tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post8545019162223135768..comments2023-12-30T03:15:36.067+05:30Comments on अजित गुप्ता का कोना: नवगीत - बिखर पड़ा मनअजित गुप्ता का कोनाhttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-73816389234671197192011-12-04T08:55:42.302+05:302011-12-04T08:55:42.302+05:30संगीता जी का आभार, जिन्होंने एक भूली हुई रचना की ...संगीता जी का आभार, जिन्होंने एक भूली हुई रचना की याद दिला दी। पूर्व में कई रचनाएं लगाई गयीं लेकिन तब पाठक नहीं थे, लेकिन अब आप सब का साथ मिला है तो अच्छा लग रहा है। <br />नवीन जी, मुझे भी नायरे का प्रयोग अच्छा लगा था लेकिन आज आपने इसे अच्छा कहा है तो बहुत अच्छा लग रहा है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-8135186845819359052011-12-01T23:30:03.625+05:302011-12-01T23:30:03.625+05:30बूढ़ी सी आँखे हैं
आँगन में झूला
परिधी में जैसे है
ब...बूढ़ी सी आँखे हैं<br />आँगन में झूला<br />परिधी में जैसे है<br />बेलों का जोड़ा<br />कोई नहीं हाय रे<br />झुलस रहा तन<br />सिमट गए दायरे<br />बिखर पड़ा मन। <br /><br />aapki rachna man ko chhu gayiMamta Bajpaihttps://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-27025296254993506992011-12-01T21:48:22.697+05:302011-12-01T21:48:22.697+05:30सिमट गए दायरे
बिखर पड़ा मन
बगियाँ के सामने
ठिठक ...सिमट गए दायरे<br />बिखर पड़ा मन <br />बगियाँ के सामने <br />ठिठक खड़ा वन।...........बहुत ही अच्छी रचना......विभूति"https://www.blogger.com/profile/11649118618261078185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-34541860767130204942011-12-01T21:15:28.951+05:302011-12-01T21:15:28.951+05:30वर्तमान और अतीत की तुलना और अतीत के लिये व्याकुलता...वर्तमान और अतीत की तुलना और अतीत के लिये व्याकुलता सब कुछ तो है इस कविता में । सुंदर ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-49469259869099657632011-12-01T20:18:37.181+05:302011-12-01T20:18:37.181+05:30बूढ़ी सी आँखे हैं
आँगन में झूला
परिधी में जैसे ह...बूढ़ी सी आँखे हैं <br />आँगन में झूला <br />परिधी में जैसे है <br />बेलों का जोड़ा <br />कोई नहीं हाय रे <br />झुलस रहा तन <br />सिमट गए दायरे <br />बिखर पड़ा मन।<br /><br />....बदलते समय की बहुत मर्मस्पर्शी और उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-50488621050694324722011-12-01T19:42:49.564+05:302011-12-01T19:42:49.564+05:30सुन्दर नवगीत...
सादर बधाई...सुन्दर नवगीत...<br />सादर बधाई...S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')https://www.blogger.com/profile/10992209593666997359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-35865834808601374212011-12-01T19:09:34.377+05:302011-12-01T19:09:34.377+05:30बहुत सुंदर रचना,..बधाई ,...बहुत सुंदर रचना,..बधाई ,...धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-51259171288340151012011-12-01T17:08:32.501+05:302011-12-01T17:08:32.501+05:30वर्तमान एवं अतीत के परिदृश्यों को एक साथ ही खूबसूर...वर्तमान एवं अतीत के परिदृश्यों को एक साथ ही खूबसूरत शब्द चित्रों के माध्यम से आपने सामने ला खड़ा किया है ! अद्भुत रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-66337827563552077162011-12-01T14:50:17.357+05:302011-12-01T14:50:17.357+05:30बूढ़ी सी आँखे हैं
आँगन में झूला
परिधी में जैसे है
ब...बूढ़ी सी आँखे हैं<br />आँगन में झूला<br />परिधी में जैसे है<br />बेलों का जोड़ा<br />कोई नहीं हाय रे<br />झुलस रहा तन<br />सिमट गए दायरे<br />बिखर पड़ा मन। <br /><br /><br />वाह बहुत सुंदर मार्मिक पंक्तियाँ !<br />बधाई...कुमार संतोषhttps://www.blogger.com/profile/15801341922407900125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-57549439528274020552011-12-01T11:34:40.189+05:302011-12-01T11:34:40.189+05:30बहुत सुंदर
क्या कहनेबहुत सुंदर<br />क्या कहनेमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-34556063370024953992011-12-01T10:07:47.634+05:302011-12-01T10:07:47.634+05:30बेहतरीन नवगीत।
सादरबेहतरीन नवगीत। <br /><br />सादरYashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-88050997046244926192011-12-01T09:46:17.593+05:302011-12-01T09:46:17.593+05:30सेप्ट 2009 का यह नवगीत, ओहो क्या ताज़गी है, लगता है...सेप्ट 2009 का यह नवगीत, ओहो क्या ताज़गी है, लगता है अभी लिखा है - और इस में जो 'नाय रे' का उपयोग हुआ है - बोले तो अफलातून है।<br /><br />नई पोस्ट्स का अंबार लगाने की जगह थोड़ा रुक कर साथियों के ब्लोगस को खँगालने में आनंद आ रहा है।www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-45023275115847754062011-12-01T08:33:48.099+05:302011-12-01T08:33:48.099+05:30मर्म को छू गयी आपकी रचना ....
बहुत सुंदर रचना ...ब...मर्म को छू गयी आपकी रचना ....<br />बहुत सुंदर रचना ...बधाई .Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-939729910484407642011-12-01T00:15:48.577+05:302011-12-01T00:15:48.577+05:30आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - ...आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है <br /><br /><a href="http://nayi-purani-halchal.blogspot.com" rel="nofollow"> ...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में </a>संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-42827688027592132322009-09-21T18:53:47.598+05:302009-09-21T18:53:47.598+05:30बरगद है गमले में
कुण्डी में जामुन
सुआ है पिंजरे...बरगद है गमले में <br />कुण्डी में जामुन <br />सुआ है पिंजरे में <br />बिल्ली है आँगन <br /><br />अद्भुत पंक्तियाँ हैं...वाह....बेजोड़ नवगीत...बधाई...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-71936757515135660132009-09-14T09:45:30.249+05:302009-09-14T09:45:30.249+05:30परिधी में जैसे है
बेलों का जोड़ा
कोई नहीं हाय रे
झु...परिधी में जैसे है<br />बेलों का जोड़ा<br />कोई नहीं हाय रे<br />झुलस रहा तन<br />सिमट गए दायरे<br />बिखर पड़ा मन। <br />आपकी कलम<br /> तो सदा ही से लुभाती रही है और इस रचना मे जाने कितनी अतीत वर्तमान की संवेदनायें सिमटी हुई हैं कैसे समय बदल रहा है एक छटपटाहट की झलक लिये सुन्दर रचना बन पडी है शुभकामनायेंनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com