tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post5039554914624466275..comments2023-12-30T03:15:36.067+05:30Comments on अजित गुप्ता का कोना: दम्भ की दीवार - अजित गुप्ताअजित गुप्ता का कोनाhttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comBlogger54125tag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-12853114808876127932011-06-25T23:11:43.373+05:302011-06-25T23:11:43.373+05:30आपने दंभ या कहें तो अंहकार का सही वर्णन किया है । ...आपने दंभ या कहें तो अंहकार का सही वर्णन किया है । मुझे लगता है सरल और सहज व्यक्ति को लोग बेवकूफ समझते हैं . मेरा काम ऐसा है कि बहुत से लोगों से पाला पड़ता रहता है मैने तो बड़े बड़े साधु संतों को भी दंभ से अछूता नहीं पाया । साधारण मु,्य़ों की बात तो छोड़ दिजिए . हाल ही में एक सज्जन जो कि बहुत गुणी है उन्हें मैनें हर तरह से प्रमोच करने का स्च्चे दिल से प्रयास किया लेकिन उनका अहंकार इतना बड़ा है कि वो मुझे ये बताने में भी नहीं चूके तुम मुझे प्लेटफार्म दे भी रही हो तो क्या इसकी पहंुच तो लोअर मिडिल क्लास तक ही है . जबकि उन्होने कुछ दिन पहले स्वयं ही स्वीकार किया था कि उनके अहम के कारण उनकी अमूल्य रिसर्च बेकार जा रही है । क्या कर सकते हैं अजितजी सोच अपनी अपनी है मुझे तो लगता है अपनी सहजता और सरलता के कारण मुझे ही कईं बार अपमानित होना पड़ा है-सर्जना शर्मा-https://www.blogger.com/profile/14905774396390857560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-21826768479477941012011-06-25T19:32:48.879+05:302011-06-25T19:32:48.879+05:30अपने आपको दम्भ की दीवार से अनावृत्त करो। मेरे जैसे...अपने आपको दम्भ की दीवार से अनावृत्त करो। मेरे जैसे अनेक लोग तुम्हारे पास शब्दों की पूंजी लेने आएंगे उन्हें दो, उनके लिए सहज सुलभ बनो तुम। तुम्हारी सहजता से हमारे हाथ ही नहीं हमारा मन भी तुम्हारे पाँवों को चूमेगा।<br />wah.kitni achchi baat kahi hai.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-31279154998910448782011-06-23T23:24:38.901+05:302011-06-23T23:24:38.901+05:30आपके उदाहरण बड़े ही जबरदस्त हैं. काफी अच्चा लेख.आपके उदाहरण बड़े ही जबरदस्त हैं. काफी अच्चा लेख.Gopal Mishrahttps://www.blogger.com/profile/17048839371013189239noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-36151092530788234492011-06-23T21:10:43.573+05:302011-06-23T21:10:43.573+05:30is blog jagat me hi na jane kitne log aise honge j...is blog jagat me hi na jane kitne log aise honge jo is bimari ke shikar honge.<br /><br />vicharneey post.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-29352991291967252292011-06-23T08:58:05.389+05:302011-06-23T08:58:05.389+05:30कुछ लिखते क्यूँ नहीं ||कुछ लिखते क्यूँ नहीं ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-82472570816172579362011-06-22T02:15:52.869+05:302011-06-22T02:15:52.869+05:30हिन्दुस्तान हिंदी के सम्पादक थे अब तो नाम भी याद न...हिन्दुस्तान हिंदी के सम्पादक थे अब तो नाम भी याद नहीं हम दोनों ब्रह्माकुमारीज़ के एक सेमीनार में थे जो टीचर्स और पत्रकारों ,डॉक्टरों के लिए था .कन्नोजिया थे .बात चली कहने लगे विज्ञान ,लोकप्रिय विज्ञान बहुत से लोग हिंदी में लिख रहें हैं लेकिन साफ़ नहीं लिखतें हैं .इतना सारल्य था उनके इस वाक्य में जिसे हमने तभी गांठ में बाँध लिया था ।<br />शब्दों का अपना संस्कार मर जाता है हमारे अन्दर की क्लिष्टता और आवरण से ढीठाई से .सहज सरल होना भाषिक आभूषण है .आपसे सहमत .जो अपने अन्दर अटकें हैं वो भटकें हैं .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-41311321419694614222011-06-21T22:13:38.701+05:302011-06-21T22:13:38.701+05:30विचारोत्तेजक आलेख !
लेखकीय दंभ अंततः अपने आप में ह...विचारोत्तेजक आलेख !<br />लेखकीय दंभ अंततः अपने आप में ही घुट कर रह जाता है ,चारों ओर व्याप्त होने के लिए खुली हवा उसे मिल ही कहाँ पाती है !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-79383676108678216312011-06-20T22:37:28.786+05:302011-06-20T22:37:28.786+05:30दंभ से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होतादंभ से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होताsmhttp://realityviews.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-33021124852939063492011-06-20T17:54:18.950+05:302011-06-20T17:54:18.950+05:30bahut sahi kahaa...lekhani sahaj honi chaahiye.bahut sahi kahaa...lekhani sahaj honi chaahiye.arvindhttps://www.blogger.com/profile/15562030349519088493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-91073137199723200782011-06-20T17:24:55.206+05:302011-06-20T17:24:55.206+05:30galti se aapke blog se khud ko post kar diya, galt...galti se aapke blog se khud ko post kar diya, galti pe galti kshma karen|<br />kindly have a look ----<br /><br />nivedan<br />आदरणीया अजित जी गुप्ता निवेदन पूरी गंभीरता के साथ किया है मैंने | कभी दर्शन दें | मेरे लगाये आम के पांच पेड़ों में फल आ रहे हैं | अवश्य भेंट करूँगा आपके श्री चरणों में | <br />|http://dcgpthravikar.blogspot.com/<br /> http://dineshkidillagi.blogspot.com/ <br />http://neemnimbouri.blogspot.com/ <br />http://terahsatrah.blogspot.com/<br /> see my son,s blog -- http://kushkikritiyan.blogspot.com/रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-86458600894700166692011-06-20T00:30:26.643+05:302011-06-20T00:30:26.643+05:30दंभ दूरियां बढ़ाता है.
इस तरह के मनोभावों को शब्द...दंभ दूरियां बढ़ाता है. <br />इस तरह के मनोभावों को शब्द देना आसान नहीं है लेकिन आप ने बखूबी अभिव्यक्त किया है.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-66558055215608578732011-06-19T13:18:00.960+05:302011-06-19T13:18:00.960+05:30शब्दों की कृत्रिम दीवार पर टिका दम्भ ज्यादा देर तक...शब्दों की कृत्रिम दीवार पर टिका दम्भ ज्यादा देर तक नहीं टिकता। उसे तो ताश के पत्तों की तरह कभी न कभी ढहना ही है।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-31159266474775971502011-06-18T10:01:35.155+05:302011-06-18T10:01:35.155+05:30भैया ये दम्भ की दीवार टूटती क्यों नहीं है...टूटेगी...भैया ये दम्भ की दीवार टूटती क्यों नहीं है...टूटेगी कैसे अंबुजा सीमेंट से जो बनी है...<br /><br />खाता न बही, जो हम कहें वही सही...<br /><br />देश के एक अरब बाइस करोड़ आबादी में मेरे समेत हर एक की यही सोच है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-65110481494032962062011-06-16T17:09:28.446+05:302011-06-16T17:09:28.446+05:30अजित जी कई बार ऐसा भी होता है असल में सामने वाला व...अजित जी कई बार ऐसा भी होता है असल में सामने वाला विद्वान होता ही नहीं है बस विद्वान होने का दंभ भर रहता है जानबूझ कर बनाई दिवार होती है ताकि करीब आ कर कोई सच न जान ले इसलिए दंभ की इतनी मोटी दिवार बनाओ की लोग उसे ही विद्वान होने का संकेत मान ले और आने वाला बस चरण पूजन तक ही सिमित रहे आप से कोई वैचारिक बहस न करे | वो जानता है की जिस दिन ये दंभ की दिवार गिरा दी उस दिन विद्वान होने की भ्रम भी टूट जायेगा |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-57224350353332894672011-06-16T14:25:12.055+05:302011-06-16T14:25:12.055+05:30गुप्ता जी ..आप की यह लेख सोंचने के लिए मजबूर कर रह...गुप्ता जी ..आप की यह लेख सोंचने के लिए मजबूर कर रही है ! दंभ एक गलत प्रक्रिया है ! सुन्दर लेखG.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-69158503435827180292011-06-16T09:13:08.653+05:302011-06-16T09:13:08.653+05:30'commonsense is very uncommon' की ही तरह स...'commonsense is very uncommon' की ही तरह सहज व्यक्तित्व हैं तो लेकिन उन्हें खोज पाना इतना सहज नहीं है।<br />हमारे एक बॉस कहा करते थे, "जितना छोटा आदमी, उतनी बड़ी उसकी ईगो।" ये अलग बात है कि उनकी खुद की ईगो मौके बेमौके हर्ट हो जाती थी:)<br />आपके आलेख का एक एक शब्द असरदार ह।, लेकिन हम कहाँ इस दीवार को गिरा पाते हैं? और हर कोई इतना महान हो भी नहीं सकता।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-75376054508790646152011-06-16T08:58:10.951+05:302011-06-16T08:58:10.951+05:30लोकैषणा बढने से दंभ उजागर हो जाता है, सरल शब्दों म...लोकैषणा बढने से दंभ उजागर हो जाता है, सरल शब्दों में भी बात समझी जाती है।<br /><br />बड़ी सुदर बात कही है आद्य शंकराचार्य जी ने-<br /><br />वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्र व्याख्यानम् कौशलम।<br />वैदुष्यम् विदुषां तद्वद भुक्तये न तु मुक्तये।।<br /><br />आभार<br /><br /><a href="http://blog4varta.blogspot.com/2011/06/4_16.html" rel="nofollow">ब्लॉग4वार्ता-नए कलेवर में</a>ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-29884340789864645292011-06-16T07:59:57.701+05:302011-06-16T07:59:57.701+05:30अहंकार से बड़ा खुद अपना कोई दुश्मन नहीं होता ...मग...अहंकार से बड़ा खुद अपना कोई दुश्मन नहीं होता ...मगर इस पर सिर्फ लिखने से क्या ...यहाँ टिप्पणीकर्ता खुद अपने गिरेबान में झाँक ले ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-74738572140292833122011-06-15T19:50:17.884+05:302011-06-15T19:50:17.884+05:30आओं हम सब के साथ मिलकर बैठो, शब्दों की निर्झरणी को...आओं हम सब के साथ मिलकर बैठो, शब्दों की निर्झरणी को स्वतः ही बहने दो। उन्हें हिमखण्डों में मत बदलो। अपने आपको दम्भ की दीवार से अनावृत्त करो। मेरे जैसे अनेक लोग तुम्हारे पास शब्दों की पूंजी लेने आएंगे उन्हें दो, उनके लिए सहज सुलभ बनो तुम। तुम्हारी सहजता से हमारे हाथ ही नहीं हमारा मन भी तुम्हारे पाँवों को चूमेगा।<br />......<br />आज दंभ की दीवार कितने रिश्तों के बीच दूरियां पैदा कर दे रही है. एक व्यक्क्ति उस दीवार को हटाना भी चाहे तो कुछ नहीं कर सकता जब तक कि दूसरा भी अपने चारों ओर बनायी हुई शीशे की दीवारों से बाहर न आना चाहे. सुन्दर विम्बों की सहायता से दंभ की दीवार का बहुत ही विषद और बोधगम्य विवेचन..हम अपनी दीवार गिरा सकते हैं,लेकिन दूसरों के द्वारा अपने चारों ओर खड़ी की गयी दीवार का क्या कर सकते हैं? ...आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-76464126735509057942011-06-15T18:59:51.619+05:302011-06-15T18:59:51.619+05:30बौना इस मायने में कि मेरी सहजता और तुम्हारे दम्भ म...बौना इस मायने में कि मेरी सहजता और तुम्हारे दम्भ में बहुत फासले थे।<br />उदाहारण आपने बहुत ही सटीक दिया है , सार्थक पोस्ट आभारSunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-62870499143569117362011-06-15T10:32:22.641+05:302011-06-15T10:32:22.641+05:30प्रतुल जी, मैं आपको ज्यादा तो नहीं जान पायी हूँ ...प्रतुल जी, मैं आपको ज्यादा तो नहीं जान पायी हूँ लेकिन आपने लेखकीय दम्भ या ज्ञान का दम्भ शायद इतना नहीं देखा होगा जितना मैंने देखा है। हा हा हाहा, यह मेरा भी दम्भ है। लेकिन बहुत कटु अनुभव है इस बारे में, आपकी बात कहने का अंदाज अलग है लेकिन दम्भ ऐसा तो कहीं दिखायी नहीं देता कि बरगद के पेड़ के नीचे कुछ भी अंकुरित ना हो! सहजता और सरलता की हमेशा ही तलाश रहती है, यहाँ कुछ मिल जाती है तो कुछ समय देना अच्छा लगता है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-1945117915748687262011-06-15T10:26:40.873+05:302011-06-15T10:26:40.873+05:30रश्मि रविजा जी, आपने प्रश्न तो उचित ही किया है कि...रश्मि रविजा जी, आपने प्रश्न तो उचित ही किया है कि दम्भी लोगों से मित्रता की आशा ही क्यों? लेकिन मुझे लगता है कि जिसके पास भी कुछ ज्ञान है, यदि उसकी समीपता मिलेगी तो कुछ ना कुछ तो हासिल होगा ही। लेकिन धीरे-धीरे लगता है कि ऐसे लोग कुछ दे नहीं पाते, देते हैं तो केवल दम्भ ही। लोग अपने अनुयायी ढूंढते हैं लेकिन मैं हमेशा गुरु ढूंढती हूँ। पता नहीं गलत हूँ या सही, इसके ज्ञान के लिए ही तो यहाँ लिखती हूँ जिससे अपना आकलन होता रहे। क्योंकि ब्लागिंग ही ऐसा क्षेत्र है जहाँ त्वरित टिप्पणी मिलती है, आपके प्रत्येक विचार पर।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-48592672657528915332011-06-15T10:21:56.626+05:302011-06-15T10:21:56.626+05:30निर्मला जी, मैंने साहित्य जगत के अनेक रूप देखे है...निर्मला जी, मैंने साहित्य जगत के अनेक रूप देखे हैं, दम्भी स्वरूप भी और चाटुकारिता से भरा भी। मुझे प्रारम्भ से ही नवीन और युवा लेखन में दिलचस्पी रही है। हम इस आयु में आकर कहीं ना कहीं अपने विचारो से प्रतिबद्ध हो गए हैं इसलिए नवीन और युवा लेखन के नवीन विचार कुछ प्रतिबद्धताओं को तोड़ने में मदद करते हैं। इसलिए ही ब्लाग पर आकर नवीनता की खोज कर रही हूँ। साहित्य जगत जैसे हालात यहाँ भी है, सबकुछ शीघ्रता से पा लेना चाहते हैं। यहाँ कोई नहीं लिखता कि मैं कुछ सीखने आया हूँ, बस सभी यही लिखते हैं कि मैं कुछ देने आया हूँ। आपका स्नेह हमेशा ही मिलता रहा है, आभार।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-77926013442717417132011-06-15T10:17:07.350+05:302011-06-15T10:17:07.350+05:30"...यहां तो अभी ऐसा कोई मिला ही नहीं।..."..."...यहां तो अभी ऐसा कोई मिला ही नहीं।..."<br />@ अजित जी, आपके सरल हृदय ने मेरे आरंभिक लेखकीय दंभ को अनदेखा किया है शायद. :)<br />यदि आप जैसे गुरुजनों का सान्निध्य मिले तो बिना शर्मिंदगी के सुधार कर लिया जाता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5543246866765877657.post-11680631539676950552011-06-15T09:33:30.182+05:302011-06-15T09:33:30.182+05:30दंभ रे दंभ,
अन्त प्रारम्भ।दंभ रे दंभ,<br />अन्त प्रारम्भ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com