाप्त कर दिया जाय,तो यही सही मायने में समाज को सुरक्षित रखने के प्रति न्याय व्यवस्था का दायित्व होगा...<br /><br />आपकी बात को ही सिद्ध करती लघुकथा अत्यंत ही प्रभावशाली है...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-76985010931867972002010-03-26T15:27:06.233+05:302010-03-26T15:27:06.233+05:30sunder kahani...sunder kahani...Ravi Rajbharhttps://www.blogger.com/profile/16224660000339492496noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-72666394805692939992010-03-26T10:40:43.688+05:302010-03-26T10:40:43.688+05:30पुरानी कहावत है की चने के साथ घुन तो पिसता ही है.!...पुरानी कहावत है की चने के साथ घुन तो पिसता ही है.!<br />और वैसे में दिवेदी जी से पूरी तरह से सहमत हूँ !SomeOnehttps://www.blogger.com/profile/14159813226850989502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-11144010993781693792010-03-25T17:53:12.231+05:302010-03-25T17:53:12.231+05:30post bahut dimagi halchal dene wali hai. kayi baar...post bahut dimagi halchal dene wali hai. kayi baar insaan k halaat majboor kar dete hai use apradh karne k liye. isliye jaruri to nahi har apradhi itna bada gunahgaar hai..aise kuch special cases me sarkar ko aage aana chaahiye aur saath me kuch samaj savi sansthao ko...jaise bujurgo k liye vridh-aashram banaye gaye hai..aise hi koi commetties banyi jaye jo inko thodi-bahut saza dilwane k sath inko rojgar dilwane ki koshish kare, inke pariwar inke baccho ko bhi bhar-pait bhojan/shiksha aur rojgar muhaiyya ho iske sath sath aise logo per nigrani bhi lagatar rakhi jaye.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-32645375911124029952010-03-25T12:49:10.958+05:302010-03-25T12:49:10.958+05:30इस लघुकथा के माध्यम से सवाल तो आपने बहुत मुश्किल उ...इस लघुकथा के माध्यम से सवाल तो आपने बहुत मुश्किल उठाया है...पर गुणीजनों ने यथोचित सुझाव भी दिए हैं...पर ऐसे प्रसंग सोचने पर मजबूर तो करते ही हैं कि एक की गलती की सजा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ती है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-75051065359379046572010-03-25T09:43:08.114+05:302010-03-25T09:43:08.114+05:30बोलते बिंदास वाले रोहित जी, आपने मेरी इस लघुकथा के...बोलते बिंदास वाले रोहित जी, आपने मेरी इस लघुकथा के साथ अन्य पोस्ट भी पढ़ी और उन पर भी टिप्पणी की। आपकी टिप्पणी से बहुत आनन्द आया। मुझे भी लगता है कि उस गाँव में जाकर देखना चाहिए कि कहीं हमारी चुड़लों वाली दंतकथा तो वहाँ प्रचलित नहीं है?अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-87784600829589844672010-03-25T09:25:50.552+05:302010-03-25T09:25:50.552+05:30द्विवेदी जी, आपका परामर्श मेरी इस पोस्ट को मिलेगा...द्विवेदी जी, आपका परामर्श मेरी इस पोस्ट को मिलेगा इसका विश्वास था। मुझे आज अच्छा लग रहा है कि अब ब्लोगिंग परिपक्वता की ओर बढ़ रही है। आप और गोदियाल जी सहित कइयों ने यही परामर्श दिया है कि कानून को अपना काम करना चाहिए। मैं भी आजकल की कहानी जब पढ़ती हूँ तब मुझे ऐसे ही पात्र समाज में कहीं दिखायी नहीं देते। इसी कारण मैंने यह लघुकथा आप सभी सुधि पाठकों व चिंतकों के परामर्श के लिए यहाँ पोस्ट की थी कि क्या ऐसी लघुकथा स्वीकार्य होगी? मैं अब इसमें कुछ बदलाव लाकर इसे पुस्तक में सम्िमलित करूंगी।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-78031501590652221042010-03-25T08:59:43.637+05:302010-03-25T08:59:43.637+05:30हमारी न्याय और दंड प्रक्रिया पर बहुत सटीक दृष्टि ड...हमारी न्याय और दंड प्रक्रिया पर बहुत सटीक दृष्टि डाली है आपकी लघुकथा ने ...दंड ऐसा दिया जाए कि या तो अपराधी खुद को सुधार सके ...या फिर कोई और जुर्म करने का साहस ही ना कर सके ....ना कि जुर्म के अंधियारे दलदल में उसके अपनों को भी प्रवीण होने का अवसर प्रदान करे ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-80461787392306896952010-03-25T08:32:36.785+05:302010-03-25T08:32:36.785+05:30आप बहुत संवेदनशील हैं , आपके परिवार को बधाई !
जहाँ...आप बहुत संवेदनशील हैं , आपके परिवार को बधाई !<br />जहाँ तक कहानी का सम्बन्ध है मैं श्री दिनेश राय द्विवेदी से सहमत हूँ !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-63418777352120226192010-03-25T02:38:26.256+05:302010-03-25T02:38:26.256+05:30आपकी पोस्ट में गहरे सवाल हैं.अपराधी को छोड़ना तर्क...आपकी पोस्ट में गहरे सवाल हैं.अपराधी को छोड़ना तर्कसंगत नहीं होगा..पर एक बड़ा सवाल है कि जो भूख के कारण, काम नही मिलने के कारण चोरी करने को मजबूर हो जाता है उसका क्या किया जाए..यह सच है कि कई कैदी जेल में ही रह रहे हैं क्योंकी बाहर आकर दो जून की रोटी का जुगाड़ उनके लिए मुश्किल होता है....कहीं फिर फिर अपराध न करना पड़े,.....इसलिए वो जेल से बाहर आने को उत्सुक नहीं होते....पर सजा से माफी देना अच्छी मिसाल नहीं....कथा में जज साहब के फैसले से कोई भी इत्तफाक नहीं रखेगा, पर कथा में छुपी भावनाओं और तल्ख सवाल का जवाब समाज को ढ़ढना ही होगा.....<br /><br /><br />आपकी जोधपुर यात्रा तो लाजवाब रही......आपके पतिदेव जी ने चाय वाली दुकान तक पैसे पहुंचावा दिए......एक गंभीर सुझाव ....उस गांव को भी क्यों नहीं तलाशा जाए, जहां क्या पता आज भी चुड़ैलों का भय हो....उस गांव को ढूंढ कर भयमुक्त किया जा सके......(हा हा हा हा)<br /><br />रेल की क्षत्राणी ने तो दिल खुश कर दिया, बेचारे टीटी महोदय कुछ और देर टिकते तो क्या पता उन्हें50 रुपये कमाने की जगह 500 रुपये देकर जाना पड़ता....Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-40391467200847660592010-03-25T02:25:57.158+05:302010-03-25T02:25:57.158+05:30dfdfdfdfAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-51082038904071903652010-03-25T00:41:53.592+05:302010-03-25T00:41:53.592+05:30मै भी दिनेशराय जी जैसे ही विचार रखता हुं अपराधी को...मै भी दिनेशराय जी जैसे ही विचार रखता हुं अपराधी को सजा जरुर मिलनी चाहिये,वर्ना उस चोर ने पहले काम नही किया तो सजा माफ़ होने पर कहां करेगा...राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-28390393111903046022010-03-25T00:07:31.974+05:302010-03-25T00:07:31.974+05:30कहते हैं न ...पाप को ख़तम करो पापी को नहीं ..ये कह...कहते हैं न ...पाप को ख़तम करो पापी को नहीं ..ये कहावत चरितार्थ करती है आपकी लघुकथा..बहुत प्रभावी बन पड़ी हैshikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-90103909094776775132010-03-24T22:02:01.175+05:302010-03-24T22:02:01.175+05:30अपराधी को तो सजा मिलनी ही चाहिये लेकिन उसके परिवार...अपराधी को तो सजा मिलनी ही चाहिये लेकिन उसके परिवार का ध्यान रखे जाने का प्रवधान होना चाहिये लेकिन भारतीय परिप्रेक्षय में यह एकदम असंभव है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-70390363176723296852010-03-24T21:52:38.784+05:302010-03-24T21:52:38.784+05:30मुश्किल है जज मियां से सहमत होना. पता नहीं IPC/CrP...मुश्किल है जज मियां से सहमत होना. पता नहीं IPC/CrPC के कौन से नए प्रावधान इन बाबू ने संसद के बजाय ख़ुद ही लिख डाले.<br /><br />सरकार को बच्चों की ज़िम्मेदारी संभालने का आदेश देकर उसकी मानीटरिंग की भी व्यवस्था करते तो शायद कुछ बात बनती. वर्ना पट्ठे चोर की तो पांचों घी में :)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-60960897840526467732010-03-24T21:47:39.979+05:302010-03-24T21:47:39.979+05:30श्री दिनेश जी से सहमत.श्री दिनेश जी से सहमत.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-40824479632894123862010-03-24T21:27:08.533+05:302010-03-24T21:27:08.533+05:30गलत फैसला।
अपने काम में सेंटीमेंटल होना ठीक नहीं ...गलत फैसला।<br /><br />अपने काम में सेंटीमेंटल होना ठीक नहीं । अन्याय ही होगा।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.com